समझने लगा हूँ: सुरेंद्र सैनी

तेरा खामोश-ए-साशा समझने लगा हूँ
तेरी आँखों की भाषा समझने लगा हूँ

कोई अनकही बात दबी तेरे दिल में
तेरे एहसासे-शीशा समझने लगा हूँ

जरूरी है नज़र से नज़र का मिलना
तेरा इशारा ज़रा सा समझने लगा हूँ

कोई तार तो है हम दोनों के दरमियाँ
हर जज़्बात बेतहाशा समझने लगा हूँ

हर रंग को अपने तू मुझमें घोल दे
मैं तेरे प्रेम का कासा समझने लगा हूँ

‘उड़ता’ इस ज़माने को ख़बर हो चली
मैं खुद को तमाशा समझने लगा हूँ

सुरेंद्र सैनी बवानीवाल ‘उड़ता’
झज्जर, हरियाणा-124103
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