Sunday, November 17, 2024
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भारतीय मूल्यों को समाज में डालने की जरूरत- दीपशिखा जादौन

त्रेतायुग मे एक माता-पिता जनक और सुनयना थे, जिनकी महलों में रहने वाली बेटी पर समाज द्वारा उनकी पवित्रता पर लगाए गये मिथ्या आरोप के कारण वह अपने कुल व अपनी मर्यादा के लिए वन चली गयी। परन्तु जब राम, जनक व सुनयना से मिले तो उन्होंने राम से कोई शिकायत नहीं की बल्कि राम को सांत्वना दी, क्योंकि उनको अपनी पुत्री द्वारा अपने धर्म के लिए त्याग व अपने संस्कार पर गर्व था।
आज के यदि किसी पिता की पुत्री के साथ ऐसी घटना घटित होती तो वह सबसे पहले अपने दामाद को हजार गालियाँ देता, उसके पश्चात उसे जेल में डलवाता और उसकी सम्पत्ति को अपने पुत्रों के लिए ले आता।
आज के पिता व राजा जनक में अन्तर यह है कि न तो उनमें जनक से संस्कार है न ही वे अपने पुत्र-पुत्रियों को राम और सीता से संस्कार दे पाते हैं। इसका प्रमुख कारण हमारी मूल व सिध्दांतविहीन शिक्षा है. बचपन से “A” अक्षर से हमारी शिक्षा प्रारंभ की जाती है, पहनावा भी पश्चिम सभ्यता का पहनाया जाता है। जब हममें बचपन से पश्चिम सभ्यता गुण डाले जाते हैं तो हममें अपनी भारतीय संस्कृति के मूल्य कहाँ से आयेगे। आज के समय को विज्ञान का दौर कहते हैं, विज्ञान ने बहुत कुछ प्राप्त किया है। विज्ञान आज मंगल ग्रह व चन्द्रमा में पहुँच चुका है, परन्तु आज इस महामारी के वायरस का कोई इलाज नहीं है। आज विज्ञान फिर सकते में पड़ा है। अपने विज्ञान व स्वास्थ्य व्यवस्था पर अहं दिखाने वाली वे पावरफुल शक्तियां आज हारकर नत-मस्तक हैं।
आज विश्व में महान कहलाने वाले भारत ने फिर अपने संस्कृति व शक्ति के बल पर विश्व में हिमालय का मस्तक ऊंचा कर दिया। आज विश्व की नजर उस देश पर टिकी है, जो लचर स्वास्थ्य व्यवस्था व विश्व की दूसरी बडी़ जनसंख्या वाला देश है। हमारी संस्कृति में ऋषी-मुनियों का तप इतना प्रभावशाली है, जो पावर वाले देश बड़े बड़े सैटेलाइटो द्वारा खोज रहे उन ग्रहों के बारे में करोड़ों वर्ष पूर्व ही बता गये थे।
इन महामारियों से बचने के वे नमस्ते करने, किसी का जूठा न खाने, विवाह समारोह में बैठकर स्वच्छ खाने, प्रकृति व पर्यावरण के संरक्षण की परंपरा हमको धरोहर में दे गये, परन्तु हम पश्चिमी अंधानुकरण में लिप्त होकर अपनी संस्कृति को भूल गए। यदि हममें अपने भारतीय मूल्य होते तो हमारे वृध्दाश्रम, वृध्दो से न भरे होते और हमको महामारी व पर्यावरणीय समस्याओं का सामना न करना होता!
आज का युवा भ्रमित होकर जो कृत्य कर रहा है, वह उस पथ पर न होता। आखिरकार हम पश्चिमी सभ्यता के पीछे कब तक भागेंगे। हमारी संस्कृति महान है, हमारा भारत विश्व गुरु हैं।
भारतीय मूल्यों को समाज में डालने की जरूरत है राम-सीता भी होगे जनक-सुनयना भी होगी और राम राज्य भी आयेगा।

-दीपशिखा जादौन

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