सनातन धर्म में भगवान शिव-पार्वती की पूजा के लिए बेल पत्र का उपयोग किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार बेल के अनगिनत लाभ हैं जिसके कारण औषधि के रूप इसका प्रयोग किया जाता है। बेल के उपयोग से कफ-वात विकार, बदहजमी, दस्त, मूत्र रोग, पेचिश, डायबिटीज, ल्यूकोरिया में बेल के फायदे ले सकते हैं। इसके अलावा पेट दर्द, ह्रदय विकार, पीलिया, बुखरा, आंखों के रोग आदि में भी बेल के सेवन से लाभ मिलता है। अनेक लोग बेल का शर्बत भी बहुत पसंद से पीते हैं।
उलटी-दस्त
- बेलफल के छिलके का 30 से 50 मिली काढ़ा शहद मिलाकर पीने से त्रिदोषजन्य उलटी में आराम मिलता है।
- बेल (bael tree) के कच्चे फल को आग में सेंक लें। 10 से 20 ग्राम गूदे को मिश्री के साथ दिन में 3-4 बार खिलाने से दस्त में लाभ होता है।
- 50 ग्राम बेल की सूखी गिरी, तथा 20 ग्राम सफेद कत्थे के महीन चूर्ण में 100 ग्राम मिश्री मिला लें। इसकी 1.5 ग्राम की मात्रा में दिन में 3-4 बार सेवन करें। इससे दस्त पर रोक लगती है।
- 200 ग्राम बेलगिरी को 4 लीटर जल में पका लें। जब जल 1 लीटर रह जाये तो छान लें। इसमें 100 ग्राम मिश्री मिलाकर बोतल में भरकर रख लें। इसको 10 या 20 मिली की मात्रा में, 500 मिग्रा भुनी हुई सोंठ मिला लें। इसका सेवन करने से, 2 या 3 बार में ही सब प्रकार के दस्त (अगर दस्त बहुत हो रहा हो तो 65 मिग्रा अफीम मिला लें) में लाभ होता है।
- गर्भवती स्त्री को दस्त होने पर 10 ग्राम बेलगिरी के पाउडर को चावल के धोवन के साथ पीस लें। इसमें थोड़ी मिश्री मिला लें। इसे दिन में 2-3 बार देने से लाभ होता है।
- 5 ग्राम बेलगिरी को सौंफ के अर्क में घिसकर, दिन में 3-4 बार देने से बालक को दें। इससे हरे तथा पीले रंगयुक्त दस्त ठीक हो जाते हैं।
- बेलगिरी व पलाश का गोंद लें। इनकी 1-1 ग्राम मात्रा को 2 ग्राम मिश्री के साथ थोड़े जल में खरल कर लें। इसे धीमी आग पर गाढ़ा कर चाटने से दस्त में लाभ होता है।
- बेल का मुरब्बा खिलाने से दस्त में लाभ होता है। पेट के सभी रोगों के लिए बेल का मुरब्बा फायदेमंद है।
- बेल के कच्चे, और साबुत फल को भून लें। इसे छिलके सहित कूटकर रस निकाल लेंं। इसमें मिश्री मिलाकर लेने से पुराना दस्त मिटता है। यह प्रयोग दिन में एक या दो बार लगातार 10-15 दिन तक करें।
- बेलगिरी, कत्था, आम की गुठली की मींगी, ईसबगोल की भूसी और बादाम की मींगी लें। बराबर मात्रा में सभी सामान लें और इसमें शक्कर या मिश्री के साथ 3-4 चम्मच मिलाकर सेवन करें। इससे दस्त की गंभीर समस्या में लाभ होता है।
- बेलगिरी और आम की गुठली की मींगी को बराबर मात्रा में पीस लें। इसे 2 से 4 ग्राम तक चावल के मांड के साथ, या शीतल जल के साथ सुबह और शाम सेवन करें। दस्त में यह प्रयोग बहुत ही प्रभावशाली है।
- बेलगिरी के 50 ग्राम गूदे को 20 मिली गुड़ के साथ दिन में तीन बार खाने से पेचिश में लाभ होता है।
- चावल के 20 ग्राम धोवन में बेलगिरी चूर्ण 2 ग्राम, और मुलेठी चूर्ण 1 ग्राम को पीस लें। इसे 3-3 ग्राम शक्कर, और शहद मिलाकर दिन में 2-3 बार सेवन कराने से दस्त में लाभ होता है।
- बेलगिरी और धनिया 1-1 भाग लें। इन्हें दो भाग मिश्री में मिलाकर चूर्ण बना लें। 2-6 ग्राम मात्रा में ताजा जल से सुबह और शाम सेवन करें। इससे दस्त में लाभ होता है।
- कच्चे बेल (bael tree) को कंडे की आग में भूनें। जब छिलका बिल्कुल काला हो जाय, तब भीतर का गूदा निकालकर 10 से 20 ग्राम तक दिन में तीन बार मिश्री मिला सेवन कराएं।
- बेल के पके फल के गूदे को ठंडे जल में मसलकर, छान लें। इसमें मिश्री, इलायची, लौंग, काली मिर्च तथा थोड़ा कपूर मिलाकर शर्बत बना लें। इसे पीने से प्यास, जलन, उल्टी, कब्ज और पाचन विकार ठीक होते हैं। जिन्हें कब्ज की शिकायत हो, वे इसे भोजन के साथ लें।
- 100 ग्राम गूदे को मसल लें। उसमें इमली के पानी के साथ थोड़ी शक्कर या दही के साथ शक्कर मिलाकर पिएं। इससे कब्ज और शरीर की जलन में लाभ होता है।
संग्रहणी
