निभानी पड़ती है: संजय अश्क बालाघाटी

तकलीफ़ छुपाकर हंसी दिखानी पड़ती है,
भूमिका अपनी सबको निभानी पड़ती है

अपनी महक फिजाओं में भरने के लिए
जिंदगी अपनी कांटों में बसानी पड़ती है

ऐसे ही नहीं होता कामयाब कोई आदमी
कई रातें उसको आंखें जगानी पड़ती है

मूंछ रखने भर से ही कोई मर्द नहीं होता
ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी पड़ती है

संजय अश्क बालाघाटी
संपर्क- 9753633830