पिटनी पर एक निबंध: मुकेश चौरसिया

मित्रो आज हम पिटना/पिटनी की बात करेंगे। इसे मुंगरिया या मोंगरी भी कहते है। यह पुराने जमाने की वाशिंग मशीन हुआ करती थी। मुंगरिया या मोंगरी बेसबॉल के बैट के समान बेलनाकार होती थी, जबकि पिटना क्रिकेट के बल्ले के समान होता था, लेकिन यह दोनों तरफ से फ्लैट या चपटा होता है। इसका एक फायदा होता है, जब धोने वाला एक तरफ से थक जाता था तो वह दूसरी तरफ से धोने लगता था।

आधुनिक शोधों से पता चला है कि मुंगरिया का मुंगेर से या पिटना का पटना से कोई लेना–देना नहीं है। भाषा शास्त्रियों ने भी इसे केवल नाम संयोग माना है। ऐसी पिटनी मैंने कुम्हारों के पास भी देखी है, जिससे वे बर्तन के ‘खोट’ को ‘गढ़-गढ़ कर काढ़’ देते थे और हमारे गुरुजियों को चिढ़ाते थे। स्कूल में गुरूजी कबीर के दोहे इस को हम बच्चों पर चरितार्थ करके कबीर दास जी का ऋण चुकाया करते थे।

पुराने समय में कपड़ों को डिटर्जेंट और सोडा में भिगोने के बाद इसी वस्तु से पीट-पीटकर धोया जाता था। नियम और सिद्धांत वही ‘मार के आगे भूत भी भागते हैं’ तो मैल गंदगी क्या चीज है।

अच्छी पिटाई को धुलाई यूँ ही नहीं कहते। या तो उस समय डिटर्जेंट्स अच्छे नहीं होते थे या मैल ज्यादा पक्के होते थे। जो भी हो मैल भी पिट पिटकर और अपनी भरपूर बेइज्जती कराकर कपड़ों को ऐसे छोड़ देता था जैसे कोई सिद्धांतवादी मुख्यमंत्री हार के बाद अपना बंगला छोड़ देता है।

हमने अपने बचपन में वाशिंग मशीन का नाम भी नहीं सुना था। लोग कपड़ों की बड़ी-बड़ी पोटली लेकर नदी तालाब या कुएं पर ले जाते थे और कपड़ों को इसी प्रकार पटक-पटक कर धोते थे। पहलवानों ने धोबीपछाड़ की कला भी किसी धोबी घाट में सीखी होगी।

कपड़ों को पीटने पटकने की आवाज दूर दूर तक जाती थी। उस जमाने में जब मोबाइल फ़ोन घर-घर में नहीं थे तब दो प्रेमी प्रेमिका, बेदर्द जमाने को ठेंगा दिखाते हुए इसी तरीके इजहारे दिल कर लेते थे। मैं जानता हूँ कि आप मेरी बात पर भरोसा नहीं करेंगे।

मैं आपको सलाह दूँगा कि आप कमल हासन और रति अग्निहोत्री की फिल्म ‘एक दूजे के लिये’ जरूर देखें। इस विधि से तब दो पडोसिनें भी अपना दुख दर्द साझा कर लेती थीं और अपनी सास की बुराई से लेकर अचार, मुरब्बे बनाने की ‘रेसिपी’ भी इसी तरीके शेयर कर लेती थीं।

कहा जाता है कि कपड़े धोने की इस विधि में कुछ महिलाओं को अपने पतियों को पीटने जैसा सुख मिलता था। एक अध्ययन से पता चला है कि इससे वे ‘डिप्रेशन’ का कम शिकार होती थीं और उस जमाने में तलाक के केस भी कम होते थे। प्राय: पुरुष पड़ोसी इसी विधी से अपने शाम का प्रोग्राम फिक्स कर लेते थे। वाशिंग मशीन के आने से संवाद कौशल की यह कला लुप्त हो गई।

फिर वाशिंग मशीन का युग आ गया। जब मैंने पहली बार वाशिंग मशीन देखा तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि सिर्फ क्लॉकवाइज और एंटी क्लॉकवाइज घुमा-घुमाकर भी कपड़ों का मैल निकाला जा सकता है।

शुरू शुरू में मशीन के विज्ञापनों को देखने से पता चलता था कि केवल मशीन खरीद लेने से ही कपड़े साफ हो जाते थे। बाद में पता लगा कि कपड़ों को मशीन में पानी और डिटर्जेंट डालकर घुमाना भी पड़ता है।

मशीनों के आने से पुरानी पीढ़ी के डिटर्जेंट ने उनके साथ असहयोग आंदोलन छेड़ दिया तब न्यू जनरेशन के ज्यादा ‘तेज’ ‘एडवांस’ और ‘स्मार्ट’ वाशिंग पाउडरों ने उनका स्थान लिया। अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार और सलमान खान जैसे अभिनेता चड्डी बनियान के साथ‌-साथ डिटर्जेंट के भी विज्ञापन करने लग गए।

गोरा दिखना और साफ कपड़े पहनना बीए, एमए करने से ज्यादा बड़ी योग्यता की निशानी हो गई। अब वो जमाना आ गया जिसमें आधुनिक अम्माएँ और मम्मियाँ बच्चों के कपड़े खराब करने पर बुरा नहीं मानती हैं, बल्कि प्रसन्न होती हैं क्योंकि उनके पास फलानी कंपनी का वाशिंग पाउडर होता है।

एक हमारा समय था जब कपड़े गंदे करने पर कपड़े के साथ-साथ हमारी भी पिटाई इस पिटना से हो जाती थी। हम बच्चे जब कभी शरारत करते थे तो हमारे घर के बड़े इसी पिटना को उठाकर हमें भी कूट देते थे। कई बार तो हम बच्चे इसलिए भी कूट दिए जाते थे, ताकि बड़ों का खौफ बना रहे।

पिताजी जब भी दौरे पर जाते थे तो हमें एड्वान्स में कूट कर जाते थे। कई बार वे इस पुण्य कार्य को लौटने के बाद भी करते थे। तन के साथ-साथ लगे हाथ मन का मैल भी निकल जाता था और लगे हाथ पीठ भी मजबूत होती थी।

रविवार की दोपहर हम लोग कपड़ों की गेंद बनाकर इसी के साथ क्रिकेट खेलने का सुख प्राप्त करते थे और स्वयं को सुनील गावस्कर समझने का भ्रम पाले घर लौट आते थे।

पिछले सप्ताह मैंने कुछ कपड़ों को इसी पुरानी स्टाइल से धोने का प्रयास किया। शर्ट के बटन टूट गए और पेंटों की ज़िप खराब हो गई। लेकिन कपड़ों की सफाई देख कर मन का राष्ट्रीय पक्षी नाच उठा। बाद में पता चला कि मैंने गलती से धुले हुए कपड़े ही उठा लाया था। आह! क्या समय था। तब कपड़े भी मजबूत थे, इंसान भी और मैल भी।

मुकेश चौरसिया
गणेश कॉलोनी, केवलारी,
सिवनी, मध्य प्रदेश- 480994