सिर पे भाई का हाथ: रूची शाही

रूची शाही

सिर पे भाई का हाथ
आशीर्वाद ही नहीं एक आश्वासन होता होगा न
जो कहता होगा मैं हूं और रहूंगा
तुमको अगर लड़ के आना हो सास ननद और भरतार से
तो निश्चिंत होकर लड़ के आना
तुम चुपचाप सहोगी तो मेरे होने का क्या फायदा फिर

कैसे फूट-फूट कर रोती होंगी न वो
अपने भाई के कलेजे से लगकर
ससुराल में कुछ ऊँच-नीच हो जाने पर
भाई समझाता होगा, ढाँढस बंधाता होगा उनको
वो मन ही मन नहीं घुटती होंगी
खुल कर बतियाती होंगी अपनी भौजाई से सब कुछ

वो बहनें भी अपनी अकड़ में रहती होंगी न
नैहर और ससुराल में
जिनके भाई या दादा होंगे किसी सरकारी महकमे में
ब्याही गई होंगी खूब दान दहेज देकर
और उनके मर्द भी तो उनसे खूब प्रेम करते होंगे
ससुराल में रोब भी बहुत होगा उनका
अधिकार से छूती और पहनती और खाती होंगी सब कुछ

उनकी भौजाई भी तो भेजती होगी सनेश में
गमकौआ चिउरा चावल सेंदुर टिकुली अलता
और सास के लिए भी मोटे किनारे वाली साड़ी
और फोन पे पूछती होंगी सास कुछ बोल भी रही थी क्या…
कुछ कमा हो तो बताना बाबनी
फिर जायेंगे तुम्हारे भाई होली पे मिलने को

उनका मरद भी तो ताने नहीं मारता होगा
और सास ससुर भी हां में हां मिलाते होंगे
कोई टोका-टाकी नहीं होती होगी उन पर ना
मन मासोस कर नही
मन भर वो जीती होंगी ससुराल में भी…