समय बहुत सुगम है, समय बहुत निर्मम है। समय का पहिया चलता ही रहता है। बस समय अच्छा या बुरा होता है, इसलिए समय के साथ चलते रहने में ही बुद्धमानी है। किसी परेशानी से परेशान होना तो प्राकृतिक है, लेकिन उस परेशानी के गुजर जाने का रस्ता देखना बेवकूफी है। खुद को मानसिक यातना देने के समान है।
जीवन में कभी-कभी हम अपनी सुरक्षित भावनाओं को दरकिनार करके अपने चारों तरफ असुरक्षा के भाव का घेरा बना लेते हैं, जो हमें उदास कर जाता है, हमें असहाय कर जाता है, इतना ही नहीं यह हमारे अंदर मौजूद प्रतिभा के ह्रास का कारण भी बन जाता है और हमारे बुद्धि-विवेक का हरण कर लेता है। ऐसे में अपनी सुरक्षा करना भी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी हो जाती है। फिर चाहे यह शारीरिक रूप से हो या फिर मानसिक स्तर पर इसकी देखभाल करना हो।
जीवन में ऐसे व्याप्त भय को नकारने के बजाय स्वीकारने की कोशिश करना चाहिए। डर से सीखने की आदत डाल लेनी चाहिए जिससे कि हमारा डर हमारा शिक्षक बन सके। ऐसा करके हम अपने बेरंग पड़े सपनों में कई कई रंग भर सकते हैं। उदासियों में खुशियों का संचार कर सकते हैं। साथ ही अपनी गलतियों को माफ़ करना भी आगे बढ़ने की दिशा में किया गया महत्वपूर्ण पहलू है। ऐसी स्थिति में खुद का सम्मान करना सकारात्मकता को स्पंदित करने जैसा ही होता है।
सही मायने में यदि आप जीवन को अपनी पूरी क्षमता के साथ जी रहे हैैं तो यही सफलता है। सफलता के बारे में सोचने की कोई जरूरत नहीं होती है इसलिए इसे सोचने का विषय कभी न बनाएं। बस यह देखें कि कैसे खुद को एक संपूर्ण इंसान बनाया जाए। दरअसल प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत होती है, लक्ष्य पर नहीं। क्योंकि लक्ष्य तो आपके संकल्प का प्रतीक है, बस इसे याद रखिए, अपनी आती जाती सांसों की तरह।
ठीक वैसे ही जैसे किसी खेल को उसके खेलने की प्रक्रिया पर ध्यान देकर, उसका निरंतर अभ्यास कर के उस खेल को जीतने की संभावना पक्की कर ली जाती है। जैसे दूध, मलाई, दही को क्रमशः औंटने, घोंटने और मथने से ही मक्खन मिलता है।
साथ ही अगर हमें अपनी फुलवारी में फूल चाहिए तो सिर्फ फूल फूल रटने मात्र से फूल नहीं आ जाएंगे। इसके लिए हमें मिट्टी, खाद, पानी और धूप को समझना होता है। अगर हम इनकी सहायता से पौधों की देखभाल करेंगे तो फ़ूल जरुर खिलते हैं। फूलों का खिलना भी अपने आप में एक संपूर्ण प्रक्रिया ही तो है।
सच पूछिए तो आपके हाथ में बस प्रयत्न है। आप का प्रयत्न प्रभावशाली होना चाहिए यानी कि वह केंद्रित और संतुलित होना चाहिए। इसका सही समय, सही स्थान, सही दिशा सभी अहमियत रखते हैं। हमें तो प्रकृति के हर पहलू का आनंद लेते हुए अपनी कल्पनाशीलता से यह अनुभव करना चाहिए कि संपूर्ण ब्रह्मांड हमारे साथ है।
अपने अंदर की शक्तियों को पहचानना अपनी हर पराजय को शिकस्त देने जैसा है। ऐसे ही अनेक रक्षा सूत्रों को नजरअंदाज करने की बजाय आइए इसे अपनाएं। आपकी हर एक कोशिश आपका साथ देगी। आइए रक्षा के इस पर्व पर एक रक्षा की डोर अपनी कलाई पर भी बांधें।
सुजाता प्रसाद
नई दिल्ली