मेरे अन्तर्मन का स्वर जो प्रत्येक क्षण स्मरण कराता है, ‘चलो बुद्ध हो जाएं’ हमारे गृह जनपद देवरिया से सटा कुशीनगर जनपद है, जो भगवान बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली है, कभी-कभी यहांँ आया करती हूँ। यहां आकर मेरा मन संसार के समस्त सुखों एवं विलासिताओं को परित्याग करने के लिए विवश करने लगता है, वास्तविकता के आधार पर देखा जाय तो सरल है कहना ‘चलो बुद्ध हो जाएं’ परन्तु आसान नही है सिद्धार्थ से बुद्ध हो पाना।
सारी उम्र मनुष्य स्वयं के प्रभाव को स्थापित करने में व्यय कर देतें हैं और हाथ कुछ नही आता। हमारे प्रभाव का एकमात्र अंश भी परमार्थ के लक्ष्य का मार्ग प्रशस्त नहीं करा सकता, संसारिक मोह में बंधने के बाद भी क्यूँ ना हम स्वयं की बुद्धि एवं आत्मिक बल को सुदृढ़ करें मानव को मानवता से जोड़ रखें।
हम किसी की निंदा क्यूँ करें, मोह के लोभ में दूसरे के हृदय को चोट पहुँचा कर हम पाप का वरण किस लिए करें, क्यों ना हम परोपकारी भावनाओं को अपने भीतर स्थापित करें।
हृदय के क्षेत्र का विस्तारण नितांत आवश्यक है। संसारिक वैभव के परम सुख की कामना ही पाप का मुख्य कारक है, हम अपनी मूर्खता का परिचय क्यो दें। इन्द्रियों के सुख मात्र से हमे सात्विक सत्य के दृष्टांत की प्राप्ति नही हो सकती, हमें अपने चरित्र और आध्यात्म को पौराणिक भावनाओं से सराबोर करने की आवश्कता है।
हमें मृत्यु का भय कैसा! शोक के महल में बसेरा क्यूँ भला जबकि स्वभाविक है। मृत्यु का आना, ये प्रकृति का वो नियम है जिसे परिवर्तित नही किया जा सकता, तो फिर किस अहम में हैं हम सभी, जन्म का मार्ग एक, रक्त का रंग एक तो छुआछूत भेदभाव जाति वाचक संज्ञाओं का प्रयोग क्यों।
मृत्यु का आलिंगन सबको एक दिन करना है, हम मानव अंधविश्वास में क्यूँ उलझेंं मानवता का ज्ञान ही जीवमात्र का लक्ष्य होना चाहिए। हम अपनी बुद्धि के माध्यम से आध्यात्मिक एंव बौद्धिकता के लक्ष्य को साध सकते हैं, भले ही हम बुद्ध ना बन पायें, परन्तु बुद्धत्व के मार्ग का अनुसरण तो कर ही सकते हैं।
प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश