समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करता है देवशयनी एकादशी का व्रत: इस वर्ष बन रहे हैं तीन विशेष शुभ योग

सनातन संस्कृति में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार यूं तो वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं और हर एकादशी का अपना एक विशेष महत्व है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। देवशयनी एकादशी का व्रत करने से कई हज़ार यज्ञ के समान फलों की प्राप्ति भी होती है। इसलिए भी इस दिन विधि-विधान अनुसार व्रत करने से जातक अपनी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हुए, अपने सभी पापों से मुक्ति भी पा लेता है।

पौराणिक मान्यता है कि देवशयनी एकादशी के दिन से चार मास तक भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर चार महीनों बाद तुला राशि में सूर्य के प्रवेश करने पर उन्हें उठाया जाता है। उस दिन को देवोत्थानी या देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है। इस बार रविवार 10 जुलाई को देवशयनी एकादशी है। इस दिन से अगले 4 मास के लिये सभी शुभ कार्य रोक दिये जाते हैं, खासतौर पर विवाह, उपनयन, मुंडन सहित संस्कारों, यज्ञ, गोदान, गृहप्रवेश आदि मांगलिक और शुभ कार्यों पर रोक रहती है।

व्रत की विधि

एकादशी के दिन प्रातःकाल उठें। इसके बाद घर की साफ-सफाई तथा नित्य कर्म से निवृत्त हो जाएँ। स्नान कर पवित्र जल का घर में छिड़काव करें। घर के पूजन स्थल अथवा किसी भी पवित्र स्थल पर प्रभु श्री हरि विष्णु की सोने, चाँदी, तांबे अथवा पीतल की मूर्ति की स्थापना करें। तत्पश्चात उसका षोड्शोपचार सहित पूजन करें। इसके बाद भगवान विष्णु को पीतांबर आदि से विभूषित करें। तत्पश्चात व्रत कथा सुननी चाहिए। इसके बाद आरती कर प्रसाद वितरण करें। अंत में सफेद चादर से ढँके गद्दे-तकिए वाले पलंग पर श्रीहरि विष्णु को शयन कराना चाहिए। व्यक्ति को इन चार महीनों के लिए अपनी रुचि अथवा अभीष्ट के अनुसार नित्य व्यवहार के पदार्थों का त्याग और ग्रहण करें।

पदम् पुराण के अनुसार देवशयनी एकादशी के दिन कमललोचन भगवान विष्णु का कमल के फूलों से पूजन करने से तीनों लोकों के देवताओं का पूजन हो जाता है। रात्रि के समय भगवान नारायण की प्रसन्नता के लिए नृत्य,भजन-कीर्तन और स्तुति के द्वारा जागरण करना चाहिए। जागरण करने वाले को जिस फल की प्राप्ति होती है,वह हज़ारों वर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता। इस व्रत को करने से प्राणी के जन्म-जन्मांतर के पाप क्षीण हो जाते हैं तथा जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। 

शुभ मुहूर्त एवं योग

पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी तिथि का आरंभ शनिवार 9 जुलाई को शाम 4:39 बजे होगा और रविवार 10 जुलाई को दोपहर 2:13 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी। ऐसे में उदयातिथि अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत रविवार 10 जुलाई को किया जायेगा। देवशयनी एकादशी के दिन तीन विशेष योग भी बन रहे हैं। इस दिन रवि योग, शुभ योग और शुक्ल योग बन रहे हैं। शुभ योग प्रात:काल से लेकर देर रात 12:45 बजे तक है। उसके बाद शुक्ल योग प्रारंभ हो जाएगा।

देवशयनी एकादशी के दिन रवि योग प्रात: 5:31 बजे से शुरु होगा और सुबह 9:55 बजे तक रहेगा। ये सभी योग मांगलिक कार्यों के लिए शुभ है। जो लोग 10 जुलाई को देवशयनी एकादशी का व्रत रखेंगे, उनके लिए पारण का शुभ मुहूर्त अगले दिन सोमवार 11 जुलाई को प्रात: 5:31 बजे से लेकर प्रातः 8:17 तक रहेगा।