आधुनिक जीवन में हम सामान्य शब्द ज्ञान की सीमा के सहारे अगर ब्वाॅयज लाॅकर रूम शब्द का अर्थ जानने की कोशिश करें तो इसका एक सरल सा अर्थ सामने आता है- बंद कमरे में हुल्लड़पन। विधार्थी जीवन में लगभग सभी व्यक्ति इस हुल्लड़ शब्द को पसंद करते होंगे बल्कि कभी न कभी बंद कमरे मेंअपने सहपाठियों या सहयोगियों के साथ इस हुल्लड़पन को व्यवहार में भी लेकर आए होंगे लेकिन चिंतनीय पहलु यह हैं कि हम जिस ब्वाॅयज लाॅकर रूम थ्योरी पर प्रकाश डालने जा रहे हैं, वह कोई सामान्य जीवन में प्रचलित आम हुल्लड़बाजी नहीं हैं बल्कि वह किशोरावस्था में प्रवेश करने वाले किशोरों की ऐसी कुत्सित मानसिकता का परिचय दे रही हैं जो सभ्य कहलाने वाले भारतीय समाज के नैतिक पतन की निशानी है।
हाल ही में दिल्ली साइबर सेल को दक्षिणी दिल्ली के किसी इंटरनैशनल स्कूल में दसवीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों के एक समूह के अश्लील ट्विटर चैटिंग स्क्रीनशोट शिकायत के रूप में प्राप्त हुए। इन चैटिंग स्क्रीनशोट की साइबर सेल द्वारा जांच करने पर जो जानकारी प्राप्त हुई वह काफी चौंकाने वाली है जो समाज में महिलाओं की सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न ही नहीं लगाती हैं बल्कि किशोरों के नैतिक पतन का भी परिचय दे रही है।
परिवर्तन प्रकृति का एक शाश्वत नियम है। प्रकृति से जुड़ी प्रत्येक वस्तु समय के अनुसार परिवर्तित होती हैं और मानवीय जीवन भी उसका अपवाद नहीं है। लेकिन परिवर्तन का अगर एक ठीक दिशा में कार्यान्वयन किया जाए तो इससे बेहतर परिणाम प्राप्त किया जा सकता है और यही कारण हैं कि मानवीय जीवन में बाल्यावस्था से किशोरावस्था में परिवर्तन मनुष्य के भावी जीवन की दिशा और दशा दोनों तय करता है। निस्संदेह वर्तमान सामाजिक जीवन एक सीमा तक काफी जटिल हो चुका है जिसमें मानवीय जीवन के कुछ सामाजिक पहलु लगातार कमजोर होते जा रहे है। इस संदर्भ में सामाजिक जीवन में नैतिकता का पतन मुख्य है।
ग्लोबल विलेज की अवधारणा के परिणामस्वरूप उपभोक्तावादी संस्कृति भारतीय सामाजिक जीवन पर दिन प्रतिदिन हावी होती जा रही है, जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान युवा पीढ़ी नैतिक मूल्यों और सामाजिक आचार विचार से वंचित हो रही है। इसी का एक ताजा उदाहरण दक्षिणी दिल्ली के ब्वाॅयज लाॅकर रूम के घृणित एवं शर्मनाक कार्य के रूप में सामने आया है।
ब्वाॅयज लाॅकररूम तथाकथित सभ्य समाज की नैतिकता की विफलता का परिणाम है। यह उन दंपतियों की संतान हैं जो तमाम सुख सुविधाओं से संपन्न इंटरनैशनल स्कूल में अपने बच्चों का प्रवेश कराकर सफल पैरंट्स होने का गर्व करते हैं और भौतिक प्रगति की चाह में अपने बच्चों को समय न देने का रोना रोते है। जब भी बलात्कार जैसा जघन्य अपराध होता हैं उसमें दोष सरकार से कहीं ज्यादा समाज का होता है क्योंकि ऐसी तुच्छ मानसिकता का पालन पोषण समाज के अंदर से ही होता है। गत दिनों निर्भया गैंगरेप के जिन दोषियों को लचीले कानून के सहारे एक दीर्घावधि और न्याय के लंबे इंतजार के पश्चात् फाँसी तक पहुंचाया गया उनके एक साथी को नाबालिग होने के कारण केवल तीन वर्ष की सजा के पश्चात् रिहा कर दिया गया था।
ब्वाॅयज लाॅकर रूम के संदर्भ में किशोरावस्था की इस प्रकार की कुत्सित मानसिकता को देखकर बड़ी भयावह तस्वीर परिलक्षित होती है। यह हमारे समाज के नैतिक पतन की एक और निशानी है जिससे स्पष्ट होता हैं कि हमारा समाज नैतिक स्तर पर लगातार विफल साबित होता जा रहा है और हम बीती घटनाओं से न कोई सबक सीख पा रहे हैं और न ही ऐसी घटनाओं को लेकर चिंतन कर रहे है।
