एक अधूरी कहानी: दया भट्ट

दया भट्ट
उत्तराखंड

मैं आज भी उसे तलाशता रहता हूं, हर जगह, हर वक्त सोते और जागते। पता नहीं वह क़हाँ होगी, होगी भी कि नहीं होगी, हो सकता है मुझे गलतफहमी है कि वह अब इस दुनिया में नहीं है। हम साथ रहे, सालों साथ जिए. हमने भविष्य के सुनहरे सपने संजोये।

फिर अचानक क्या हुआ कि मेरी दुनिया हमसे रूठ कर चली गई। अफ़सोस! हम अन्तिम बार मिल भी न सके। दिन गुजरे, महीने गुजरे, सालों गुजर चुके हैं वक्त के साथ रिश्ते बदले, कहानी बदली पर मेरा किरदार और उसके प्रति मेरा प्यार न बदल सका। मुझे आज भी याद है वह एक शोख चंचल सी लड़की जब मेरी जिंदगी में आई जीवन के कुछ सालों में ही जिंदगी भर की खुशियां मेरे दामन में सौंप कर मुझे जिंदगी भर के लिए तन्हा कर गई।

आज मेरे पास घर है, मेरे प्यारे से दो बच्चे है, प्यार करने वाली सुन्दर सी बीबी हैं, अपना व्यवसाय है, पर मैं फिर भी अधूरा हूं।

वर्षों बीत चुके हैं फिर भी यकायक कभी मैं भावुक हो जाता हूं। उसकी यादें मेरी धड़कनों से, मेरी सांसों से, लिपट कर जैसे कह रही हो मैं यही कहीं तुम्हारे ही आस-पास हूं। अपनी दीनता, अपनी मजबूरी का जब मुझे अहसास होता है उस वक्त मैं किसी सहारे को ढूंढता हूं जो मुझे मेरे पैरों पर खड़ा होने की हिम्मत दे सके। अपनी क़ाबिलियत के बल पर मैं आज मशहूर हूं अपनी शिक्षा, अपना व्यवसाय, खुद का घर, सब कुछ है मेरे पास… नहीं हैं तो बस! दूर खड़ी मेरी आंखों में आंखे डाले खिलखिला रही मेरी वह अधूरी तमन्ना….!

अपनी यादों में खड़ी वह मेरा मजाक उड़ा रही है और मैं हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहा हूं.. दिल में चुभी एक फांस तीस साल बाद तक जिन्दा है। उसकी कमी महसूस होना और उसका खटकना मेरी दिनचर्या में शामिल है। उसकी रूह को क्या पता कि कुछ पल ऐसे होते हैं, जो सांसों के साथ ही धड़कते रहते हैं और सांसों के साथ ही गतिहीन होते हैं। क्यों चाहता था उसे इतना मैं नही जानता? मैं अब भी उसे महसूस करता हूं, फासले से ही सही… लेकिन यह मुनासिब नहीं? खुली आंखों से देखे गये ढेर से सपनों में आज भी मैं उसे याद करता हूं।

आज भी अपनी अधूरी कहानी से एक मुलाक़ात के लिए मैं तरसता हूं।