कोरोना- लील गया बैसाखी की खुशियां

बसंत ऋतु का आगमन अपने साथ हरियाली और रंग बिरंगे फूलोँ की बहार लेकर आता है। जिन्हें देखकर मन में बैठी निराशाओं को भी आशाओं भरा संबल मिल जाता है। बसंती हवाएं तन को ही नहीं मन को भी प्रफुल्लित करती हैं। मिट्टी की सौंधी सी महक से सराबोर हो जाती हैं सारी फिजाएं। बैसाख माह में आने वाला प्रमुख त्यौहार है ‘बैसाखी’! बैसाखी की खुशियों और उमंगों को मायूसियों में बदल दिया है इस महामारी ने। कितनी जानें जा चुकी हैं। ये कहर है प्रकृति का। अनैतिकता भी तो अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी। निर्भया हो या प्रियंका रेड्डी और न जाने कितनी मासूम बच्चियां जो बर्बरता की लगातार शिकार हो रही थीं। अटा रहता था अख़बार ऐसी ख़बरों से। दिल दहल उठता था।
धरती माँ का सीना फटने को तैयार था, कहीं तो दिखाती वो अपना रोद्र रूप। महामारी ही सही। अब न फ़सल कटेगी न ही खुशियां मनाई जाएगी। सब अपने अपने घरों में कैद, बस लड़ रहे हैं इस आपदा से।
प्रार्थना है कि है ईश्वर इस कहर इस महामारी से हम मनुष्यों को जल्द से जल्द निजात दिलाए। इस मुश्किल घड़ी में हमें एक जुट और धैर्य रखकर चलने की आवश्यकता है। घर पर रहें स्वस्थ रहें।अपना और अपनों का ध्यान रखें। जान है तो जहान है।

-निधि भार्गव मानवी
गीता कालोनी, ईस्ट दिल्ली