तालाबंदी में मजदूरों को वेतन से वंचित रखना ही पलायन की वजह: वीरेंद्र तोमर

कोरोनावायरस को ध्यान में रखकर भारत सरकार के द्वारा की गई तालाबंदी मजदूरों की हालत को खराब कर दिया है। एक तो मालिक उनको मार्च-अप्रैल का पैसा नहीं दे रहे हैं, दूसरा उनको घर वापस जानने के लिए कोई संसाधन नहीं है और वह यदि चुपचाप जा भी रहे हैं, तो उनको पुलिस की प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है। जिसके कारण आज तक देश में लगभग 378 मजदूर अपनी जान गंवा चुके हैं।
जान गंवा चुके श्रमिकों के परिवार वालों को सांत्वना के अलावा सरकार से कुछ भी नहीं मिला है। यहां तक कि आज भी श्रमिक अपने अपने घर वापसी के लिए परेशान घूम रहे हैं। कहने के लिए तो सरकार ने स्पेशल ट्रेनों को चलाए जाने की घोषणा की है, किंतु फिर भी देश में अफरातफरी का आलम मचा हुआ है।
लोग विभिन्न रास्ते अपनाकर पैदल चल अपने गांव में पहुंचना चाह रहे हैं, किंतु सरकार उनको घर वापसी के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं कर पा रही है। फलतः ज्यादातर मज़दूर काल के गाल में समा  रहे हैं।
जब से लॉकडाउन शुरू हुआ है, तब से लेकर आज तक भूख से 58 लोग, पैदल चलने में थकान के कारण 29 लोग, आपसी हिंसा से 12  श्रमिक,  समय से दवा ना मिलने के कारण 42 श्रमिक, तालाबंदी के कारण  परेशान होकर 91 लोग आत्महत्या कर चुके हैं। शराबबंदी व बीड़ी तंबाकू गुटखा की बंदी के कारण परेशान होकर लगभग 46 श्रमिक जान गवां चुके हैं।  रेल व सड़क दुर्घटना में लगभग 89  श्रमिक, तालाबंदी में प्रताड़ना के द्वारा 14 लोग तथा 43 लोगों के मारे जाने का सही कारण अभी तक प्राप्त नहीं हो पाया है। यह आंकड़ा और भी बढ़ जाएगा यदि आज सुबह औरैया में हुई 24 श्रमिकों की गई जान को भी जोड़ा जाए तो, लगभग 38 लोग घायल हुए हैं, जो कि औरैया इटावा कानपुर देहात के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती किए गए हैं।
उपर्युक्त श्रमिकों की गई जान से पता चलता है कि हमारी प्रदेश की सरकारें व केंद्र की सरकार श्रमिकों के प्रति कितनी संवेदनशील है। देखा जा रहा है, प्लांटों में श्रमिक अभी भी धरना प्रदर्शन कर रहे हैं कि उन्हें मार्च तथा अप्रैल का वेतन दिया जाए किंतु उद्योगपतियों तथा हमारी सरकार के कानों में इसकी जू नहीं रेंग रही है और बदले में मजदूरों के कानूनों को और लचर बना दिया गया है ताकि मालिकों द्वारा श्रमिकों का खूब शोषण हो सके।
भारतीय मजदूर संघ, सीआईटीयू व इंटक जैसे श्रमिक संगठन भी चुप्पी साधे हुए हैं। श्रमिकों के हितों का किसी को कुछ लेना देना नहीं है।  इसी कारण मजदूरों में अराजकता फैल रही है। लोगों का सरकारों से विश्वास कम होता दिखाई दे रहा है। भारतीय श्रमिक आज किंकर्तव्यविमूढ़ जैसी स्थिति में पहुंच चुका है और वह अपने घरों में पहुंचना चाहता है। यूपी और बिहार के मजदूर को अपने घरों की ओर महाराष्ट्र से गुजरात से पंजाब से कश्मीर से तथा दिल्ली से लौट के घर तो जा रहे हैं, परंतु गुजरात के छोटे-छोटे शहरों में फंसे आंध्र प्रदेश तेलंगाना उड़ीसा बंगाल व असम के लोग अपने घर नहीं जा पा रहे हैं तथा सरकार को कोस रहे हैं।
मजदूरों का अपने घरों की ओर करता पलायन यह साफ दर्शा रहा है कि आने वाले समय में फैक्ट्रियों में ताले लग जाएंगेम श्रमिक वापस नहीं आने वाले हैं। कोरोनावायरस के डर से मजदूरों को घर भागने की जल्दी पड़ी है और यदि हमारी सरकार समझदारी दिखाती तो कुछ कुछ ही दिनों बाद इन श्रमिकों को वापस इनके कार्य स्थलों तक लाया जा सकता था और फिर सुचार रूप से फैक्ट्रियां चालू हो सकती थी।
श्रमिकों के वेतन का भुगतान न होना तथा उनके यातायात के साधनों को बंद कर देना ही उनके बीच अविश्वास तथा असंतोष पनप रहा है। जिसका मात्र उपाय था कि हमारी रेल तथा सड़क की व्यवस्था को यदि चालू कर दिया जाता। पूर्णरूपेण तथा उनके वेतन का भुगतान भी करवाया जाता फैक्ट्री मालिकों को प्रेशर देकर तो शायद यह अफरा-तफरी रोकी जा सकती थी।
कोरोनावायरस एक लाइलाज साबित हो रही है यह वर्कर्स को भी अच्छे से पता है और वह सीख चुके हैं कि उन्हें अब कोरोना के साथ ही जीना और मरना है। इस वायरस से देश की जनता आप काफी हद तक जागरूक हो चुकी है। अब तालाबंदी का कोई  सार्थक हल दिखाई नहीं दे रहा है। सरकार को चाहिए जो लोग ट्रेन से वह बसों से यात्रा करने जा रहे हैं।
उन्हें ट्रेन व बसों को चालू करके जाने दिया जाए किंतु जाने के समय टिकट खरीदने के पहले उनकी मेडिकल की जांच अति अनिवार्य कर दी जाए और वह स्वस्थ मिले तो उन्हें उनके गंतव्य तक जाने दिया जाए, ताकि वह अपने अत्यंत अनन्य लोगों से, परिवार वाले लोगों से मिलजुल सके और घर में रहकर फिर पुनः वापसी का विचार बना सकें।
सरकार को पूरी तरीके से रेल यातायात तथा रोड यातायात को अब खोल देना चाहिए। जिन एरिया में संदिग्ध कोरोना वायरस के केस मिल रहे हैं पर्टिकुलर उसी एरिया उस उन्हीं परिवारों को सील करके अन्य लोगों को छूट दे दी जानी चाहिए,  ताकि वह फ्री होकर अपना मूवमेंट्स कर सके और जा आ सके।नयही एक सच्चा व सीधा उपाय है सरकार के पास तभी देश की आर्थिक मंदी को पुनः पटरी पर लाया जा सकता है।