ख़ामोशी के दरिया में: प्रार्थना राय

प्रार्थना राय
ग्राम-पोस्ट: गौरा
देवरिया, उत्तर प्रदेश

ख़ामोशी के दरिया में
मन का कंकर उछला है
मूक हृदय के कोने से
गुमसुम आहट आयी है

बिन आह लिए सिसक रही हूं
बेढब शब्दों के इतराने पर
जोड़ रही हूं शब्द-शब्द
तन्हाई के दस्तावेज़ों पर

लौटना चाहती हूं फिर से
उन यादों के गलियारों में
जहाँ खुशियों के औजार छिपे हैं
बीते पलों के पिटारों में

बोझिल मन की आँखों से
पीछे मुड़कर देखती हूं
इक सन्नाटे की दीवार बनी है
जिसपे अंकित है मेरी मुस्कानों के छींटे

योगी बन मन झूम रहा
अनहद गूँजे सुर ताल के संग
रोम-रोम अचेत हो कह रहा
कहाँ गये वो आलोकिक पल

मन ही मन सोचा करती हूं
अहसासों का बना तराना
मन के पाखी को डाल रही हूं
अमोल यादों का दाना

आसमान पर देख, टंगा सितारा
आत्मलीन सबको कर लेती
सुगंध पसारती जब भी पुरवाई
हृदय सरोवर लेती अंगडाई

मनुहार लगा रही हूं हर पल
संवादों की ऋतुओं से
नवल शगुन लेकर आओ फिर से
मेरे श्वेत मन के आँगन में