बेटियां: रूची शाही

आज बेटी ने कहा है नेल पेंट लाने को
अब बेटी ने कहा है तो लाना तो पड़ेगा ही
मैं सोचने लगती हूँ कितनी भाग्यवाली होती हैं वो बेटियां
जिनके पिता उनकी हर ख्वाहिशों को पूरा करते हैं
कैसे फूलों की तरह हँसती और खेलती होंगी वो बेटियां
जिनकी हर मुस्कान को पिता सींचता होगा

पर कुछ बेटियों ने तो
अपनी तमाम ख्वाहिशों को ही मार लिया
ताकि कम हो सके पिता के काँधे का बोझ
जो मिला पहन लिया, फट गया तो सिल लिया
वैसे ही जैसे जुबान सिल के खड़ी होती थी पिता के आगे
जो पढ़ाया गया, पढ़ के ग्रेजुएट हो गईं

एक लोटा पानी देने और पिता के
चप्पल और जूते साफ करने भर का रिश्ता रहा उन बेटियों का
पिता के साथ हँसने और बैठना क्या होता है
जान ही नहीं पायी वो कभी
जन्म से लेकर जवानी तक क्या सहा और क्या घटा
कोई जिक्र नहीं करती हैं वो बेटियां
अब ब्याह दी गयीं हैं वो
बोझ थी उतार दी गयीं हैं
माँ बनकर जी भर कर दुलारती हैं अपने बच्चों को
भले अपना मन खाली का खाली ही रहा
पर ससुराल में सुघड़ और सुशील कहलाई जाती हैं
और हो भी क्यों ना
मन को मारना बचपन से ही सीखा है उन्होंने

रूची शाही