इस संदर्भ में सामाजिक विफलता का सबसे बड़ा कारण है- भौतिक प्रगति की चाह और व्यक्तिगत जीवन में भौतिक सुख सुविधाओं के प्रति हमारा बढता आकर्षण। क्योंकि हम प्रत्येक व्यक्ति और वस्तु को केवल उपभोग की दृष्टि से देखने लगे हैं और यह हमें बाज़ारवादी मानसिकता की ओर ढकेल रहा है जिससे तेजी से हमारा नैतिक पतन होता जा रहा है।
आज के इस आधुनिक समय में जहाँ पारिवारिक जीवन की मूल ईकाई पति पत्नी दोनों के कार्यशील होने की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में बच्चों की देखभाल के लिए पर्याप्त समय उपलब्ध कराना ऐसे दंपति के लिए मुश्किल हो रहा है। ऐसी जटिल परिस्थिति का सामना करने वाले एकल परिवार के दंपति केयर टेकर (शिशुओं के लिए) घरेलू सहायिका, कम उम्र में बच्चों को स्मार्टफोन सौंपना, टेबलेट, लैपटॉप इत्यादि गैजेटस बेहतर परवरिश के नाम पर इन सभी साधनों को अपनाते हैं जिसके दुष्परिणाम शीघ्र ही हमारे सामने आने लगते है और यह ब्वायज लाॅकर रूम बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक गैजेट के सहारे बेहतर भविष्य देने वाले एकल परिवारों के अभिभावकों की निम्न मानसिकता का दुष्परिणाम है लेकिन दुर्भाग्य की बात हैं कि शहरीकरण और आधुनिकीकरण के जाल में फंसने के कारण भारतीय समाज में ऐसे एकल परिवारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जो कि एक चिंतनीय पहलू है।
प्राचीन काल से ही भारतीय सामाजिक संस्कृति माता को प्रत्येक बालक का प्रथम गुरू स्वीकार करती आ रही हैं और इतिहास में ऐसे हजारों महापुरुषों के उदाहरण भरे पड़े हैं जिनकी मांओ द्वारा दिए गए बचपन के संस्कारों के कारण उन्होंने अपने जीवन के शिखर को छुआ। उदाहरणस्वरूप शिवाजी और महात्मा गांधी का नाम इस सूची में अग्रणी है। शिवाजी की माता जीजाबाई उन्हें बचपन में रामायण महाभारत की कहानियां सुनाया करती थी, जिसका प्रभाव उनके जीवन में इतना गहरा पड़ा कि उन्होंने मराठा साम्राज्य को फिर से मुगलों के खिलाफ मजबूत स्थिति में खड़ा कर दिया। वहीं महात्मा गांधी की माँ ने पढ़ाई के लिए उन्हें विदेश में भेजने से पहले मदिरापान न करने की शपथ दिलाई थी और जिसका पालन उन्होंने बखूबी किया।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बचपन के संस्कार मनुष्य के भावी जीवन की संस्कारित मजबूत नींव रखते है। लेकिन वर्तमान संदर्भ को देखकर यह नजर आ रहा हैं कि सामाजिक जीवन में कहीं न कहीं हम अपने बच्चों को संस्कारी मनुष्य के रूप में ढालने में विफल साबित हो रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप दिन प्रतिदिन दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध के मामलों में बढ़ोत्तरी और किशोरों की कामवासना के प्रति बढ़ती रूचि के दुष्परिणाम के रूप में स्पष्ट नजर आ रही है।
ब्वाॅयज लाॅकर रूम एक ऐसा अपराध है जो शारीरिक बल के सहारे नहीं बल्कि मानसिक तौर पर किया जाता है। एक ऐसा साइबर अपराध जो अपनी ठीक अवस्था में पहुँचकर जघन्यतम शारीरिक अपराध में परिवर्तित हो सकता है। क्योंकि यह एक व्यापक और सुनियोजित रणनीति के तहत तैयार किया जाता है। इसको निर्मूल नष्ट करने के लिए सरकार द्वारा गंभीर प्रयास किए जाने की आवश्यकता हैं इसीलिए वर्तमान कानून में संशोधन के जरिये कुछ नए प्रावधान शामिल किए जाने चाहिए ताकि ऐसे साइबर अपराध को व्यवहारिक रूप में अंजाम देने से रोका जा सके। इसके लिए स्कूलों को भी आगे बढ़कर जिम्मेदारी संभालनी होगी और स्कूली स्तर पर किशोरों को सकारात्मक मानसिकता प्रदान करने के लिए नैतिक शिक्षा जैसे पाठ्यक्रम को शामिल किया जाए ताकि छात्र-छात्राओं को उच्च नैतिक मूल्य प्रदान किए जा सकें जो उनके उच्च मानसिक विकास में सहायक सिद्ध हों।
