आज देश में 201 से भी ज्यादा क्षेत्रीय व राष्ट्रीय टीवी चैनल चल रहे हैं। ज़िनमे समाचार के नाम पर सामान, समाचार वाचक और नेता का प्रचार ही नजर आता है पर समाचार गायब रहता है। समाचार वाचक चैनल के स्टूडियो पर कुछ गिने चुने चेहरे विभिन्न दलों के नुवायिंदों के रुप में बैठा दिये जाते हैं और किसी एक बिषय पर गला फाड बहस शुरु कर देते हैं।
बडा ही मनमोहक दृश्य होता है जब हम यह सीन देखते हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि हम सर्वोच्च न्यायालय के किसी कक्षा में बैठ किसी केस की जिरह सुन रहे हैं और न्यायाधीश की कुरसी पर बैठी कोई महिला य़ा पुरूष केस पर फैसला सुनाने जा रही है।
इन टीवी चैनलों में टीआरपी की होड लगी हुई है और इनके व्यवसायिकरण हेतु टीवी एंकर (इनको मार्केटिंग एजेंट या टीएम यदि कहा जाय तो गलत नहीं होगा) कुछ प्रसिद्धी पाने के लालची लोगो को बहस में आने के लिए बुला लेते हैं और दुकानदारी दिन भर चलाते रहते हैं।
ऐसा लगता है कि टीवी चैनल का यह स्टूडियो नहीं यह एक अखाडा है, जहाँ दो पहलवान मल युद्ध कर रहे और एंकर रेफरी का काम कर रहा है। कभी-कभी तो बहस के दौरान ही आपस में लात-जूता भी होने लगता है।
यह हमारे प्रेस को दी गयी स्वतंत्रता और सार्वभौमिकता की खुले आम इन चैनलों द्वारा धाज्जियां उडाई जा रही हैं, किंतु हम और हमारी सरकारें इन पर अंकुश लगाने में अक्षम साबित हुई हैं क्यूँकि हम विदेशी संस्कृति के गुलाम बन गये हैं।
प्रेस के द्वारा दिये गये समस्त लाइसेंस को तत्काल प्रभाव से अविलम्ब निरस्त कर देश में हमारे राष्ट्रीय चैनल दुर-दर्शन को सिर्फ समाचार चलाने का अधिकार होना चाहिए तभी इस् समस्या से समाज को निदान मिल पायेगा और प्रेस रूपी राष्ट्र के चौथे स्तंभ की सच्ची स्थापना हो जायेगी।
-वीरेन्द्र तोमर