सनम कहते रहे: सुरेन्द्र सैनी

हर अल्फाज़ उनसे हम कहते रहे
यों जज़्बात निगाह से हम कहते रहे

बखुदा हमने उन्हें क्या समझा
वो तो हमको ही सनम कहते रहे

कहीं हो ना जाते वो ज़्यादा बरहम
उनसे हम हाले-दिल कम कहते रहे

कितनी अजीब अपनी शब गुजरी है
रातभर किस्सा-ए-ग़म कहते रहे

उनके लबों को मय कहा तो क्या
जामे-ज़ेहराब को चश्म कहते रहे

सफा-ए-चर्ख जब सिहा किया तो
हम अपनी आह को कलम कहते रहे

तमाम उम्र निर्दोष बने रहे ‘उड़ता’
और उनपर इल्जाम हम कहते रहे

सुरेंद्र सैनी बवानीवाल ‘उड़ता’
झज्जर, हरियाणा- 124103
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