स्कूली स्तर पर शिक्षा के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण प्रसंग का जिक्र आवश्यक है- हाल ही में कैंसर जैसी घातक बीमारी से जूझते हुए बालीवुड के प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता इरफ़ान ख़ान का निधन हुआ। उनकी एक फिल्म “हिंदी मीडियम” के टाइटल से प्रसारित हुई थी जिसका एक डायलॉग आज की इस स्कूली शिक्षा की सटीक व्याख्या करता हैं कि
यह हेडमास्टर, हेडमास्टर नहीं हैं जी
बिजनेसमैन हैं और आजकल की
पढ़ाई, पढ़ाई नहीं हैं धंधा है, धंधा।
इस संदर्भ में स्कूलों को भी स्वयं का मूल्यांकन किए जाने की आवश्यकता हैं और उनके द्वारा एक शिक्षक धर्म का बखूबी पालन किया जाना चाहिए ताकि विधार्थियो का सर्वांगीण विकास किया जा सकें। क्योंकि जिस प्रकार एक मजबूत मकान के लिए एक नींव का मजबूत होना आवश्यक हैं उसी प्रकार एक मजबूत राष्ट्र के लिए उसके विद्यार्थियों का शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होना आवश्यक है।
आज के इस आधुनिक समय में जहाँ लगभग 8-10 वर्ष की उम्र के बालकों तक स्मार्टफोन आसानी से उपलब्ध हो जाता हैं। इस तथ्य को देखते हुए अभिभावकों के लिए बच्चों को स्मार्टफोन से ज्यादा से ज्यादा दूर रखना एक चुनौती बनता जा रहा है। इससे छुटकारे प्राप्त करने के लिए अभिभावकों को बच्चों की स्मार्टफोन पर निर्भरता कम करनी होगी और उनके मन बहलाने के लिए अन्य कारगर उपायों को खोजना होगा जिससे उनके मानसिक विकास में भी बढ़ोतरी हो सकें। उदाहरणार्थ- चित्रकला, स्कूली स्तर के अलावा अन्य सामान्य ज्ञान की जानकारी, बाल साहित्य जिसमें नैतिक ज्ञान देने वाली कहानियां शामिल हों, रंगों की पहचान और रंगों के आपसी मिश्रण से बनने वाला नया रंग इत्यादि जो अभिभावकों और बच्चों दोनों के माहौल के अनुकूल रहे।
वही किशोर उम्र के बालकों के सोशल मीडिया अकाउंट और अन्य ऑनलाइन प्लेटफार्म पर लगातार निगरानी की आवश्यकता हैं ताकि यह पता लगाया जा सकें कि वह किसी ऐसे कार्य में संलग्न तो नहीं जो उनकी उम्र के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
उल्लेखनीय हैं कि सोशल मीडिया अकाउंट की एक तय उम्र 18 वर्ष तय की गई है लेकिन व्यवहारिक रूप में इस नियम का पालन नहीं किया जा रहा है जो कि एक चिंतनीय पहलु है।
एक और अन्य तस्वीर खतरे की ओर इशारा करती हैं, पोर्न वीडियो और अश्लील साहित्य।
सैद्धान्तिक रूप में भारत सरकार द्वारा पोर्न साइट पर प्रतिबंध लागू किया गया है लेकिन व्यवहारिक रूप में यह पूर्ण रूप में सफल नहीं हो पाया है जिसके दुष्परिणाम दैनिक जीवन में लगातार सामने आते रहते है। इसके लिए भारतीय सरकार को एक व्यापक स्तर पर कार्यवाही और एक मजबूत निगरानी तंत्र का गठन किये जाने की आवश्यकता है ताकि ऐसी सभी सक्रिय साइटों पर पूर्ण प्रतिबंध लागू हो सकें।
यह एक गौरतलब तथ्य है कि स्कूली स्तर पर छात्र छात्राओं का मानसिक विकास 90 प्रतिशत से अधिक विकसित हो जाता हैं इसीलिए यदि सरकार, समाज और अभिभावक मिलकर स्कूली स्तर पर छात्र-छात्राओं को उच्च नैतिक मूल्य प्रदान करना शुरू कर दें तो इससे हमारे समाज के पास एक ऐसी मजबूत युवा शक्ति होगी जो न केवल समाज के सर्वांगीण विकास में बल्कि एक सशक्त राष्ट्र के निर्माण में अग्रणी और सहायक सिद्ध होगी। क्योंकि वर्तमान समय में विश्व के संदर्भ में भारत एक युवा शक्ति से संपन्न देश है, लेकिन अगर हम अपनी इस युवा शक्ति की क्षमता का उचित मार्गदर्शन के अभाव में सदुपयोग न कर सकें तब हमारे लिए स्थिति को संभालना मुश्किल हो सकता है इसीलिए प्रत्येक पहलु को भविष्य के संदर्भ में जोड़कर युवाशक्ति को एक ठीक प्लेटफार्म प्रदान करने की जिम्मेदारी का निर्वहन किया जाना चाहिए।
एक कहावत प्रचलित हैं कि कमजोर नागरिकों के सहारे कोई भी राष्ट्र मजबूती से खड़ा नहीं हो सकता है
-मोहित कुमार उपाध्याय