साथी तुम आवाज़ न दो: रूची शाही

सौ आँसू रखकर आँखों में
तोड़ गए तुम नेह के बंधन
दीद को तेरे तड़प तड़प के
बरस रहा आँखों से सावन
जो होना था बीत चुका अब
फिर से कोई आगाज़ न दो

साथी तुम आवाज़ न दो

दोष नहीं कुछ भी है तेरा
दुख विधि का विधान रहा
इतना चाहा है मैंने तुमको
कि चाहत का अभिमान रहा
मैं याद पुरानी बन के रहूँ
मुझको नया अंदाज न दो

साथी तुम आवाज़ न दो

सोच रही अब बैठ अकेले
सारे सुख-दुख मिल के झेले
खोये रहे बस एक-दूजे में
छोड़ दुनिया के सारे झमेले
कैद रहने दो मन का पंछी
तुम पंख न दो परवाज न दो

साथी तुम आवाज न दो

रूची शाही