चिड़िया: वंदना पराशर

वंदना पराशर

अनंत आकाश को लांघती
नापती उसकी ऊंचाई को
तुम्हारे पांव
कोमल है चिड़िया
नन्हें-नन्हें पांव से
अनंत आकाश को छूती
तुम्हारे पांव
क्या कभी थकते नहीं
जिजीविषा तुम्हारी भी
अनंत है
समुद्र की तरह
अथाह
झील सी गहरी
तुम्हारी आंखों में
दिखती है नूतनता की चाह
चिड़िया
क्या तुम इसी धरती की वासी हो