एक अध्यापक अगर रचनात्मक दृष्टिकोण रखता है तो बच्चों में कभी भी नीरसता नहीं आ सकती, बल्कि शिक्षक की सूझबूझ बच्चों में रचनात्मकता एवं रोचकता उत्पन्न कर देती है। संदीप जोशी उसी शिक्षक का नाम है जो बच्चों में उत्साह व आनंद के माहौल को बनाये रखने के लिए प्रयोगधर्मिता का सहारा लेते रहे हैं, अभी एक ताजा उदाहरण है उनके द्वारा बच्चों को प्रार्थना सभा में बैठाए जाने की एक नई प्रक्रिया, जिसने विद्यालय के खाली प्रांगण में नवीन प्रयोग से पुनः जीवंतता भर दी।
इन दिनों बोर्ड की परीक्षाएं चल रही है, अतः 8वीं, 10वीं और 12वीं कक्षाओं के बच्चे विद्यालय नहीं आ रहे हैं। तीनों कक्षा मिलाकर लगभग 160 छात्र संख्या कम हो गई है। प्रार्थना सभा भी कुछ खाली खाली लगती है। ऐसे में प्रार्थना सभा में छात्रों के बैठने की स्थिति में कुछ नए प्रयोग किए।
गणित, विज्ञान, भूगोल भारतीय संस्कृति के आधार पर नई नई संरचना में बैठकर विद्यार्थियों को प्रार्थना करवाते हैं, जैसे त्रिभुज, वर्ग, स्वस्तिक संरचना, सूर्य किरण संरचना, संकेंद्रीय वृत, आयत, आकाशगंगा आदि। कार्य कोई भी हो उसमें नवीनता लाने पर काम में उत्साह बढ़ता है, आनंद आता है। फिर वह औपचारिकता नहीं होकर अनुष्ठान हो जाता है।
प्रार्थना सभा के प्रति विद्यार्थियों में रुचि और उत्साह बना रहे, इसके लिए यह प्रयोग है। इसके सार्थक परिणाम भी आ रहे है। विद्यालय विलंब से आने वाले विद्यार्थियों की संख्या में कमी आई है। प्रार्थना सभा रोचकता बढ़ी है। (आनंदमय कोष) खास बात यह भी है कि अब बच्चे स्वयं नए-नए आईडिया देने लगे हैं कि आगामी दिनों में किस रचना में बैठना हैं। अपना मौलिक अमृत वचन है- खाली दिमाग, शैतान का नहीं क्रिएटिविटी का घर है। बस, यह उसी का उदाहरण है।