पृथ्वी पर रहकर भी- जयलाल कलेत

वो उड़ रहा था आसमान पर,
रब को ये मंजूर न था,
पद के घमंड में हमेशा,
इंसानियत से दूर था

ढाया जुल्म कमजोरों पर,
क्योंकि, सामने वाला मजबूर था,
चल गई रब की लाठी अब,
खुद पर जिसे गुरुर था

किसी के उम्र का लिहाज न जाना,
क्योंकि, वो एक क्रूर था,
रब की लाठी ऐसी पड़ी की,
अब रोने पर मजबूर था

उसकी ऊंची कुर्सियों पर,
मानवता का सूर न था,
सारी हेकड़ी उतर गई अब
क्योंकि ऊपर वाला मजबूर था

पृथ्वी पर रहकर भी वह,
धरातल से हमेशा दूर था,
रब का फैसला आज और,
कल भी यही दस्तूर था

-जयलाल कलेत
रायगढ़, छत्तीसगढ़