सरस प्रेम- अनिल कुमार मिश्र

सब खेत तुम्हारी बाट जोहते
ऐ मेघ! छलक मत बरस भी जा
नीचे जल हो ऊपर हिम
तरल सघन का भेद बता जा

हरियाली खेतों में आये
दुःख बीत गए, अब तो सुख आये
लघुता प्रभुता की दूरी तज
दुःख भी गाये, सुख आ जाए

जीवनदान की ताकत तुझमें
जब तुम निर्झर, माटी उर्वर
सब रिश्ते भी उर्वर हो जाएँ
सरस प्रेम ही बरसे निर्झर

-अनिल कुमार मिश्र
हज़ारीबाग़, झारखंड