झारखण्ड में हेंमत सोरेन के नेतृत्व में राज्य सरकार के गठन होने के साथ ही राज्य की जनता की उम्मीदें एक बार फिर से परवान चढ़ती जा रही है कि वर्तमान सरकार उनकी उम्मीदों को धरातल पर उतारने का काम करेगी बावजूद इस बात को सिरे से नकारा नहीं जा सकता है कि जिस उद्देश्य से झारखण्ड राज्य का निर्माण किया गया था उसके आस-पास भी नहीं पहुँच पाया है झारखण्ड।
लंबे संघर्षों के बाद सन 2000 में अस्तित्व में आये इस राज्य ने हालाँकि अपनी युवावस्था प्राप्त कर ली है किंतु बिडम्बना है कि जल-जंगल,जमीन और पहाड़ियों के विकास की बात सिर्फ राजनीतिक संकल्पों में दिखता रहा जबकि वास्तविकता के धरातल पर दिशा और दशा में कोई खास बदलाव नहीं आया।
अकेले झारखण्ड में पर्यटन विकास की बात करें तो असीम संभावनाओं के बाद भी कोई सार्थक बदलाव अबतक देखने को नहीं मिला जिससे इस राज्य को देश के पर्यटन नक्शे में शामिल किया जा सकता था जो राज्य के आर्थिक उन्नयन सहित ग्रामीण अंचलों में लगातार बढ़ता जा रहा बेरोजगारों की फौज को इससे जोड़कर नियोजित किया जा सकता था।पर्यटन से जुड़े रोजगार में बेरोजगार युवकों के लिप्त होने से उनकी आर्थिक बदहाली तो खत्म होती ही बल्कि इससे जुड़े ग्रामीण कुटीर उद्योगों को भी बढ़ावा मिलता।
अकेले संताल परगना संभाग की ही बात करें तो दुमका,पाकुड़ और साहेबगंज जिले के गर्म जलकुंड, स्वयं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के विधानसभा क्षेत्र स्थित गाजेश्वर नाथ महादेव का पहाड़ी गुफा मंदिर,पहाड़िया जनजाति के राजा द्वारा निर्मित पहाड़ी गुफा स्थित कंचनगढ़ का किला, उधवा पक्षी अभयारण्य, राधाग्रम, मोती झरना, जामा मस्ज़िद, तेलियागढी का किला, सुमेश्वर नाथ, वरदानी नाथ, पाण्डेश्वर नाथ, मंडरो स्थित फासिल्स पार्क, मसानजोर जैसे अनगिनत पर्यटक स्थल हैं जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य के बूते ना केवल देशी पर्यटकों बल्कि विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने में पूरी तरह सक्षम है किन्तु दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस दिशा में कोई उललेखनीय कार्य नहीं हुए हैं।
हेमंत सोरेन के विधानसभा बरहेट का ही पर्यटन विकास हुआ तो यहां के युवकों को रोजगार तो मिलेगा ही बल्कि यहाँ कुटीर उद्योग के रूप में लगभग दम तोड़ चुके हस्तनिर्मित हैंडलूम के वस्त्रों के निर्माण को फिर से बढ़ावा मिल सकता है जो क्षेत्र के विकास में मिल का पत्थर साबित होगा।
वैसे, पर्यटन विकास के लिए यदि राज्य की हेमंत सोरेन सरकार पहल करती है तो सबसे पहले इन स्थलों तक पहुंचने के लिए बेहतर सड़क व्यवस्थाओं के साथ बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए कार्य करने होंगे। अभी हाल यह है कि अत्यंत मनोहारी इन पर्यटक स्थलों को उनकी बदहाली पर वैसे ही छोड़ दिया गया है नतीजतन यहाँ तक पहुंचना ही मुश्किलों भरा है।
यह कहा जाना भी अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि प्राकृतिक रूप से झारखण्ड पर्यटन की प्रचुर संभावनाओं से परिपूर्ण है। मिलों तक पसरी राजमहल की पहाड़ियां हो या फर उत्तरी एवं दक्षिणी छोटानागपुर की पहाड़ियाँ अपनी नैसर्गिक सौंदर्य कुछ ऐसा है कि एक बार आने वाला पर्यटक इसके मोहपाश से मुक्त नहीं हो सकता किन्तु राज्य सरकारों के उपेक्षा का दंश झेलता यह राज्य अबतक कोई स्थान हासिल नहीं कर पाया है जो राज्य की जनता के भावनाओं के प्रतिकूल है।
यह सर्वविदित तथ्य है कि जिस राज्य का पर्यटन विकास किया जाता है उस राज्य का स्वदेशी कुटीर उद्योगों का विकास भी होना स्वाभाविक है क्योंकि अक्सर यह देखा जाता है कि पर्यटन के लिए आये देशी-विदेशी पर्यटक स्मृति के लिए या फिर अपनी आवयश्कता को देखते हुए स्थानीय वस्तुओं की खरीदारी जरूर करते हैं। अब संताल परगना के इस सम्भाग की बात करें तो हैंडलूम वस्त्रों,बांस से निर्मित सामग्रियां,रेशम के वस्त्रों से जुड़े संभावनाओं को बड़ा विस्तार दिया जा सकता है किंतु सरकारी उदासीनता इस दिशा में कुछ ऐसी रही कि पर्यटन विकास सिर्फ झुनझुना सा लगता है।
अब जबकि झारखण्ड आंदोलन से उपजे झारखण्ड की सरकार सत्ता पर काबिज हुई है तो ऐसी संभावनाओं का मुखर होना स्वाभविक है कि जल-जमीन,जंगल और पहाड़ियों के संरक्षण और संवर्द्धन की दिशा में बेहतर प्रयास करेगी क्योंकि इसमें कोई संदेह नहीं कि राजमहल की पहाड़ियाँ हो या छोटानागपुर की पहाड़ियां आज अपनी नैसर्गिक आभा खो चुकी है ।निरन्तर नंगी होती जा रही पहाड़ियाँ का वनाक्षादित क्षेत्रफल भी सिमट रहा है जिसपर ध्यान ना दिया गया तो इससे झारखण्ड के पर्यटन विकास की संभावनाएं क्षीण तो होगी ही अपितु कुटीर उद्योगों के विकास की संभावनाएं भी दम तोड़ देगी।
जरूरी है कि राज्य सरकार इस दिशा में ठोस पहल कर पर्यटन के क्षेत्र में झारखण्ड को देश के नक्शे में शामिल करने में कोताही नहीं बरते ताकि रोजगार, कुटीर उद्योग को विस्तार के काम को नया आयाम दिया जा सके।

-चन्द्र विजय प्रसाद चन्दन