21वीं सदी की इस तीव्र गति के युग में वैश्विक लॉकडाउन एक अकल्पनीय घटना हैं, चारो तरफ कोरोना की ही विभीषिका मची हुई है।
क्या ये प्रकृति का कहर हैं?
नहीं,
मेरी दृष्टि से,
ये विकसित विज्ञान की विनाशकारी शक्ति का एक छोटा सा प्रयोग है कोरोना? प्रगतिशील महत्वाकांक्षी मानव की विकृत मानसिकता का नन्हा सा उदाहरण है कोरोना! पुरुषार्थ की चरम सीमा के बाद भगवान की कृपा का एहसास करा रहा कोरोना! मनुष्य को अंतर्मुखी बनने का आध्यात्मिक सन्देश दे रहा कोरोना! ऋषि मुनियों के उपदेश पर मन्थन करने का अवसर दे रहा कोरोना!
नव संवत्सर 2077 (साधकों के लिए कोरोना द्वारा आरोपित कंपलसरी अंतर्वास) का पहला चरण पूर्ण हुआ! भगवान श्री राम का प्राकट्य जीव मात्र को विश्राम देने के लिए हुआ था, श्री रामचरितमानस का भी सृजन संतप्त मानव को विश्राम देने के उद्देश्य से ही किया गया था (सम्वत 1631 में)।
रामचरितमानस एहि नामा।
सुनत श्रवण पाइय विश्रामा।।
आप में से जिन भक्तों ने मानस पारायण किया हैं, इस सत्य को अनुभव कर चुके हैं। पाँच सदी पूर्व संत शिरोमणि तुलसीदासजी को भी वही चिंता सता रही थी, जो आज विश्व में व्याप्त कोरोना के पेन्डेमिक से सबको सता रही हैं, कोरोना विषाणु से एक शरीर का रोग उत्पन्न होता हैं जो छूत का रोग है, पर गोस्वामीजी कहते हैं, ये मन के सभी रोग भी तो छूत के ही रोग हैं और विश्वव्यापी हैं। यही दुःख का मूल कारण हैं। जिसके कारण मनुष्य को जीवन में शांति और आनंद नहीं मिलता, जो उसका वास्तविक आत्मिक स्वरुप है और उसकी खोज में बाहर भटकता रहता है, सनातन धर्म का मनोविज्ञान आधुनिक मनोविज्ञान से बहुत आगे हैं, इसको आज सभी बुद्धिजीवी स्वीकार कर रहें हैं,
एक रोग बस नर मरिहि
ये असाधि बहु व्याधि
मानव को इस (वैश्विक पेन्डेमिक ) घातक विभीषिका से बचाने के लिए ही आध्यात्मिक विज्ञान ने उपाय बताये हैं, गोस्वामी तुलसीदास की यह करुणा रुपी संजीवनी है, श्रीरामचरितमानस
सद्गुरु ज्ञान विराग जोग के।
बिबुध बैद भव भीम रोग के।।
विज्ञान के द्वारा कोरोना का वैक्सीन बन भी जाये तो वह एक विषाणु के लिए होगा, पर मानस रुपी वैक्सीन न केवल आपको भव रोग, मन के और तन के, सभी रोगो से बचाएगा, आपकी रक्षा करेगा, आपकी रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाएगा, आपको विश्राम देगा, आपको स्वार्थ और परमार्थ दिलाएगा, आपको परमानन्द की प्राप्ति कराएगा, कोरोना ने विश्व में कहर भले मचा दिया हैं,
हे भारतीय,
तुम सनातनीय,
तुम सुरक्षित हो,
तुम संरक्षित हो,
श्री रामचरितमानस कलियुगी जीवों का वैश्विक वैक्सीन है, संजीवनी है, ले लीजिये, संक्रमण से बचा लेगा।
डोजेज्,
सत पञ्च चौपाइ मनोहर, जानि जे नर उर धरें।
दारुण अविद्या पञ्च जनित विकार श्री रघुवर हरें।।
लॉकडाउन का सदुपयोग करें, अंतर्मुखी बनें, यह कोरोना के कहर में प्रभु की करुण कृपा का दर्शन करें,
सदैव श्री सदगुरु की शरण में…
-मन्दाकिनी श्रीरामकिंकर