- इस व्याधि में पाचनशक्ति अत्यंत कमजोर हो जाती है। बार-बार दुर्गन्धयुक्त चिकने दस्त होते हैं। इसके लिए 2 बेलफल का गूदा 400 मिली पानी में उबालकर छान लें, फिर ठंडी कर उसमें 20 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करें।
- पुरानी जीर्ण संग्रहणी में बेल का 100 ग्राम गूदा प्रतिदिन 250 ग्राम छाछ में मसलकर पियें।
- पेचिश में बेलफल आँतों को ताकत देता है। एक बेल के गूदे से बीज निकालकर सुबह शाम सेवन करने से पेट में मरोड़ नहीं आती।
जलन
200 मिली पानी में 25 ग्राम बेल का गूदा, 25 ग्राम मिश्री मिलाकर शरबत पीने से छाती, पेट, आँख या पाँव की जलन में राहत मिलती है।
मुँह के छाले
एक बेल का गूदा 100 ग्राम पानी में उबालें, ठंडा हो जाने पर उस पानी से कुल्ले करें, छाले मिट जायेंगे।
मधुमेह
- 10-20 ग्राम बेल के ताजे पत्तों (bael leaves) को पीस लें। उसमें 5-7 काली मिर्च भी मिलाकर पानी के साथ सुबह खाली पेट सेवन करें। इससे मधुमेह में लाभ होता है।
- रोज सुबह 10 मिली बिल्व (बेल) के पत्ते के रस का सेवन भी गुणकारी है।
- बेल के पत्ते, हल्दी, गिलोय, हरड़, बहेड़ा, और आंवला लें। इनकी 6-6 की मात्रा में लेकर कूटें। इन्हें 250 मिली जल में रात को कांच या मिट्टी के बर्तन में भिगो दें। सुबह खूब मसल, छान लें। इसकी 125 मिली मात्रा सुबह और शाम 2-3 माह तक सेवन करें। इससे मधुमेह में लाभ होता है।
दिमागी थकावट
एक पके बेल का गूदा रात्रि के समय पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रखें। सुबह छानकर इसमें मिश्री मिला लें और प्रतिदिन पियें। इससे दिमाग तरोताजा हो जाता है।
कान का दर्द, बहरापन
बेल के कोमल पत्तों को स्वस्थ गाय के मूत्र में पीस लें। इसमें चार गुना तिल का तेल, तथा 16 गुना बकरी का दूध मिलाकर धीमी आग में पकाएं। इसे रोज कानों में डालने से बहरापन, सनसनाहट (कानों में आवाज आना), कानों की खुश्की, और खुजली आदि समस्याएं दूर होती हैं।
पाचन
पके हुए बेलफल का गूदा निकालकर उसे खूब सुखा लें। फिर पीसकर चूर्ण बनायें। इसमें पाचक तत्त्व पूर्ण रूप से समाविष्ट होता है। आवश्यकता पड़ने पर 2 से 5 ग्राम चूर्ण पानी में मिलाकर सेवन करने से पाचन ठीक होता है। इस चूर्ण को 6 महीने तक ही प्रयोग में लाया जा सकता है।
क्षय रोग या टीबी
बेल की जड़, अड़ूसा के पत्ते तथा नागफनी और थूहर के पके सूखे हुए फल 4-4 भाग लें। इसके साथ ही सोंठ, काली मिर्च व पिप्पली 1-1 भाग लें। इन्हें कूट लें। इसके 20 ग्राम मिश्रण को लेकर आधा ली जल में पकाए। जप पानी एक चौथाई रह जाए तो सुबह और शाम शहद के साथ सेवन कराने से टीबी रोग में लाभ होता है।
पीलिया और एनीमिया
10-30 मिली बेल के पत्ते के रस में आधा ग्राम काली मिर्च का चूर्ण मिला लें। सुबह शाम सेवन कराने से पीलिया और एनीमिया रोग में लाभ होता है।
कमजोरी
- केवल बेलगिरी के चूर्ण को मिश्री मिले हुए दूध के साथ सेवन करने से खून की कमी, शारीरिक कमजोरी तथा वीर्य की कमजोरी दूर होती है।
- 3 ग्राम बिल्व के पत्तों (bael leaves) के चूर्ण में थोड़ा शहद मिलाकर, सुबह-शाम नियमित सेवन करने से धातु रोग में लाभ होता है।
- 20-25 मिली बिल्व के पत्ते के रस में 6 ग्राम जीरक चूर्ण, 20 ग्राम मिश्री, तथा 100 मिली दूध मिला लें। इसे पीने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है।
- बेलगिरी, अश्वगंधा और मिश्री का बराबर मात्रा में चूर्ण बना लें। इसके चौथाई भाग में उत्तम केशर का चूरा मिला लें। 4 ग्राम तक सुबह और शाम खाकर, ऊपर से गर्म दूध पीने से शारीरिक कमजोरी में लाभ होता है।
- बेल को सुखा लें। इसके गूदे का महीन चूर्ण बना लें। इसे थोड़ी मात्रा में रोज सुबह और शाम सेवन करें। इससे कमजोरी दूर होती है।
डिस्क्लेमर- उपरोक्त लेख में दी गई जानकरी सामान्य मान्यताओं और घरेलू नुस्खों पर आधारित हैं, लोकराग न्यूज पोर्टल इसकी पुष्टि नहीं करता है। ज्यादा जानकारी के लिए संबंधित विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य कर लें।