यह कलयुग की करामात है- मनोज शाह

प्रलय महाप्रलय की ये रात है
यह कलयुग की करामात है

विनाश महाविनाश की महाकाल
छेड़ती प्रकृति की प्रवृत्ति विकराल

महा शक्तियां अपने वर्चस्व बचाने में
लगे है मानव सभ्य संसार मिटाने में

मानव द्वारा बोया हुआ
मानवता पर आघात है
यह कलयुग की करामात है

वक्त बेवक्त बेमौत इंसान मर रहा है
इंसानों से ही इंसान क्यूं डर रहा है

संसार अभी भी कितने विषयों से है परे
कम से कम ऊपर वालों के शक्ति से डरे

प्रतिद्वंद प्रतिकूल प्रतिप्रभाव
प्रति व्यक्तितत्व प्रतिघात है
यह कलयुग की करामात है

‘मैं’ शब्द को कभी भी नहीं मिल पाया महत्व
हृदय की अंतर्दृष्टि अंतर्मन है इसकी दायित्व

कमजोर हो जाती है सब के साथ वर्ष दर वर्ष में
मिलने के लिए बीत जाते हैं जीवन पूर्ण संघर्ष में

कहीं जीती हुई बाजी तो
कहीं हारी हुई जज्बात है
यह कलयुग की करामात है

प्रलय महाप्रलय की ये रात है
यह कलयुग की करामात है

-मनोज शाह मानस
नई दिल्ली