प्रेमिकाएं: रूची शाही

प्रेमिकाएं बद्दुआएं नहीं दे सकती
अगर देती तो वो प्रेमिकाएं नहीं होती

प्रेमिकाएं प्रेम में पगी हुई पकवान की तरह होती है
थोड़ी भुरभुरी अंदर तक मिठास से भरी हुई
हाँ कभी कभी रूठ कर थोड़ी कसेली हो जाती है
पर उनकी मुहब्बत की मिठास कभी कम नहीं होती

प्रेमिकाएं माँ की परछाई सी भी होती है
हर वक्त महबूब की फिक्र में घुली हुई
आवाज़ भारी सी लग रही है तुम्हारी
फिर से सर्दी उफ्फ क्या करूँ मैं तुम्हारा

प्रेमिकाएं नहीं रख पाती तीज और करवाचौथ के व्रत
प्रेमिकाएं नहीं पहनती ढोलना और मंगलसूत्र
पर फिर भी वो अपने महबूब की लंम्बी उम्र
और खुशी की खातिर 
जाने कितने दर्द को चुपचाप सहती जाती है

प्रेमिकाएं फकीर की दुआओं की तरह होती है
बेहद सच्ची निःस्वार्थ और निष्कपट

रूची शाही