साँस की चाक पर: आशा पाण्डेय ओझा

आशा पाण्डेय ओझा
जन्म ओसियां, जिला- जोधपुर, राजस्थान
पिता- शिवचंद ओझा, माता- रामप्यारी ओझा
आशा पाण्डेय ओझा की स्कूली शिक्षा छतीसगढ़ बिल्हा व ओसियां में व कॉलेज स्तर की पढाई जोधपुर में हुई, आपने बीए के बाद लॉ किया व जोधपुर हाई कोर्ट में प्रेक्टिस शुरू की। प्रैक्टिस करते हुवे स्वयंपाठी विधार्थी के रूप में हिंदी साहित्य में एमए किया। आपका विवाह जितेन्द्र पाण्डेय निवासी अजमेर से हुआ, जो राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं।
आशा पाण्डेय ओझा की अब तक कुल पांच पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, आप निरंतर निर्बाध गति से गीत ग़ज़ल, दोहे, छंद, बाल कथाएं कविता, हाइकु, आलेख, शोध -पत्र आदि हर विधा में अपनी कलम शोध रही हैं। साथ ही राजस्थानी में अनुवाद भी करती हैं।
कई राज्यों के कई शहरों में आपका विभिन्न संस्थाओं व अकादमियों द्वारा अब तक 150 से अधिक बार सम्मान हो चुका। आपने हिंदी साहित्य के तीन अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में भी भाग लिया अब तक 50 से अधिक राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय, साहित्य संगोष्ठियों में भाग लिया 20 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किये कई कार्यक्रमों में मंच संचालन भी किया लेखन व समाज सेवा को ज़िंदगी का अहम हिस्सा मानती हैं।
आपकी प्रकाशित पुस्तकें एक बूँद समुद्र के नाम (काव्य विधा), एक कोशिश रोशनी की ओर (काव्य विधा) त्रिसुगंधि सम्पादित (गीत, ग़ज़ल, कविता) व ज़र्रे ज़र्रे में वो है, वक़्त की शाख से प्रकाशित हो चुकी हैं व आगामी पुस्तकें पाखी हाइकू संग्रह, दोहा संग्रह व एक कहानी संग्रह है।
आशा पाण्डेय ओझा त्रिसुगन्धि साहित्य, कला व संस्कृति संस्थान की संस्थापिका व अध्यक्ष भी हैं। कन्या भ्रूण हत्या रोकथाम हेतु कई प्रतियोगिताएँ व कार्यक्रम करवा चुकी हैं। महिला उत्थान व जागृति हेतु कई कार्यक्रम करवा चुकी। कार्यक्रम की 250 से अधिक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व ई-पत्रिकाओं में कविताएं, मुक्तक, ग़ज़ल, क़तआत, दोहा, हाइकु, कहानी, व्यंग्य, समीक्षा, आलेख, निबंध, शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं

ईमेल: [email protected]

ग़ज़ल

हर बशर जिंदगी का सताया हुआ
पर गले जिंदगी को लगाया हुआ

आरज़ू बीज से अलहदा क्यूँ करें
काटना तय वही जो उगाया हुआ

बह रहा बन ग़ज़ल ज़हन में रात-दिन
सच कहूँ दर्द है वो छुपाया हुआ

आदमी इक घड़े के सिवा कुछ नहीं
साँस की चाक पर जो चढ़ाया हुआ

चश्म की पुतलियां देख पाती नहीं
साँस दर साँस जो है समाया हुआ

गंध ओ अर्क की क्या ग़रज़ हो उसे
है पसीने से जो भी नहाया हुआ

कब बदलना पड़े देह का यह मकां
बांध अस्बाब सारा जमाया हुआ

गीत

भर रहा है समय प्राण में गीत को
भूल कर वेदना साध संगीत को

भोर का शीश है रेत के पाँव में
गंध सौंधी उड़े खेत में गाँव में
खग सभी कोटरों से निकलने लगे
धूप के लाड़ में सब मचलने लगे।
वो अँगूठा दिखाने लगे शीत को

खेजड़ी के तले चाँद क्यूँ रुक गया।
ये गगन भी धरा की तरफ़ झुक गया
मंद सी पड़ गई साँझ की वात भी
केसरी-केसरी घुल रही रात भी
बात मन की कहो आज मन मीत को

ओस की बूँद जो पुष्प पर झर गई
पाँखुरी-पाँखुरी नेह से भर गई
लहलहाती हुई धान की बालियाँ
झुंड में घूमती फिर रही तितलियाँ
गुनगुनाती हुई प्रेम की रीत को

तारीका बिछ गई रात के खाट पर
चाँद बैठा हुआ मेघ की टाट पर
साँवली-साँवली यामिनी बढ़ रही
सीढियाँ-सीढ़ियाँ व्योम पर चढ़ रही
लिख रही है दिशाएं सभी प्रीत को