भाइयो और बहनों! देवियो और सज्जनों! मुझे एक अदद मकान मालिक की जरूरत है। यों मालकिन होगी तो भी चलेगी पर उसका फैसला मैं करुँगा। बरसों से किराए के मकान में रहते-रहते मुझे मकान मालिक की आदत सी हो गई है। यों भी सबेरे-सबेरे दातून मुँह में दबाए मकान मालिक के दर्शन करने का एक अलग ही सुकून है।
मकान मालिक होने के क्या फायदे हैं, इस बात का एहसास मुझे तब हुआ जब मैंने अपना खुद का मकान बना लिया। सच कहता हूँ दूसरे ही दिन पता चल गया कि मकान मालिक क्या होता है। तब पहली बार अपने तमाम पूर्ववर्ती मकान मालिकों के लिए मेरे मन में सच्चे दिल से श्रद्धा और हमदर्दी का परनाला उमड़ गया।
मित्रों अपने नए मकान में कील ठोंकने का जब मैंने प्रयास किया तो पता चला कि एक-एक कील दीवार पर नहीं बल्कि दिल पर ठुक रही है। मुझे उन सारी कीलों का स्मरण हो आया, जो मैंने बड़ी बेमुरब्बती से अपने किराए के मकान में ठोकी थीं। अब उन दीवारों को याद करता हूँ तो दीवार नहीं बल्कि गोलियों से छलनी दीवार नजर आती है।
कभी नल में पानी नहीं आया तो उसी शान से मकान मालिक के द्वार पर धरना दे दिया, मानो वो उनका आँगन नहीं दिल्ली का जंतर-मंतर हो और हम साक्षात अरविंद केजरीवाल हों। यों हम हैं नहीं मगर जब भी कोई मोहल्ले का अन्ना मिल गया तो हमने भी केजरीवाल बनने में देरी नहीं की।
बरसात में छत टपक रहीं हो तो मकान मालिक जिम्मेदार। गरम हवा खिड़की से घुस रही हो तो मकान मालिक जिम्मेदार। लाइट चली जाए तो मकान मालिक से पूछते थे कि भाई साहब बिल तो भर दिया न।
मकान मालिक न हुए मोदी सरकार हो गई, हर अच्छे बुरे के लिए वही जिम्मेदार। और कभी अपने घर का कचरा फेकने पर मकान मालिक ने अगर टोक दिया तो समझो उसकी ही शामत आ गई। कि आप ही बताइये कि कचरा कहाँ फेके। आखिर स्वीपर का पैसा भी किराए के साथ देते हैं।
पर दोस्तों हमारी किस्मत केजरीवाल जैसी नहीं थी तो नहीं थी कुछ तो दोस्तों की बातों में आके और कुछ हाउसिंग लोन वालों के विज्ञापन के फरेब में आकर हमने एक अपना एक मकान बनवा ही लिया और बन बैठे मकान मालिक।
अभी उस दिन घर के सामने एक कुत्ता मर गया। जब बदबू आई और रहना दूभर हो गया तो भी समझ में नहीं आया कि क्या किया जाए। पत्नि बच्चे मुझे ऐसे देख रहे थे, मानो उस मरे कुत्ते को मैंने ही घर के द्वार पर डाल दिया हो। मुझे पहली बार एहसास हुआ कि विपक्ष की राजनीति करना कितना सरल है, बस हर चीज के लिए सरकार को गरिया लो और जिम्मेदारी समाप्त।
सत्ता की राजनीति तो काँटों का ताज है। हाय आज अपना कोई मकान मालिक होता तो इस घटना के लिए उसे जिम्मेदार ठहरा देते और बरी हो जाते, परंतु अब तो जो कुछ करना है स्वयं को ही करना है। दो दिन बाद राम-राम करके एक स्वीपर मिला भी तो उसने पाँच सौ रुपयों की माँग की, मरता क्या न करता। अपने हरफनमौला होने की सारी हेकड़ी निकल गई दिए।
पर सच कहता हूँ मकान मालिकों की बड़ी याद आई। कितनी आसानी से मेरी ऐसी समस्याओं का चुटकी में निदान कर देते थे। अब फ्यूज ठीक करना हो, स्विच बदलना हो तो इलेक्ट्रिीशियन से काम कराने में नानी याद आ जाती है। नल की टपकने वाली टोंटी बदलवाना हो। टायलेट की शीट चोक हो गई तो, कहीं प्लास्टर या फर्श रिपेयर कराना हो, घर की पुताई कराना हो। एक ही आदमी को बोलना होता था मकान मालिक।
मकान मालिक न हुआ सोलह होल का पाना हो गया। अब घर में ये आलम है शाम को घर में घुसने से पहले ये सोचना पड़ता है, कि आज मकान में क्या काम कराना है। यकीन मानिए मकान से संबंधित कौन कौन से काम होते हैं और उनके करने वाले कौन लोग हैं ये कभी पता ही नहीं चला। इधर कुछ गड़बड़ हुआ और इधर मकान मालिक को बोला अब वो चाहे खुद करे या मंगल ग्रह से किसी एलियन को बुला कर कराए ।
कुछ दिन पहले बच्चे दीवार पर कलाकारी कर रहे थे। एक दम नयी दीवार पुट्टी और महँगा पेंट। बस आव देखा न ताव दो झन्नाटेदार गाल में चिपका दिए। इसके बाद जैसे सबने मेरे खिलाफ मोर्चा खोल लिया और इस बार घर ही जंतर मंतर बन गया।
बच्चों ने कहा पापा आप पहले तो नहीं टोकते थे। ये सच है कितु तब मकान किराए का था। उन मकानों की दीवारों में मेरे बच्चों ने एम. एफ. हुसैन, राजा रवि वर्मा और अमृता शेरगिल बनने के सपने देखे थे। अगले महीने एक शादी में जाना है अब घर को किसके भरोसे छोड़ के जाइयेगा।
मकान बनाया तो खाली जगह में भिंडी और तोरई उगाने की कला सीख ली। अब बताइये इन तोरई में पानी कौन डालेगा। घर के आंगन मे विराजमान भोलेबाबा को जल कौन चढाएगा। घरवाली और बच्चे जाते हैं तो मुझे रोटी कौन खिलाएगा। मैं जाता हूँ तो बच्चों की फिकर कौन करेगा।
दोस्तों समस्या विकट है इसलिए मैं आपसे निवेदन करता हॅू कि मुझे एक अदद मकान मालिक की जरूरत है, यों मालकिन होगी तो भी चलेगी पर उसका फैसला मैं करुँगा।
मुकेश चौरसिया
गणेश कालोनी केवलारी
जिला सिवनी