दिलकश मकाम: समीर द्विवेदी

माना कि साथ चल न सका कारवां के
लेकिन ये मत समझ कि मेरे पाँव थक गए

दिलकश मकाम, राह में मिलते रहे मगर
जारी रखा सफर न किसी तौर हम रूके

मारा है किसने पीठ में खंजर नहीं पता
सब दोस्त कह रहे हैं कि ऐ दोस्त हम न थे

हैरान हैं वो कैसे सफर मैंने तय किया
राहों में मेरी खार जिन्होंने बिछाए थे

आसाँ नहीं है राहे-वफा आजकल नितान्त
हम खूब जानते थे मगर फिर भी चल पड़े

समीर द्विवेदी ‘नितान्त’
कन्नौज, उत्तर प्रदेश