गुरु ही सर्वोपरि है: डॉ निशा अग्रवाल

डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान

महान कोई नही बनना चाहता? लेकिन महान बनने के लिए हर इंसान को ज्ञान की आवश्यकता होती है, जो हमें मिलता है गुरु से। हर सफल इंसान के जीवन में गुरु का अति विशिष्ट स्थान होता है। भगवान से भी ऊंचा दर्ज़ा होता है गुरु का। ज्ञान प्राप्ति का कोई भी मार्ग हो, कोई भी क्षेत्र हो, हर जगह से ज्ञान बटोर लेने में कोई हर्ज नही है। ज्ञान देने वाला उम्र में छोटा हो या बड़ा, वह हमारा गुरु ही होता है। गुरु किसी भी रूप में हमको ज्ञान अर्जित करने के रास्ते दिखाता है, जैसे माता- पिता, भाई- बहन, दोस्त, छोटा बच्चा, अजनबी, राहगीर आदि।

गुरु ही सर्वोपरि होता है
भविष्य का निर्माता होता है
समाज की नींव होता है
जिसके प्रति भी मन में सम्मान होता है,
जिसकी डांट में भी एक अद्धभुत ज्ञान होता है,
जिसके पास हर मुश्किल का समाधान होता है,
जन्म देता है कई महान शख्सियतों को,
वो गुरु तो सचमुच बहुत महान होता है
शुरू होती है माँ के गर्भ से, सीखने की अभिलाषा
प्रथम गुरु है मेरी माता,
जिसने मुझे चलना सिखलाया
अँगुली पकड़ कर ,मुश्किल राह पर,
आगे बढ़ना है सिखलाया
कैसे करूँ बखान गुरु का,
गुरु तो असीमित भंडार होता है ज्ञान का
ऐसा कोई कागज़ नही,जिसमे वो शब्द समाए,
ऐसी कोई स्याही नहीं,
जिससे सारे गुरु गुण लिखे जाएं
मेरी बाणी क्या बोलेगी,
कितनी कलम चलाऊँ मैं
दूर -दूर तक सोचूँ जितना भी,
गुरु गुण लिख ना पाऊं मैं
गुरु ने ही अन्धेरी राहों में,
रोशनी की किरण दिखलाई है
जीवन के सारे दुख हर कर,
खुशियों की फसल उगाई है
निस्वार्थ भाव की सेवा देकर,
अच्छे गुण सिखलाये है
कठिन राह में हिम्मत देकर,
आगे वही बढ़ाये हैं
मैं थी अज्ञानी-अनजानी,
ज्ञान राग सिखलाई है
दुनियां के अनजान सफर में ,
मेरी पहचान बनाई है
अक्षर-अक्षर मुझे सिखाकर,
शब्द-शब्द का अर्थ बताकर,
सही-गलत का ज्ञान कराकर,
मुश्किल सवाल का हल बताकर,
जीवन के हर मूल्य बताकर,
कभी प्यार कर, कभी डाँटकर,
बेड़ा पार लगाई है
गुरु को मेरा प्रथम अभिनंदनं,
जीवन बना दिया मेरा चंदन