इस लोक के पार: अनामिका सिंह

अनामिका सिंह
मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश

मैं रुद्र के प्रति
आश्वस्त हूं
और प्रेम के प्रति समर्पित
क्या आस्थाओं के चरम पर
दुख ठहरेगा?

हंसती हुई प्रेमिका
प्रेम करने वाले प्रेमियों को मिली
रोती हुई प्रेमिका
श्राप थी
स्वयं की हंता

आज भी किताबों में
छिपे है
कुछ जरूरी बेनाम श्वेत पत्र
आपातकाल की
संध्या बेला में
मैं सघन चेहरा उकेरती हूं
जो अनदेखा है

और अंततः
मेरे पास कुछ कहानियां
शेष रह जाएगी
जिन्हें लादकर स्मृति पर
मैं ले जाना चाहूंगी
इस लोक के पार