Friday, November 1, 2024
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चौधरी चरण सिंह: स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजाद भारत में भी किये संघर्ष

मेरठ (हि.स.)। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में भाग लिया तो आजाद भारत में आपात काल का भी विरोध किया। उन्हें किसानों की लड़ाई लड़ने के लिए याद किया जाता है। उन्हें भारत रत्न मिलने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खुशी की लहर दौड़ गई है।

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने जीवनभर जनता के हक की लड़ाई लड़ी। उनका जन्म हापुड़ जनपद (उस समय मेरठ) जनपद के नूरपुर मढैय्या गांव में 23 दिसम्बर 1902 में हुआ था। इनके पिता का नाम मीर सिंह था। इनकी पत्नी का नाम गायत्री देवी था। उन्होंने विज्ञान से स्नातक, कला स्नातकोत्तर और विधि स्नातक की शिक्षा प्राप्त की। इनकी मृत्यु 29 मई 1987 को 85 वर्ष की आयु में हुई। उन्हें हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू भाषा का ज्ञान था। उन्होंने लोकदल की स्थापना की और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। वह भारत के पांचवें प्रधानमंत्री बने और उनका कार्यकाल 28 जुलाई 1979 से लेकर 14 जनवरी 1980 तक रहा।

चौधरी चरण सिंह ने कई पुस्तकें लिखी

चौधरी चरण सिंह ने भूमि सुधार और कुलक वर्ग, भारत की अर्थनीति, गाँधीवादी रुपरेखा की रचना, शिष्टाचार, इकोनॉमिक नाइटमेयर ऑफ इंडिया इट्स कोज एंड क्योर (भारत की भयावह आर्थिक स्थिति, कारण और निदान) ‘अबॉलिशन ऑफ़ जमींदारी’, ‘लीजेंड प्रोपराइटरशिप’ और ‘इंडियास पॉवर्टी एंड इट्स सोल्यूशंस’ पुस्तकें लिखी।

आजादी की लड़ाई में भाग लिया

चौधरी चरण सिंह ने अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया। अपनी राजनीति की शुरूआत कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में की।

कांग्रेस के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे, तब चौधरी चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमिटी का गठन किया। 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में चरण सिंह ने हिंडन नदी किनारे नमक बनाना शुरू किया तो अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। जेल से बाहर आकर वह जोर-शोर से स्वतंत्रता आंदोलन में लग गए।

1937 में पहली बार विधानसभा पहुंचे

1937 में चुनाव होने पर चौधरी चरण सिंह बागपत से विधानसभा के लिए चुने गए। विधानसभा में किसानों की फसल से संबंधित एक बिल पेश किया। 1939 में ऋण निर्मोचन विधेयक पास कराकर चौधरी साहब ने लाखों गरीब किसानों को कर्ज से मुक्ति दिलाई। 1940 में छोटे स्तर पर व्यक्तिगत सत्याग्रह में चरण सिंह ने भाग लिया और जेल भेजे गए। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने भाग लिया और जेल गए। चौधरी चरण सिंह किसानों को जमीन का मालिकाना हक दिलाना चाहते थे। वह भारत में सोवियत संघ की तर्ज पर आर्थिक नीतियां लागू कराना नहीं चाहते थे। वे सहकारी खेती के रूसी मॉडल के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने 1952, 1962 और 1967 का विधानसभा चुनाव जीता। वे गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव रहे। इसके बाद राजस्व, कानून, सूचना, स्वास्थ्य मंत्रालय संभाले।

1967 में चरण सिंह ने कांग्रेस छोड़कर भारतीय क्रांति दल का गठन किया। उत्तर प्रदेश में पहली बार कांग्रेस हारी और चौधरी चरण सिंह मुख्यमंत्री बने। वे 1967 और 1970 में मुख्यमंत्री बने। उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जमींदारी उन्मूलन कानून लागू कराया। इसका जमींदारों ने बहुत विरोध किया, लेकिन उनका विरोध काम नहीं आया। उन्होंने खाद पर से सेल्स टैक्स हटाया।

आपातकाल का जोरदार विरोध किया

इंदिरा गांधी के आपातकाल लगाने का चौधरी चरण सिंह ने भी बड़ा विरोध किया और जेल चले गए। 1977 में जनता पार्टी की सरकार में उप प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री चुने गए। उन्होंने राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना कराई। मोरारजी देसाई की सरकार गिरने के बाद कांग्रेस के सहयोग से प्रधानमंत्री चुने गए, लेकिन बहुमत साबित करने से पहले ही कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 1994 में मेरठ विश्वविद्यालय का नाम चौधरी चरण सिंह के नाम पर कर दिया।

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