ये होते हैं गांव- अरुण कुमार

पकी फसल, कच्ची सड़क
और बगियन की छांव
सुख दुख में सबहि मिले
ये होते है गाँव

है लिहाज़ अपने से बड़ों का
समाधान हो हर लफड़ों का
पता नहीं कब नज़र लगी
इन अमराई की छावों को
कृत्रिमता ने लूट लिया
आदर्शो को गांवों को

भौतिकता हुई असरदार
जनमानस के जज्बातों पर
संग नहीं, हुड़दंग नहीं
अब नही पुराना पीपल है
जहाँ लगे चौपाल खुले में
नहीं रहा अब वह हाल है

-अरुण कुमार नोनहर
बिक्रमगंज, रोहतास
संपर्क- 7352168759