प्यार का आग़ाज़: हर्षिता दावर

कुछ जनवरी के जाड़े के कम होने का आभास
कुछ फ़रवरी के साथ हल्के प्यार का आग़ाज़
पढ़ते हैं आगे क्या करता है,
ये प्रेमी प्रेमिका में लिपटा नया पुराना लिबास
एक के बाद एक उतरन सा महसूस करना
अभी नहीं तो कभी तो ज़मीर,
आवाज़ लगाता क्या करता आया
कुछ लच्छा पराठे सी परत दर परत खा जाता विचार पक्का
क्यूंकि दिल की भूख और जिस्म की प्यास बुझाता या जगाता
आज कल का निर्मोही प्यार बस भरोसा इतना सा ही जगा पाता
उन कर्मयोगी, कामयोगियो के शूरवीरों को प्रणाम हर बार नया दौर आता
कितने आंदोलन लेकर नया मोर्चा निकलता फिर 14 फरवरी आ जाता
पगडंडी पर चलते कच्चे वादों को धागे के साथ
बांध कर वहीं बहती छोटी नदी में बहाया
छोटी बातों को वहीं तोड़ कर फेंका होता
ये कच्ची उम्र में कच्ची कली का ये अंदाज ना होता
कहने को आज का दौर अलग है,
रोक टोक, पर सब को शौक है
फिर भी बड़ी चुनौती सी होती है
अपनी इज्ज़त की बारीकी से जांच शुरू करती है
अच्छा बुरा सब जानते हैं मगर
आज की नई जनरेशन को ऑनलाइन सब मामूली दामों में मिल जाता है
कुछ गलत, कुछ सही, कुछ समझ, कुछ नासमझ
कुछ बहकावे, कुछ जज़्बाती, कुछ निर्दोष, कुछ विद्रोही,
कुछ भूखे, कुछ लाचार, कुछ मर्द, कुछ बलात्कार, कुछ मर्दानी,
कुछ मर्द संग संग चलते हैं इन सबके, कच्चे वादों में पक्के इरादे भी होते है
सच्ची इश्कजादे बन निकल पड़ते हैं
एक गुलाब जो 10 रुपए का, होता 100 रुपए का,
दिल को दिलासा देकर निकल जाते समय उपयोग करते
कभी निराशा, कभी आशा हाथ आती,
लत जो लग गई आज ये, कल वो, परसों की परसों
गाड़ी चल रही झूठ की नींव रख कर जोड़ी बना ली
सच्ची मोहब्बत कर के देखी है?
या मौज उड़ानी ही ज़वानी ज़िंदाबाद के नारे लगाते
बस यूं ही जिंदगी तबाह करते रहना है
जवानी आती है दिल से उबाल लाती है,
जुबान कड़वी और तेज़ तर्रार हो जाती है,
पर किसी को ही संस्कारो को नींव को धरोवर का मान भी सिखाती है
हजारों की तादाद में नीलाम होती है
जवानी के जोश बाप के पैसे पर ऐश आज कल की फिकर किसे है वाली सोच
कमाते तो 10 रुपए की चाय पिलाकर
वही सड़क किनारे सच्ची मोहब्बत वाला इज़हार करते नज़र आते
अभी बुरा भी बहुत लगता होगा छोटे से टॉपअप के लिए क्या से क्या करते हैं
आज लड़की या कभी जवान लड़के की फोटो लगाकर
बूढ़े भी अब जवानी वाले मज़े लेना चाहते है,
नई तकनीक से आईडी बनाकर जवान बन ने लगे हैं
इतना ही ना होता तो जवानी का जोश ठंडा ना होता तो
मर्दाना ताकत के परचम दीवारों सड़को पर लहराते रहे हैं
जैसे गुटका, खैनी, सिगरेट खरीदने पर 18 साल वाली रोक है
दारू के ठेकों पर कंडोम की दुकानों पर ये रोक थाम क्यों नहीं है
कुछ खुल कर बोलना तो पैड काली पन्नी में जैसे फसाद क्यों हैं
जो जायज़ है वो नाजायज बात जो नाजायज वो जायज़ बात क्यों हैं
झूठा करार करके लड़की को ही बदनाम करने लगे हैं
कभी मांग कर डाल ते कभी फोटो शेयर करते
झूठी या गलती से ओरिजनल फोटो शेयर करते तो ब्लैकमेल करते
और बदले में खुद की उसकी लाचारी का फायदा उठाते हैं
ये मोहब्बत है या खुलेआम दरिंदगी है
आज कल बहुत सोच समझ कर जिंदगी में फैसले लीजिए
आप बहुत समझदार हैं मगर कभी कुछ समझ न आए
या फंसा महसूस हो डर कर नहीं किसी से सलाह लीजिए
ये न सोचिए बदनामी होगी,
ये सोचिए कितने आगे गलत कदम या फंसने से बचने के,
हम गलत नहीं होने देंगे, न किसी को गलत कहेंगे
जिसने गलत सोचा थोड़ी जवानी या
ग़लतफ़हमी के जोश में कितना बचाया है
खुद को किसी की ज़िंदगी में कभी हँसी लौटाई है
आज कल के नए तरीकों में तरीके बहुत हैं
गलत और सही, गलत सरल होगा, सही कठिन
मगर आप जो चुनना चाहे ये रास्ते आपके हैं
आज की ज़रा सी खुशी जिंदगी भर कलंक की निशानी ना बने
ये यकीं ख़ुद पे कर, कर्म पथ रख कर कदम बढ़ाएं

हर्षिता दावर