राब्ता- दुपिंदर गुजराल

तू अहसास है, रूह है
इबादत है, बंदगी है
प्यार है, ज़िंदगी है
माँ है, हाँ तू माँ है

तेरी जब याद आती है तो रूह काँप उठती है
और फिर ज़हन में सवाल आता है
क्या इतना ज़रूरी था..?
मुझे दूसरे घर भेजना
शायद यही रिवाज है, दस्तूर है
यही सोच कर मन को समझा लेती हूँ माँ

जब भी कोई मुश्किल आती है
सब से पहले तेरी याद आती है
फिर तेरी सीख याद आती है
कि यह ज़िंदगी है
मुश्किलें आएँगी, चले जाएँगी
इनसे डरना नहीं है,
इनका सामना हिम्मत से
मुस्कुराते हुए करना है

तू तीरगी भगाने का ज़रिया है
तू तजस्सुम जगाने का ज़रिया है
माँ है , हाँ तू माँ है

शायद सबसे ज़्यादा मेरे घर बेटा हो
यह तूने ही चाहा होगा
लेकिन दूसरी बेटी होने पर
तेरा चट्टान बन कर
मेरे सामने आना और मुस्कुराते हुए बोलना
तू कितनी क़िस्मत वाली है
तेरी बेटियाँ तुझे मुझसे भी ज़्यादा प्यार करेंगी,
तेरा दुलार करेंगी,तेरा साथ देंगी
तेरा यह रूप देख कर मेरी आँखें भर आई
एक माँ ही है जो बच्चों के लिए
कोई भी रूप धारण कर सकती है

तू नियामत है,तू इबादत है
माँ है, हाँ तू माँ है

मेरी बेचैनी का, मेरी तबियत ठीक न होने का
इल्म तुम्हें कैसे हो जाता है
हैरान हूँ मैं माँ
मेरी आँखें नम होने पर
तेरी आँखों का ख़ुद ब ख़ुद भर जाना
यह एहसास दिलाता है
कितना पाक़ है यह रिश्ता
कितना अलग है यह रिश्ता

तेरी हर सीख को दिल से अपनाया है
बड़ों के आगे नहीं बोलते
ये अपनी बेटियों को भी सिखाया है
भगवान सब का है उनके आगे शीश झुकाना है
ऐसा उनको भी बतलाया है
जब भी मैं रोती थी तेरा बोलना
इन मोतियों को ऐसे मत गिरने दो
ऐसा नानी कहती है
यें उनको भी बताया है

तू बे शुमार है तू फ़रोज़ाँ है
तू तबस्सुम है तू माँ है

-दुपिंदर गुजराल