उनसे ही हाथ बढ़ाया न गया: राजीव सिन्हा

हम तो फैलाए हुए बैठे थे अपनी बाहें
बस उनसे ही अपना हाथ बढ़ाया न गया

यूँ तो दुनिया में मिलते हैं अनजान कई
बस उनसे ही एक जाना अपनाया न गया

किस से करूँ शिकवा अपनी रुसवाई  का
जब उनसे ही दर्द ए जिगर बताया न गया

पिरोकर रखे थे लफ़्जों के मोती गज़ल में
न जाने क्यूँ उनसे ही एक गीत गाया न गया

हम तो फैलाए हुए बैठे थे अपनी बाहें
बस उनसे ही अपना हाथ बढ़ाया न गया

ढूंढते फिरते हैं सन्नाटो में अपना कोई
अपनों से ही खुद को अपनाया न गया

थामने की जब कोशिश की उनका दामन
शर्मो-हया से उनसे सामने आया न गया

हम ने तो  निभाई वफ़ा अपने लख्तोजिगर से
उस बेवफ़ा से ही साथ हमारा निभाया न गया

हम तो फैलाए हुए बैठे थे अपनी बाहें
बस उनसे ही अपना हाथ बढ़ाया न गया

राजीव सिन्हा ‘अनजाना’