नेपाल-भारत साहित्य महोत्सव के चतुर्थ संस्करण का दस सूत्रीय विराटनगर घोषणा पत्र के साथ समापन

राम जानकी सेवा सदन में महानगर पालिका बिराटनगर नेपाल और क्रांतिधरा साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय नेपाल भारत साहित्य महोत्सव में 450 से अधिक नेपाली व भारतीय साहित्यिक व सामाजिक, पत्रकार बंधुओं की सहभागिता रही। आयोजन के प्रथम दिवस के मुख्य अतिथि कोसी प्रदेश के पूर्व प्रदेश प्रमुख डॉ गोविन्द सुब्बा रहे, अध्यक्ष के रूप में विराटनगर महानगरपालिका के मेयर नागेश कोईराला और विशिष्ट अतिथि के रूप में दधिराज सुबेदी, विवश पोखरेल, गंगा सुबेदी, डॉ बलराम उपाध्याय, भीष्म उप्रेती, विभा रानी श्रीवास्तव, जनार्दन अधिकारी धडकन रहे। सत्र संचालन डॉ देवी पंथी और गोकुल अधिकारी द्वारा किया गया।

द्वितीय सत्र नेपाल भारत साहित्यिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक व ऐतिहासिक संबंधी परिचर्चा रही। तृतीय सत्र लघुकथा को समर्पित रहा जिसका संचालन सुविख्यात लघुकथाकार डा पुष्कर राज भट्ट ने किया और विभा रानी श्रीवास्तव, नीता चौधरी, सीमा वर्णिका, राजेन्द्र पुरोहित, हेमलता शर्मा ‘भोली बेन’ आदि ने लघुकथा वाचन के साथ विधा पर विमर्श किया। जिसमें से कुछ लघुकथा जो प्रमुख रूप से दर्शकों द्धारा पसंद की गयी यहां प्रकाशित है।

पटना से विभारानी श्रीवास्तव की लघुकथा: कोढ़
कई दिनों पहले से अनेक स्थलों पर बड़े-बड़े इश्तेहार लग गए…
‘नए युग को सलामी: खूँटे की नीलामी’ तय तिथि और निर्धारित स्थल पर भीड़ उमड़ पड़ी थी।
एक बैनर पर लिखा हुआ था… “जो खूँटा रास्ते की रुकावट बने, उस खूँटे को उखाड़ फेंकना चाहिए।”
नीलामी में विभिन्न आकार-प्रकार के सजे-सँवरे खूँटे थे और सब पर अलग-अलग तख्ती लटकी हुई थी और लिखा था
नए युग की सलामी: पर्दा उन्मूलन के खूँटे की नीलामी
नए युग की सलामी: भ्रूण हत्या के उखड़े खूँटे की नीलामी
नए युग की सलामी : बाल विवाह के उजड़े खूँटे की नीलामी
नए युग की सलामी : देवदासी पुनर्वास के खूँटे की नीलामी
नए युग की सलामी : नारी शिक्षा के खूँटे की नीलामी
नए युग की सलामी : विधवा विवाह के खूँटे की नीलामी
इत्यादि..!
लेकिन एक बड़े खम्भेनुमा मजबूत भुजंग खूँटे पर तख्ती लटकी हुई थी। जिस पर लिखा था, “अभी नीलामी का समय नहीं आया है..।”
“ऐसा क्यों ?” भीड़ ने पूछा।
“तख्ती पलट कर देख लो!” आयोजक ने कहा
तख्ती के पीछे लिखा था,
‘बलात्कार व भ्रष्टाचार का खूँटा’ ,

इंदौर से हेमलता शर्मा की लघुकथा ‘योग्यता पर भरोसा’
रोज की तरह दूर से आती मधुर संगीत की कर्णप्रिय ध्वनि आज माधवी को बिल्कुल नहीं भा रही थी … पता नहीं लोग 24 घंटे क्यों संगीत सुनते रहते हैं?… उसके बेटे का चयन जो नहीं हुआ था- संगीत प्रतियोगिता में… योग्यता की कोई कद्र ही नहीं है… उसे चुन लिया जिसे संगीत की कोई समझ नहीं… बड़े बाप का बेटा जो ठहरा… एक कड़वाहट-सी उसके भीतर घुलकर उसके शरीर को कसैला बना रही थी… तभी महरी की आवाज ने उसे चौंका दिया- “बीबी जी हमार बचवा का एडमिशन बड़े स्कूल में हो गया है ! वो मोहल्ला के स्कूल वालों ने तो भर्ती नहीं किया था…पर मेरे को उसकी योग्यता पे भरोसा था…” कहकर अपने काम में लग गई, लेकिन अनजाने ही माधवी को योग्यता पर भरोसा रखने का संदेश दे गई । अब माधवी का मन हल्का हो गया था । उसे अब वह संगीत की ध्वनि पुनः मधुर लगने लगी थी ।

मीरा प्रकाश, पटना, बिहार की लघुकथा: मातृशक्ति
रेखा ऑटो लिए यात्रियों के इंतजार में चौराहे पर खड़ी सोच रही थी, अब अंतिम फेरा लगाकर, राजेश की दवा लेकर घर को चलूँ।
घर पहुंचते ही राजेश ने लंगड़ाते हुए दरवाजा खोला। और मन ही मन सोचा, अगर रेखा ने जिद करके रिक्शा चलाना नहीं सीखा होता, तो आज दुर्घटना में उसके पाँव टूटने के बाद उसके घर का खर्च कैसे चलता।
लो जी! अपनी दवा! और हां कल प्लास्टर कटवाने अस्पताल चलना है। कहते हुए रेखा ने घर में प्रवेश किया। राजेश ने हंसकर कहा तुमने इस सोच को गलत साबित कर दिया कि स्त्रियां केवल चौका बर्तन करती, घर में ही अच्छी लगती है।

प्रथम दिन का चतुर्थ सत्र कवि सम्मेलन का रहा जिसमें भारत से सभी प्रदेशों से पधारे हुए अतिथियों ने कविता पाठ किया-
रंजिशें हृदय की,
ख्वाहिशें नयनों से अवलोकन की,
इबारतें ख़ुदा की,
जलालतें मानवता की,
नहीं भूलते, करते, सहते हैं सब
आख़िर यह सब क्यों? और कब तक। अर्पणा आर्या (ध्रुव) प्रयागराज ,

याद रखना, शांति प्यार इंसानियत है राह तुम्हारा।
जिस पर चल तुम हो परमेश्वर से एक।
पर जब-जब भटके हो तुम,
विवश हो सिखाना पड़ा है मुझे ये मार्ग तुम्हें। सीमा सैनी, जमशेदपुर, झारखण्ड ,

हिंदी है नाम मेरा हिंदुस्तान धाम है।
गीत, ग़ज़ल, दोहे और छंद को प्रणाम है।
कोमल प्रसाद राठौर, रायपुर, छत्तीसगढ़,

हे नेटेश्वर बाबा आप कहां चले गए।
हमे निराश करके करके आप कहां चले गए।।
न खाना-खाने को मन करता है।
न कोई काम करने को मन करता।।
रात- दिन तेरी यादो मे मुझे तड़पाता है।
अच्छी खासी आदमीयो को भी मदहोश बना देता है।।
दस सेकेन्ट गुल हो जाए तो दश बर्ष सा लगाता है।
सपनो मे भी अन्लाईन जैसा लगाता है।।
सागर सापकोटा, असम

जानवर क्या करे बेचारा
जब इंसान ही
खा जाए उसका चारा
इंसानियत को आती नही
रत्ती भर भी शरम
तो मेरे काठ के उल्लू
आइस क्रीम क्यों
नही हो सकती गरम
आइस क्रीम क्यों
नही हो सकती गरम
हरीश रवि, देहरादून, उत्तराखंड

इक हसीन महफ़िल की सौगात तुम ले आओ,
मै गीत लिख दूंगा, साज तुम ले आओ।
मेरे कत्ल के लिए असले और बारुद की जरुरत नही दोस्तों ,
बस अपने चेहरे पर इक हसीन मुस्कुराहट आज तुम ले आओ।
डॉ जयप्रकाश नागला, नांदेड, महाराष्ट्र

दिल्ली को दर्द हो तो, दिखता नेपाल में
कोई गैर यू ही चप्पल, घिसता नेपाल में
दौलत नहीं हमारी, न शोहरत नई नई है
रोटी का और बेटी का, रिश्ता नेपाल से।
ओंकार शर्मा कश्यप, नवादा, बिहार

यह उम्र पचास की
बड़ी परेशान करती है ,
जवानी तो गुजर जाती है
बुढ़ापे को अस्वीकार करती है
यह उम्र पचास की
बड़ी परेशान करती है।
नीता चौधरी, जमशेदपुर , झारखण्ड

हूं मालवा की छोरी म्हारे संगे मालवी टोली,
म्हारो देस भारत हे, हूं विराटनगर से बोली।
हेमलता शर्मा भोलीबेन, इंदौर, मध्यप्रदेश

शीशे के द्वार को खोलकर
स्वागत करता गार्ड था
स्वर्ण आभूषणों की उस बड़ी दुकान में
बेटी के साथ अंदर जाती
सकुचाती हुई माँ थी, डॉ अर्चना तिर्की , रांची

वसंत ऋतु के आते ही, भंवरे कलियां मुस्काते है।
ऐसे ही मानव जीवन में ,यौवन के दिन आते है।।
जैसे ही यौवन आता, अंग प्रस्फुटित हो उठता।
मुख आभान्वित, कजरारी आंखें ,अंग अंग दमक उठता।
डा निशा अग्रवाल, जयपुर, राजस्थान

राह तकते हर पल रहती है मां।
रब जाने कब कैसे सोती है मां।
याद उसे मेरी जब आती है
हाथ दुआ के लिए उठाती है मां।
डॉ अलका वर्मा,सुपौल, बिहार

“देवभाषा की जाया हूँ,
संस्कृत की बिटिया,
भारत-माँ के भाल की
सुशोभित बिन्दिया,
हाँ, मैं हिन्दी हूँ!
भारत की हिन्दी हूँ!!”
पूनम (कतरियार) पटना, बिहार

जीवन का संचार करो
हिंदुस्तान सा देश नहीं,ना हिंदी जैसी और भाषा हैं
कामकाज हो हिंदी में,सुरेश छोटी सी अभिलाषा हैं
भारत वासियों से आशा हैं,मातृभाषा का सत्कार करो।
सुरेश कुमार सुलोदिया ‘भिल्ला’, हरियाणा

साथ मिलता है जब तेरा
फिर तो डर नहीं लगता।
तेरी यादों के साथ लिए
आगे बढ़ता रहता हूँ।
तेरे साथ अपने आपको को भी
चाहने लगता हूँ।
डॉ अकेला भाई, सिवान

हौले हौले हाथों से, फिसले रेत सी जिंदगी।
खाली खाली आँखों में, भरे अनजानी तिश्नगी।
सुहाने सपने दिखाए, उम्मीद दिल में जगाए।
कोई पुकारे दूर से।
अशोक श्रीवास्तव ‘कुमुद’, प्रयागराज

मैं कविता यहां सुनाऊं।
तो किस-किसको सुनाऊं?
यहां तो सभी वक्ता बैठे हैं।
एक से एक कवि हैं।
जहां न पहुंचे रवि हैं।
ब्रह्मा बन कर लेटे हैं।
यहां तो सभी वक्ता बैठे हैं।
ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश, रतनगढ़, (मध्यप्रदेश)

आते-जाते, आना-जाना जान गये
हम तेरे दिल का तहखाना जान गये
तेरी बोझिल पलकों से ये लगता है
हम भी शायद नींद उड़ाना जान गये,
डॉ अंजनी कुमार सुमन, मुँगेर (बिहार)

जब-तक जीवित रहती है,
हमारी तन्हाइयाँ।
तब-तक बजती रहती है,
प्यार की शहनाइयाँ।।
जो जीते हैं दिलों की,
अपनी जिन्दगानियाँ।
छोड़ जाते हैं वो,
अपनी मोहब्बत की निशानियों।।
नूतन सिन्हा, पटना, बिहार

साहित्य के हीरों को
नेपाल ने दिल से बुलाया है,
साहित्य महोत्सव आयोजित कर
सब को रिझाया है,
सगा भाई भारत का
धरा पर है अगर कोई,
सिवाय नेपाल के दूसरा,
हो सकता नहीं कोई l
समर बहादुर (सरोज), एडवोकेट हाई कोर्ट, इलाहबाद

आओ अखबार पढ़ते हैं
जो लिखा है, वही पढ़ते हैं
सुख को सुख और दु:ख को दु:ख पढ़ते हैं
खबरें गली, मुहल्ले और शहर की पढ़ते हैं,
हाल नगर नगर, देश विदेश का पढ़ते हैं
पाठक की चिट्ठी पत्तरी
खबरों का विश्लेषण,
लेखक के विचार और सुविचार पढ़ते हैं
आओ अखबार पढ़ते हैं
कमल किशोर कमल

कवि सम्मेलन का संचालन काठमांडू की पौडेल विमुन्श द्वारा किया गया।

द्वितीय दिवस में प्रथम सत्र पुस्तक विमोचन व पुस्तक समीक्षा सत्र रहा जिसमें ममता शर्मा अंचल, लक्ष्मी कांत शर्मा, अंबिका खरेल उप्रेती की पुस्तकों का विमोचन किया गया जिसका संचालन डॉ विजय पंडित द्धारा किया गया।

द्वितीय सत्र साक्षात्कार सत्र मे भारत के वरिष्ठ बाल साहित्यकार राजकुमार जैन ‘राजन’ ने साक्षात्कार सत्र की अध्यक्षता करते हुए अपने उद्बोधन में कहा कि ऐसे आयोजन मैत्री सम्बन्धों को मजबूत करते हैं और एक दूसरे देश के साहित्य, संस्कृति, और परम्पराओं को समझने में सहयोग करते हैं। भारत-नेपाल का रिश्ता दो भाइयों जैसा है।

तृतीय सत्र मुशायरा, गज़ल, चारू, राग विराग को समर्पित रहा संचालन डॉ देवी पंथी द्धारा किया गया।

राग
जम्बू दीपम्!, आर्यवर्तम्!, हिंद! ओ! माँ भारती।
आन की अरु शान की माँ!, ओढ़नी तू धारती।

ये हिमालय, है मुकुट माँ!, तेरे उन्नत भाल का।
अरु उदिध उत्तल तरंगे, पग को उर में धारती।

जाति,मजहब, प्रांत,भाषा वाद यह सब भूलकर।
राष्ट्रवादी-दीप बन माँ, हम उतारें आरती।

हम सदा बलिदान करते, शीष तेरे वास्ते।
नग्न पांवों दौड़ पड़ते, मातु! जब तू पुकारती।

सरफरोशी की तमन्ना, दिल में थी बिस्मिल के जो।
वह तमन्ना, हर ह्रदय में,भर दे ओ! माँ भारती।
दीपक गोस्वामी ‘चिराग’, बहजोई (सम्भल)

दो अल्हड़ दीवाने घूम रहे कहीं दूर वीराने,
दीन दुनिया से दूर बेखबर अपने में ही मगन,
एक दूजे में सिमटे फिर भी उड़ते आसमान में,
लगी थी उनको अपने अल्हड प्यार की लगन,
मिले थे जब पहली बार ऐसे ही दौरान ए बारिश,
बाहर भी बारिश थी और अंदर दिलों में भी बारिश,
आंखों की आंखों ही आंखों में कब पहचान हुई
आंखों ने आंखों में देखा आंखों आंखों में बात हुई
राव शिवराज सिंह, जयपुर, राजस्थान

तृतीय दिवस में प्रथम सत्र साहित्य में अनुवाद: एक विमर्श परिचर्चा हुई जिसका संचालन डॉ विजय पंडित ने किया और वक्ता के रूप में डॉ घनश्याम परिश्रमी, राजेन्द्र गुरागाईं, विभा रानी श्रीवास्तव, राजेन्द्र पुरोहित, डॉ पुष्कर राज भट्ट, ओंकार शर्मा कश्यप, डॉ अंजनी कुमार सुमन रहे, ने अपने विचार रखने के साथ-साथ दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों के साहित्य में अनुवाद संबंधित प्रश्नों का उत्तर भी दिया।
दस सूत्रीय विराटनगर घोषणा पत्र सभी के समक्ष प्रस्तुत किया गया जिसमें डॉ विजय पंडित, डॉ देवी पंथी, राधा पांडेय , ममता शर्मा अंचल, अभय श्रेष्ठ, विभा रानी श्रीवास्तव, ओंकार शर्मा कश्यप, हेमलता शर्मा, डॉ अंजनी कुमार सुमन शामिल रहे।

