उदासियों के लिए- रूची शाही

ये गलत था कि मैं हमेशा
अपने हालात से
उपजी इन उदासियों के लिए
चाहती थी तुमसे कोई उपचार

अपनी जिद और अपनी बात
ऊपर रखने के लिये
विवश भी किया सहने के लिए
तुमको न जाने कितनी बार

जबकि सच तो ये था
तुम कभी पी नही सकते थे
मेरे मन की उदासियों को
क्योंकि तुम तो हर बार
मेरे होंठ के रंगों पे ही
आकर अटक जाते रहे

पर जानते हो
उदासियों के भी कुछ रंग होते है
कभी इनमें खीझ होती है
कभी एकाकीपन तो
कभी इनमें गहरी पीड़ा होती है
तुम खींझ तक पहुचते
एकाकीपन को कुछ समझते
पर पीर तक कभी नही पहुँच पाए
तुम्हारे हाथ

मैं चाहती थी कोई साथी
जो समझ सके
मेरे मन के हर भाव को
जो सहला सके
जज्बात के बदन पे उगे हज़ारों घाव को

मैं चाहती थी दर्द कोई भी हो
दवा बस तुम ही रहो
पर ये जबरदस्ती थी
हर मर्ज अलग होता है
उसकी दवा भी अलग होती है
अपने दर्द के लिए तुम्हें पैरासिटामोल
समझने की भूल मुझे
अब और उदास कर रही है

पर नही डालूंगी तुमपर
सहारे के नाम पर फिर कोई ज्यादती
हाँ कई रंग है उदासियों के
एक उदास रंग तुमसे प्यार का भी
मैं उदास ही थी
चलो कुछ और उदास सही

-रूची शाही