(1)
दर्शन के लिए दूर से, आए हैं देखिए
कितने सलोने स्वप्न, सजाए हैं देखिए

बरसेंगे या उड़ेंगे, अभी कुछ पता नहीं
बादल बहुत काले-घने, छाए हैं देखिए

मेला लगा कलियों का, सुघड़ वाटिका के बीच
तितली-भ्रमर भी इत्र लगाए हैं देखिए

कम आय में परिवार को है पालना कठिन
सिर पर समस्त भार, उठाएँ हैं देखिए

घनघोर अंधकार है, लघु दीप हाथ में
ऊपर से बहुत तेज, हवाएँ हैं देखिए

पिटती रही युवती, किसी का मुँह नहीं खुला
कहने को लोग, बाँह चढ़ाए हैं देखिए

कितनी है भीड़, जेल से छूटा है माफिया
उपहार, हार मित्रगण, लाए हैं देखिए

(2)
हवा कक्ष में आती क्यों है
इतना भाव दिखाती क्यों है

नहीं गरजना, नहीं बरसना
नभ में बदली छाती क्यों है

छिपकर बैठी है डालों में
मैना मधुरिम गाती क्यों हैं

टूट-टूट जाते हैं सहसा
आशा स्वप्न सजाती क्यों है

कुछ दिन खिली खेत में सरसों
गेंहूँ से इठलाती क्यों है

भाग्य न बदलेगी जनता का
राजनीति बहलाती क्यों है

जीत न पाएगी नौका से
लहर स्वयं टकराती क्यों है

आसपास मड़राती तितली
मुझे देख उड़ जाती क्यों है

नहीं रहा कुछ लेना-देना
बात मित्र की भाती क्यों है

गौरीशंकर वैश्य विनम्र
117 आदिलनगर, विकासनगर
लखनऊ 226022
दूरभाष 09956087585