तुम्हारी क़ातिल निगाहें: प्रार्थना राय

ये सच है तुमसे मेरी निस्बत रही
खराबी तुम्हारे इश्क़ में नहीं, 
तुम में रवादारी नहीं रही

कोसते हो सरेआम हमको
खोट मेरी निगाहों में नहीं,
तुम्हारी क़ातिल निगाहें
हमेशा मख़मूर रही

अब ये ना कहना तुम्हारी
कमसिन नजर में तहजीब नहीं,
मेरी शख्सियत पे उंगली ना उठाना

आदतन तुम्हारे इशारों में कोई तहजीब नहीं,
तरतीब तुम्हारी अदावत की यूं ही जारी रही,
कैफियत लेने की कोई जरूरत नहीं

इरादतन मैं तुमसे दूर नहीं गयी, 
हम वफा से वफा करते रहे,
तुम सितम ढ़ाते गए

प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश