Thursday, April 25, 2024
Homeआस्थाहनुमान चालीसाहमारे हनुमान जी विवेचना भाग चौदह: भूत पिसाच निकट नहिं आवै, महाबीर...

हमारे हनुमान जी विवेचना भाग चौदह: भूत पिसाच निकट नहिं आवै, महाबीर जब नाम सुनावै

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय
प्रश्न कुंडली एवं वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ
साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया
सागर, मध्य प्रदेश- 470004
व्हाट्सएप- 8959594400

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरे सब पीरा।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।

अर्थ
आपका नाम मात्र लेने से भूत पिशाच भाग जाते हैं और नजदीक नहीं आते।
हनुमान जी के नाम का निरंतर जप करने से सभी प्रकार के रोग और पीड़ा नष्ट हो जाते हैं।

भावार्थ
महावीर हनुमान जी का नाम लेने से ही बुरी शक्तियां भाग जाती है, क्योंकि हनुमान जी अच्छी शक्तियों के स्वामी हैं। अगर हम आधुनिक भाषा में बात करें तो नेगेटिव एनर्जी वाले भूत पिचास हनुमान जी के नाम के पॉजिटिव एनर्जी के कारण समाप्त हो जाते हैं। हनुमान जी के नाम का एकाग्र होकर पाठ करने से समस्त प्रकार की पीड़ाएं समाप्त हो जाती हैं। समस्त प्रकार की पीड़ा से यहां पर तात्पर्य दैहिक, दैविक और भौतिक समस्त प्रकार की तकलीफ एवं दुख से है।

संदेश
श्री हनुमान जी का नाम जपने से आप भय मुक्त बनते हैं। आपको डर नहीं लगता है और विरोधियों का नाश होता है।

इन चौपाइयों का बार बार पाठ करने से होने वाला लाभ-

1-भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।

इस चौपाई के बार बार पाठ करने से बुरी आत्मा, भूतप्रेत आदि अगर आपके पास आ गए हैं तो दूर भाग जाएंगे अन्यथा आपके पास नहीं आएंगे।

2-नासै रोग हरे सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।

इस चौपाई के बार बार पाठ करने से समस्त प्रकार के रोग और पीड़ाओं का अंत हो जाएगा।

विवेचना
इन पंक्तियों की विवेचना करने से पहले यह जानना पड़ेगा कि भूत और पिशाच आदि क्या हैं। ये होते हैं या नहीं होते हैं। सनातन धर्म ग्रंथ गरुड़ पुराण के अनुसार आत्मा पृथ्वी पर हमारे भौतिक शरीर में निवास करती है, तब वह जीव या जीवात्मा कहलाती है। मृत्यु के उपरांत आत्मा सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश कर जाती है और इस सूक्ष्मात्मा कहते हैं। अगर व्यक्ति की कामनाएं मृत्यु के बाद भी जिंदा रहती हैं और तो वह कामनामय सूक्ष्म शरीर में निवास करती है। इस आत्मा को भूत, प्रेत, पिशाच, शाकिनी, डाकिनी आदि कहा जाता है। धर्म शास्त्रों में 84 लाख योनियों का जिक्र है। वर्तमान विज्ञान के अनुसार हमारे पास अब तक करीब 30 लाख प्रकार के जीव जंतु और पेड़ पौधों के बारे में जानकारी है।

गरुड़ पुराण के अनुसार जीव एक निश्चित अवधि तक भूत योनि में रहता है। जिन लोगों के मृत्यु के उपरांत नियमानुसार कर्मकांड नहीं होते हैं, वे प्रेत योनि में चले जाते हैं। अन्यथा 13 दिनों के उपरांत वे आत्माएं फिर से जन्म लेती हैं। विभिन्न धर्मों में अलग-अलग नाम से इनको पुकारा जाता है, जैसे हिंदू धर्म में प्रेत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस और चुड़ैल। ईसाई धर्म में मूल रूप से पिशाच, चुड़ैल होते हैं। मुस्लिम धर्म में जिंन्न कहे जाते हैं।

हिंदू धर्म में प्रेत और इसी तरह की अन्य आत्माएं क्यों होती हैं, उसके बारे में हम ऊपर बता चुके हैं। बाकी धर्मों की मान्यता के बारे में अब हम बता रहे हैं। परंतु इस बात को वर्तमान विज्ञान एवं वामपंथी विद्वान नहीं मानते हैं। एक बार की बात है , मैं एक वीडियो कॉन्फ्रेंस में बैठा हुआ था। उस वीडियो कॉन्फ्रेंस को वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह संबोधित कर रहे थे। संबोधन के दौरान उन्होंने एक आईआईटी के वाइस चांसलर की खिल्ली भी उड़ाई। उनका कहना था कि आईआईटी के वाइस चांसलर भूत प्रेत को मानते हैं और उनको भगाने का दावा भी करते हैं। भूत प्रेत को मानने वाले बहुत सारी बातें बताते हैं, परंतु वह भूत और प्रेत को सामने लाकर दिखा नहीं पाते हैं। महाराष्ट्र में तो भूत प्रेत के प्रचार पर कानूनी बंदिश है और जादू टोना भूत प्रेत का प्रचार करने वाले पर ₹ 5 हजार से 50 हजार का जुर्माना और 7 साल तक की कैद हो सकती है। बागेश्वर धाम छतरपुर के महंत श्री धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पर FIR करने के लिए श्याम मानव नागपुर के प्रशासन पर दबाव डाल रहे हैं। श्याम मानव का इंटरव्यू लल्लनटॉप के साथ-साथ कुछ न्यूज़ चैनल पर भी दिनांक 17 जनवरी 2023 को आया है। श्याम मानव का कहना है कि भूत और प्रेत नहीं होते हैं और इसका प्रचार करना महाराष्ट्र में कानूनन जुर्म है। अतः इसका दंड धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को दिया जाए। उनका यह भी कहना है की अंतिम 2 दिन में आदरणीय शास्त्री जी द्वारा भूत प्रेत भगाने का जो कार्यक्रम किया जाना था वह श्री मानव के चैलेंज करने के कारण नहीं किया गया। श्री मानव ने यह भी कहना है कि श्री शास्त्री डर के मारे भाग गए।

श्री मानव ने शास्त्री जी से कोई प्रतियोगिता नहीं की, वरन केवल कानून का सहारा लेकर एक सिद्ध पुरुष को बदनाम करने का प्रयास कर रहे हैं। महाराष्ट्र के जादू टोना और अंधविश्वास कानून में ₹50 हजार तक का जुर्माना और साथ में 7 साल तक के जेल का प्रावधान है। अतः महाराष्ट्र में भूत प्रेत होते हैं, कहना काफी बड़ा अपराध है। छोटे बच्चे जब बीमार पड़ जाते हैं और दवा से ठीक नहीं होते हैं तो हमारी माता बहने कहती हैं इस को नजर लग गई है। मिर्ची घुमाकर या अन्य तरह से नजर उतारी जाती है और बच्चा ठीक हो जाता है। मैं इन बुद्धिमान लोगों से यह पूछना चाहूंगा क्या ये इसका कोई कारण बता सकते हैं।

हम जिस चीज को नहीं जानते हैं उसको पता करना विज्ञान है, परंतु हम जिस को नहीं जानते हैं उसको साफ साफ झूठा कह देना विज्ञान का अजीर्ण है। अगर हम भूत और पिशाच को केवल डर मान ले तो यह सत्य है कि इस प्रकार के डर हनुमान जी का नाम लेने भर से नष्ट हो जाते हैं। बचपन में या आज भी अगर हमें कहीं डर सताता है तो हम हनुमान जी का नाम लेते हैं। डर दूर भाग जाता है।

ईशान महेश जी जो कि एक उपन्यासकार और धार्मिक पुस्तकों के भी लेखक हैं, उन्होंने एक कहानी बताई है। उनका कहना है एक बार वे गोमुख यात्रा पर गए थे। इनके कैंप में दो लोगों में बहस हो गई। एक कह रहा था कि भूत प्रेत होते हैं, दूसरा कह रहा था कि भूत प्रेत नहीं होते हैं। दूसरे ने ईशान जी से कहा कि आप इनको समझाओ कि भूत प्रेत नहीं होते हैं। ईशान जी ने कहा कि मैं उनको और आपको दोनों को समझाने का प्रयास करूंगा। दूसरे व्यक्ति ने कहा कि अभी समझाइए उन्होंने कहा नहीं रात में जब घूमने चलेंगे तब बात करेंगे। रात में वे उस व्यक्ति को लेकर बाहर चल दिए। थोड़ी ही देर में उस व्यक्ति ने कहा कि अब हम वापस लौटें, डर लग रहा है। ईशान जी ने कहा कि हनुमान जी हनुमान जी कहो। देखो डर जाता है या नहीं। दूसरा व्यक्ति हनुमान जी हनुमान जी कहने लगा। 2 मिनट बाद ईशान जी ने पूछा कि अभी तुम्हें डर लग रहा है या नहीं। उसने कहा नहीं। अब डर नहीं लग रहा है। ईशान जी ने कहा अब वापस चलते हैं तुम्हारा डर ही भूत है, प्रेत है। हनुमान जी का नाम का जाप करने से तुम्हारा डर भाग गया।

आज आदमी भय से डरपोक बना है। हमारा सारा जीवन भय से भरा हुआ है। हम जीवन में सीधे रास्ते से चल रहे हैं, इसका कारण डर है। संस्कृत का श्लोक है-

भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयवित्ते नृपालाद्भयं
माने दैन्यभयं बले रिपुभयं रुपे जराया: भयम्।
शास्त्रे वादभयं गुणे खलभयं काये कृतान्ताद्भयम्
सर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां विष्णों: पदं निर्भयम्।।

जो निर्भय हैं उनके पास भगवान का गुण है। जो भयभीत हैं, वे मानव हैं। विपुल मात्रा में भोग की सामग्री होते हुए भी व्यक्ति को रोग का भय रहता है। जिस व्यापारी के पास में शक्कर के बोरे होते हैं वह डायबिटीज का मरीज होता है। वह शक्कर नहीं खा सकता है। अगर आप का जन्म ऊंचे खानदान में हुआ है तो उसे अपने कुल की इज्जत के जाने का डर रहता है। जिसके पास विपुल मात्रा में धन होता है उसे धन के जाने का डर बना रहता है। उसको रात में नींद नहीं आती है। अगर समाज में आपकी बहुत इज्जत है तो आपको हमेशा मानहानि का डर बना रहेगा। सत्ताधीशों को तो हमेशा अपनी कुर्सी जाने का डर रहता है। इनको अपने मित्रों और शत्रु दोनों से डर लगता है।

देवताओं में सबसे ज्यादा डरपोक सत्ताधारी इंद्रदेव हैं। जब भी कोई मुनि ज्यादा बड़ा तप करने लगता है इंद्रदेव का राज सिंहासन डोलने लगता है। बलवान को अपने शत्रुओं से डर लगता है। बलवान व्यक्ति के शत्रुओं की संख्या बहुत अधिक होती है। कौन शत्रु कब आघात कर देगा, इसका भय बलवान के पास हमेशा रहता है। रूपवान को कुरूप होने का भय रहता है। समय के साथ साथ रूप क्षीण होता जाता है। युवक के पास वृद्ध होने का भय रहता है। शास्त्रों के जानकार के पास वाद-विवाद का डर होता है। उनको इस बात का हमेशा डर रहता है कि वाद-विवाद में उनको कोई हरा न दे। अच्छे लोगों को बुरे मनुष्यों का डर रहता है। पुण्यात्मा को परलोक का डर होता है। अर्थात जिसके पास कुछ है उसके पास डर निश्चित रूप से रहता है। अगर आपको इस डर को भगाना है तो आप शिव के अवतार , पवन तनय की पूजा करें। ऐसे में उनका सुमिरन करने से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।

दुनिया में मशहूर भूत भागने का मंदिर जिसे हमें मेंहदीपुर बालाजी के नाम से जानते हैं वह हनुमान जी के बालाजी अवतार का हैं। ऐसा कहा जाता है कि हनुमान जी रक्षक की तरह आज भी मौजूद हैं। जब भी कोई व्यक्ति प्रेत बाधा में हो, हनुमान जी की पूजा करने के वह दूर हो जाती है।

आगे लिखा है “महावीर जब नाम सुनावे।” हनुमान चालीसा का प्रारंभ जय हनुमान ज्ञान गुण सागर से किया गया है। हनुमान चालीसा में हनुमान शब्द 6 बार आया है परंतु जब मारपीट की नौबत आई तब नाम लिया गया महावीर का। इसका क्या कारण है। आराम से कहा जा सकता था हनुमान जब नाम सुनावे। तुलसीदास जी को यहां महावीर कहना उचित लगा।

हम सभी जानते हैं कि हनुमान जी ने बचपन में भगवान सूर्य को अपने मुख में दबा लिया था। इसके का उनका मुंह अभी भी फूला हुआ है। इंद्रदेव ने देखा कि यह बालक मेरे सत्ता को चैलेंज दे रहा है। उन्होंने हनुमान जी पर वज्र का प्रहार किया और उनकी हनु टूट गई। इसलिए हनुमान जी का नाम हनुमान पड़ा। इंद्रदेव की वज्र से हनुमान जी के मूर्छित होने के कारण यह उनकी कमजोरी का लक्षण है। भूत को भगाने के लिए अत्यंत वीर व्यक्ति चाहिए। हम सभी जानते हैं कि हनुमान जी का दूसरा नाम महावीर भी है। महावीर शब्द से हनुमान जी के बल और पोरूष का आभास होता है। भूत और प्रेत को भगाने के लिए या आपके डर को भगाने के लिए आपको एक सशक्त सहायता चाहिए। सशक्त सहायता महावीर नाम ही दे सकता है। महावीर का नाम लेने से ही आपके अंदर अलग से एक ताकत आ जाएगी। इसीलिए यहां पर तुलसीदास जी ने हनुमान शब्द के स्थान पर महावीर शब्द का प्रयोग किया है।

रामचरितमानस के उत्तरकांड में दो चौपाइयां हैं जो राम राज्य के बारे में बताती हैं।

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥
(रामचरितमानस /उत्तरकांड)

भावार्थ- रामराज्य’ में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं॥

अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा॥
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना॥
(रामचरितमानस /उत्तरकांड)

भावार्थ- छोटी अवस्था में मृत्यु नहीं होती, न किसी को कोई पीड़ा होती है। सभी के शरीर सुंदर और निरोग हैं। न कोई दरिद्र है, न दुःखी है और न दीन ही है। न कोई मूर्ख है और न शुभ लक्षणों से हीन ही है॥

राम राज्य में यह स्थिति महाराजाधिराज श्री रामचंद्र जी के प्रताप के कारण थी। अगर हमारे यहां या हमें किसी तरह का रोग हो जाए कोई पीड़ा हो जाए तो हमको क्या करना चाहिए। इस संबंध में हनुमान चालीसा कि हनुमान चालीसा की अगली चौपाई में बताया गया है कि-

“नासे रोग हरे सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा “॥

अर्थात आपको या साधारण जनमानस को हनुमान जी का नाम का जाप करना चाहिए। नासे शब्द का एक ही अर्थ होता है समाप्त करना। इस चौपाई में तुलसीदास जी कहना चाहते हैं कि अगर हम निरंतर हनुमान जी का नाम लेते रहें तो हमारे सभी रोग और सभी पीड़ायें समाप्त हो जाएंगी। जैसे पहले की चौपाई में था। भूत को भगाने के लिए महावीर का नाम लीजिए, उसी प्रकार इस चौपाई में है कि दुख दर्द को मिटाने के लिए हनुमान जी का नाम लीजिए। क्योंकि हनुमानजी और महावीर जी एक ही हैं, अतः हम कह सकते हैं कि इन सभी कार्यों के लिए हनुमान जी का नाम लेना है।

आइए अब रोग शब्द पर चर्चा करते हैं।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार रोग अर्थात अस्वस्थ होना का क्या अर्थ है। यह चिकित्सा विज्ञान की मूलभूत संकल्पना है। प्रायः शरीर के पूर्णरूपेण कार्य करने में किसी प्रकार की कमी होना ‘रोग’ कहलाता है। जिस व्यक्ति को रोग होता है उसे ‘रोगी’ कहते हैं।

आधुनिक विज्ञान के अनुसार केवल दो प्रकार के कारणों से रोग हो सकता है।
1- जैविक (biotic/जीवाणुओं से होने वाले रोग)
2- अजैविक (abiotic/निर्जीव वस्तुओं से होने वाले रोग)

रोग की और भी परिभाषाएं हैं, जिन में कुछ को नीचे दिया जा रहा है-

रोग वह अवस्था है जिसमें शरीर का स्वास्थ्य बिगड़ जाय और जिसके बढ़ने पर शरीर के समाप्त हो जाने की आशंका हो। इसे बीमारी, मर्ज, व्याधि भी कहते हैं। रोग की दूसरी परिभाषा के अनुसार रोग शरीर में उत्पन्न होनेवाला कोई ऐसा घातक या नाशक विकार है जो कुछ विशिष्ट कारणों से उत्पन्न होता है और जिसके कुछ विशिष्ट लक्षण होते हैं। शरीर में उत्पन्न घातक विकार जैसे कष्टकारक आदत या लत, उदाहरण के रूप में- तंबाकू पीने का रोग।

सभी धर्मों में रोगों के बारे में कुछ न कुछ कहा गया है। बीमारी उन चार दृश्यों में से एक था, जिसे गौतम बुद्ध द्वारा सामना किए गए चार दृष्टियों से संदर्भित किया जाता है। कोरियाई शमानिज़्म में “आत्मीय रोग” शामिल है। पारंपरिक चिकित्सा सामूहिक रूप से बीमारी और चोट के इलाज़, प्रसव प्रक्रिया में सहायता और स्वस्थता का अनुरक्षण करने की परम्परागत क्रियाविधि है। यह “वैज्ञानिक चिकित्सा” से अलग भिन्न ज्ञान है। सामान्य और बीमारी के बीच की सीमा व्यक्तिपरक हो सकती है। उदाहरण के लिए, कुछ धर्मों में, समलैंगिकता को एक बीमारी माना जाता है। आयुर्वेद के ग्रन्थ तीन शारीरिक दोषों (त्रिदोष- वात, पित्त, कफ) के असंतुलन को रोग का कारण मानते हैं और समदोष की स्थिति को आरोग्य।

रामचरितमानस में 3 तरह के रोग बताए गए हैं। दैहिक दैविक भौतिक। रामराज्य की प्रशंसा में तुलसीदास जी की चौपाई लिखी है उसमें उन्होंने लिखा है-

“दैहिक दैविक भौतिक तापा।
राम राज नहिं काहुहि ब्यापा”॥
(रामचरितमानस /उत्तरकांड)

इस शरीर को स्वतः अपने ही कारणों से जो कष्ट होता है, उसे दैहिक ताप कहा जाता है। इसमें व्यक्ति या व्यक्ति की आत्मा को अविद्या, राग, द्वेष, मू्र्खता, बीमारी आदि से मन और शरीर को कष्ट होता है। कुछ ऐसे कष्ट भी होते हैं जिन पर मानव का नियंत्रण नहीं होता है अतः उनको दैविक ताप कहा जाता है। जैसे अत्यधिक गर्मी, सूखा, भूकम्प, अतिवृष्टि आदि अनेक कारणों से होने वाले कष्ट को इस श्रेणी में रखा जाता है। तीसरे प्रकार का कष्ट इस जगत के बाह्य कारणों से होता है। इस प्रकार के कष्ट को भौतिक ताप कहा जाता है। शत्रु आदि स्वयं से परे वस्तुओं या जीवों के कारण ऐसा कष्ट उपस्थित होता है।

पीरा या पीड़ा शब्द का अर्थ है, शारीरिक या मानसिक कष्ट; वेदना; व्यथा; दर्द। अर्थात रोग के कारण से जो आप वेदना या कष्ट या दर्द महसूस करते हैं उसको पीड़ा कहते हैं। अर्थात जीवन रूपी वृक्ष के मूल में रोग है और पीड़ा उस वृक्ष का फल है। अगर हम किसी प्रकार से रोग को समाप्त कर दें तो पीड़ा अपने आप समाप्त हो जाएगी। हम सभी जानते हैं कि बुखार की वजह से हमारे शरीर का तापमान बढ़ जाता है और शरीर में दर्द भी होता है। अगर यह बुखार अर्थात रोग समाप्त हो जाए तो शरीर का तापमान सामान्य हो जाएगा और दर्द स्वयमेव समाप्त हो जाएगा। इस प्रकार हम को रोग को समाप्त करना है, पीड़ा अपने आप समाप्त हो जाएगी।

अगर तुलसीदास जी अगर केवल दैहिक रोग विशेषकर मानसिक रोग की बात कर रहे होते तो हम कह सकते थे, हनुमान जी का नाम लेने से यह रोग समाप्त हो जाएगा। जैसे कि जब छोटे बच्चों को नजर लग जाती है तो हमारे घर की माता बहने उनकी नजर उतारती हैं। नजर लगने की स्थिति में कई बार आधुनिक चिकित्सा पद्धति काम नहीं कर पाती है। नजर लगी है या नहीं लगी है इसको देखने की पद्धति का विश्लेषण भी आधुनिक विज्ञान नहीं कर पाता है।

यहां पर हम सभी तरह के रोग के समाप्त करने की बात कर रहे हैं। तो क्या हनुमान जी चिकित्सक हैं, जो दवा देंगे और समस्त रोग समाप्त हो जाएंगे। रोग समाप्त करने का काम चिकित्सक का है। चिकित्सक दवा देता है इससे रोग समाप्त होता है। देवताओं के यहां भी धनवंतरी जी है। अतः हम इस भ्रम को नहीं चलाएंगे कि अगर आप बीमार पड़े हैं तो केवल हनुमान जी का नाम ले और आप ठीक हो जाएंगे।

हनुमानजी का जप करने से मानसिक आरोग्य तथा शारीरिक आरोग्य प्राप्त होता है। तुलसीदास का आग्रह जप करने के लिए है वह केवल शारीरिक रोग दूर करने के लिए नहीं साथ ही साथ मानसिक विकारों को दूर करने के लिए भी है। मनुष्य के अन्त:करण में भगवत्प्रेम बढना चाहिए। जब भगवत प्रेम बढ़ेगा तो आपकी मानसिक स्थिति मजबूत होगी। मानसिक स्थिति मजबूत होने के कारण आपकी इच्छा शक्ति भी मजबूत हो जाएगी। जब आपके अंदर आपकी इच्छा शक्ति मजबूत होगी तो आप मानसिक रोगों से पूर्णतया मुक्त हो जाएंगे और शारीरिक रोगों से भी मुक्त होने की तरफ चल देंगे।

हनुमान जी भी आपकी परीक्षा लेते हैं। तभी वह मानते हैं कि आपने उनका नाम जप किया है। हम ऐसी परीक्षाओं में साधारणतया असफल रहते हैं। जैसे कि एक व्यक्ति ने बारह महीने ठण्डे पानी से नहाने का नियम किया। एक वर्ष के बाद उससे पूछा, तुमने उस नियम का पालन किया? उसने कहा हाँ! परन्तु जाड़े के दो महीने छोड़कर। अब आप बताइए उसको कितने प्रतिशत अंक मिलना चाहिए। मेरे विचार से 0% अंक उसको मिलना चाहिए। क्योंकि परीक्षा के दिन तो जाड़े के दिन ही थे। बाकी दिन तो हर कोई ठंडे पानी से ही नहता है। जाड़े में वह ठंडे पानी से नहीं नहाया। अतः वह परीक्षा में पूरी तरह से फेल हो गया और उसको 0% अंक मिले। विपत्ति में ही परीक्षा होती है। अत: प्रतिकूल परिस्थिति मे ही मानसिक आरोग्य संभालना है। प्रतिकूल परिस्थिति में खड़ा रहने के लिए मन को शक्तिशाली बनाने के लिए, आपकी इच्छाशक्ति का निरोगी होना आवश्यक है। प्रतिकूल परिस्थिति तो आयेगी ही, परन्तु ‘बाहर’ के प्रवाह से मेरा ‘स्व’ मलिन नहीं बनेगा’ ऐसा ‘स्व‘ का प्रवाह होना चाहिए।

हमारे समाज में धन का अत्यधिक महत्व है, अगर आप निर्धन है तो आपकी मित्रों की संख्या अत्यंत कम हो जाएगी। विद्वान कहते है-

विरला जानन्ति गुणान् विरला: कुर्वन्ति निर्धने स्नेहम्।
विरला: परकार्यता: परदु:खेनापि दु:खिता विरला:।।

दूसरे के गुणों को जाननेवाले विरले हैं। निर्धन पर प्रेम विरले ही करते हैं, दूसरे के दु:ख में दु:खी होने वाले विरले ही होते हैं। परंतु अगर आप धनी है तो क्या आप के हजारों मित्र हो जाएंगे- नहीं होंगे। ये मित्र केवल अपने स्वार्थ के लिए आपके साथ रहेंगे। जैसे ही उनको लगेगा उनका स्वार्थ अब नहीं बन रहा है वे आपका साथ छोड़ देंगे।
मेरा क्या है? यह दूसरा प्रश्न है। इस जगत मे मेरे साथ क्या जानेवाला है? मेरा बंगला बहुत सुन्दर है, परन्तु क्या उसे मै अपने साथ ले जा सकूंगा? मेरा बैंक बैलन्स बहुत बडा है, परन्तु मुझे उसे यहीं छोड़कर जाना पडेगा। फिर मेरे साथ क्या आयेगा? वेदान्त समझाता है-

धनानि भूमौ पशवच गोष्ठे, भार्या गृहद्वारि जन: स्मशाने।
देहचितायांं परलोक मार्गे कर्मानुगो गच्छति जीव एक:।।

धन भूमि में, पशु गोष्ठ में, पत्नी घर के दरवाजे तक, सगे सम्बन्धी शमशान तक साथ जाते है। देह को चिता पर रखने के बाद साथ कौन जाता है? कर्मानुगो गच्छति जीव एक! अर्थात केवल आपका कर्म आपके साथ जाता है। अतः आपको सदैव अच्छे कर्म करना चाहिए। जिससे विश्व का, आपके राष्ट्र का, आपके समाज का, आपके धर्म का और आपके आसपास के लोगों का कल्याण हो।

अब हम बताते हैं नाम जप का क्या महत्व है। नांव मे बैठकर, पैर गीले हुए बिना, नदी को पार किया जा सकता है, वैसे ही नाम-जप से बिना तकलीफ के भवसागर पार कर सकते हैं। सोच समझकर नाम-जप करना चाहिए। लोग पूछते है, ‘नाम लेने मे क्या है? नाम में शक्ति है। ‘इमली’ कहने पर मुँह में पानी भर आता है। शब्द में शक्ति है, परन्तु उसके लिए शब्द का अर्थ मालूम होना चाहिए। आपको श्रीराम इस जगत में क्यों लाए? क्या मालूम है? बहुत सारे लोगों को तो यह भी नहीं मालूम होगा कि श्रीराम कौन थे। लोगों को ऐसा लगता है कि इसकी अपेक्षा हम घर में बैठकर हुक्का पीते हुए राम नाम का जप करेंगे तो हमें इच्छित फल मिल जायेगा। मनुष्य को नाम-जप समझकर करना चाहिए।

जप का इतना महत्व क्यों है? जप से विकार कम कर सकते हैं। मानव देह में ‘जीव’ और ‘शिव’ दोनों है। उनके बीच विकार का पर्दा है। यह विकार का पर्दा हटाना चाहिए। विषय विकारों को किस प्रकार हटायेंगे? विकारों को हटाने के लिए जप का उपयोग करना चाहिए। उसके स्थान पर आज विकार बढाने के लिए जप का उपयोग किया जाता है। विकार बढाने के लिए नही, अपितु विकार कम करने के लिए जप करना चाहिए। आप अपने शरीर के विकारों को हनुमान जी का नाम लेकर ,दिल से नाम लेकर ,पूरी तन्मयता और एकाग्रता से नाम लेकर अपने शरीर से हटा सकतें है। शर्त एक ही है कि एकाग्रता भंग नहीं होनी चाहिए।

जय श्री राम
जय हनुमान

टॉप न्यूज