राव शिवराज सिंह के शोध पत्र वाचन के साथ समापन समारोह आयोजित किया गया। जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में विराट नगर महानगर पालिका के मेयर नागेश कोईराला रहे और विशिष्ट अतिथियों में गंगा सुबेदी, दधिराज सुवेदी, कार्यक्रम अध्यक्ष विवश पोखरेल रहे, मिन कुमार नवोदित, डॉ हनीफ, ज्योतिष शिरोमणि डॉ बलराम उपाध्याय रेग्मी पोखरा, डॉ घनश्याम परिश्रमी, गोकुल अधिकारी और विष्णु भंडारी असम और सिक्किम से राधा पांडे रहे। झारखंड प्रीति सैनी, तनुश्री लेंका, भागलपुर से डॉ अंजनी कुमार सुमन, दिल्ली से इंदुमती सरकार, कानपुर से सीमा वर्णिका, हरियाणा से डॉ त्रिलोक चंद फतेहपुरी, जोधपुर से राजेन्द्र पुरोहित, प्रेमलता सिंह राजपूत, रंजना सिंह, मीरा प्रकाश और इंदौर से शीतल शैलेन्द्र सिंह राघव देवयानी, नागपुर से रीमा दिवान चड्ढा, राजस्थान से डॉ दिनेश व्यास ललकार, मध्य प्रदेश से रमा निगम, डॉ जयप्रकाश नागला महाराष्ट्र सहित उत्तर पूर्व राज्य असम से हेमप्रभा हजारिका, रूनुदेवी बरूआ, लक्ष्मी कांत शर्मा, दुर्गा प्रसाद ढकाल, मनमाया गुरूंग, छविलाल ओझा, पंडित केशव खनाल, चक्रपाणि भट्टराई, टोमादेवी पौडयाल, अनीता गुरुंग जैसी जानी मानी साहित्यिक व सामाजिक विभूतियों की सहभागिता रही।
समापन सत्र के मुख्य अतिथि महानगरपालिका के मेयर नागेश कोईराला ने अपने उद्बोधन में दोनों देशों की साझा संस्कृति, कला व साहित्य को आगे बढ़ाने के लिए भरपूर सहयोग करने का आश्वासन दिया और सभी अतिथियों को सम्मानित भी किया।

तीन दिवसीय नेपाल भारत साहित्य महोत्सव के चतुर्थ संस्करण में संयोजन के रूप में चारू साहित्य प्रतिष्ठान के अध्यक्ष डा देवी पंथी और सह संयोजक के रूप में वरिष्ठ पत्रकार वरूण मिश्रा व माला मिश्रा रहे। तीन दिवसीय नेपाल भारत साहित्य महोत्सव के चतुर्थ संस्करण में सह आयोजक महानगर पालिका विराटनगर, मुख्य सलाहकार व मार्गदर्शक गणेश लाठ व सहयोगी दीपक अग्रवाल, राजेन्द्र गुरागांई, करुणा झा व शैलेन्द्र मोहन झा, महेश सोनी, अम्बिका खरेल उप्रेती, राधा भटराई, सबीना श्रेष्ठ, सहित अन्य सभी सहयोगियों का हम आभार व्यक्त करतें हैं। आयोजन की सफलता में आप सभी ने सहयोग व हमारा मार्गदर्शन किया है वास्तव में हमारे लिए बहुमूल्य है।
दोस्तों, साहित्य समाज का दर्पण के साथ एक दीपक का भी काम करता है जो समाज को एक नई दिशा दिखाता है और हम साहित्यिक महोत्सव के माध्यम से नेपाल और भारत के मध्य एक साहित्यिक सेतु का निर्माण कर रहे हैं। वसुद्धैव कुटुम्बकम् की भावना के साथ हम दोनों देशों के बीच प्रेम, सद्भाव, एकता, परस्पर सहयोग व साहित्य के दायरे का विस्तार करने के साथ वरिष्ठ साहित्यकारों के सानिध्य में नवोदित व गुमनाम कलमकारों को एक अंतरराष्ट्रीय मंच उपलब्ध करा रहे हैं।