वंदना मिश्रा की कुछ कविताएं

प्रोफेसर वंदना मिश्रा
हिन्दी विभाग
GD बिनानी कॉलेज
मिर्ज़ापुर- 231001

कविता संग्रह
1.कुछ सुनती ही नहीं लड़की
2. कितना जानती है स्त्री अपने बारे में
3.खिड़की जितनी जगह
गद्य साहित्य
1. सिद्ध नाथ साहित्य की अभिव्यंजना शैली पर संत साहित्य का प्रभाव
2. महादेवी वर्मा का काव्य और बिम्ब शिल्प
3.समकालीन लेखन और आलोचना
प्रकाशन
विभिन्न पुस्तकों में लेख एवं विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ एवं लेख प्रकाशित। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से कविताओं का प्रसारण।

आँच

गर्मियों में तेज आँच देख कर माँ कहती थी
“आग अपने मायके आई है”
और फिर चूल्हे की लकड़ियां
कम कर दी जाती थी

मैं कहती थी” मायके में तो
उसे अच्छे से रहने दो माँ
कम क्यों कर रही हो?”

माँ कहती थी
“ये लड़की
प्रश्न बहुत पूछती है”

बाद में समझ आया

प्रश्न पूछने से मना करना
आग कम करने की तरफ
बढ़ा पहला कदम होता है

आदेश

उठो!
कहा तुमने मेरे बैठते ही
जबकि बैठी थी मैं
तुम्हारे ही आदेश पर

डाँटा तुमने इस बेमतलब की
उठक बैठक पर,
फरमाया दार्शनिक अंदाज में
कितनी प्यारी लगती हो
डाँट खाती हुई तुम
मैं खिल उठी

देखा सिर से पाँव तक तुमने
और कहा “क्या है ही प्यार करने लायक तुम में”

मैं सिमट गई

सारी जिंदगी देखा
तुम्हारी नज़र से

और खुद को
कभी प्यार न कर सकी

खिड़की जितनी जगह

दीदी लोग पड़ोस के मौर्या जी के
घर चली गई थी
बहू देखने

जबकि पिता जी और उनमें
दीवार के लिए लाठी
और मुकदमा चल चुका था
सचमुच

चुपके से गई और बहू देखने की
फरमाइश कर दी
मौर्या जी
बड़बड़ाये
पर उनकी पत्नी
हँस के बोली
घर से बिना बताए आई हैं
ये सब
दिखा दो

बहू देख
उससे गाना सुन,
लड्डू ले लौटी तो
उसे छिपाना
बड़ा कठिन लगा उन लोगों को

कुछ खाया छत पर जा
कुछ फेंक दिया

बाद के दिनों में
मुहल्ले की किसी स्त्री
के आने पर बढ़-चढ़ के बड़ाई की
बहू की तो पोल खुली
माँ ने हँसते हुए धमकाया

फिर पता नहीं क्या गुप्त सन्धि हुई
कि खिड़की से देख नई बहू को
माँ ने मुँह दिखाई दी

दीवारें नहीं टूटती
पर महिलाओं ने
हमेशा बना रखी है
एक खिड़की जितनी जगह
प्रेम के लिए