वही वतन दे दो: जयलाल कलेत

मुझे अपना वो मुस्कुराता
वही वतन दे दो,
मैं जैसा छोड़ा था बागवान,
मुझे वो चमन दे दो

न थी इतनी नफरतें,
न था खूनी खेल का मंजर,
मेरे हरेक लम्हों का,
मुझे मेरा समन दे दो

न चाहिए सहमी सी जिंदगी,
न घुट घुटकर जीना है,
खुली आंसमान में जीने का,
मुझे मेरा पवन दे दो

जात पात में उलझाकर,
भाईचारा तोड़ दी तुमने,
मुझे फिर वही गुलिस्तां भरा,
वही वतन दे दो

जिसकी दामन बचाने को,
वीरों ने दी थी कुर्बानीयां,
मुझे आन बान और शान से भरा,
वही वतन दे दो

हर इतिहास मिटाने की,
साजिशें कर लिए तुमने,
मुझे नया वतन नहीं,पुराना,
वही वतन दे दो

जयलाल कलेत
रायगढ़ छत्तीसगढ़