डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान
“हमारी संस्कृति हमारी पहचान है।
भारतीय संस्कृति महत्वपूर्ण वरदान है।”
किसी भी राष्ट्र की पहचान के पहलूओं मे उसकी संस्कृति का महत्वपूर्ण योगदान होता है। भारत सदियों से अपनी संस्कृति और विरासत के लिए विश्व धरातल पर जाना जाता है। परन्तु वर्तमान दौर मे हम इस संबंध मे पिछड़ते जा रहे है। आखिर क्यों? इसका मुख्य कारण है बदलता परिवेश।
भारतीय संस्कृति मे आये कुछ अहितकारी बदलाव इसके स्पष्ट संकेत है। हमारी संस्कृति सदैव “अतिथि देवो भव्” के लिए जानी जाती है, परन्तु विगत कुछ वर्षो मे विदेशी सैलानियों मुख्यतः महिलाओ से अत्याचार, घिनौनी एवं शर्मनाक उत्पीड़ना, यौन हिंसा ने इसे शर्मशार किया है।
“वसुधैव कुटुम्बकम” का भाव सदैव से धारण किये हुए भारतीय समाज ने समग्र वसुधा को अपना परिवार माना है।परन्तु वर्तमान मे विश्व तो दूर सामूहिक परिवार मे ही कलह देखने को मिलते है। आखिर क्यों?
क्षेत्र, राज्य और समुदाय के नाम पर हुए बटवारे ने भारत को बाँट दिया है। “अनेकता मे एकता” के लिए विश्व विख्यात भारत आज धर्म के नाम पर विभाजित होता प्रतीत हो रहा है। कबीर दास जी ने कहा था “भारत एक ऐसा राष्ट्र है जहां हिन्दू व मुस्लिम एक ही घाट पर पानी भरते है ऐसे राष्ट्र मे जन्म लेना मेरा सौभाग्य है।
“होली, दिवाली, ईद हो रमजान या अन्य त्यौहार जहाँ सभी भारतीय एक साथ मनाते थे। त्योहार किसी विशेष धर्म का ना होकर समग्र राष्ट्र का था, जहाँ मुस्लिम फटाके फोड़ते थे व हिन्दू ईद मुबारक कहते थे, ऐसे राष्ट्र मे आज धर्म के नाम पर साम्प्रदायिक दंगे हो रहे है! अनेक निर्दोषो की जानें जा रही है ! जिसका उदाहरण हाल ही मे हुई कुछ घटनाओ से ज्ञात होता है और तो और ऋषि, मुनियो की इस संस्कृति को कुछ ढोंगी पीर बाबाओ ने शर्मशार किया है।
हिन्दी भाषा के कारण विश्व धरातल पर पहचान प्राप्त करने वाले भारतीय आज हिन्दी बोलने से कतराने लगे है। आज के समय में रामायण व गीता कुछ ही घरो मे मिलेगी। अगर मिलेगी भी तो धूल से धूमिल या गुम होती हुई। क्या यही है हमारी संस्कृति?
अगर हम सभी भारतीय है और अपनी संस्कृति का संरक्षण और हिफाजत चाहते है तो प्रेम स्नेह, सहयोग सदभावना, बसुधैव कुटुम्बकम की भावना से ओत प्रोत क्यों नही कर देते? क्यों नही है सभी एक साथ मिलकर भाईचारा, सौहार्द प्रेम का बीज बो देते?
क्यों हम पीछे हट जाते है विदेशी ताकत से?
क्यों नही है सभी अपनी भारत माता , अपनी प्रकृति की रक्षा कर सकते?
अगर हम सभी वैचारिक समभाव से आगे बढ़े, अपने देश के प्रति प्रेम, अपनी धरती माता की तड़पती पुकार को सुनें तो निश्चित ही हम सभी एक जुट होकर ये सब कर सकेंगे और महाराज श्री अग्रसेन के लाल कहलाने पर हम गर्व महसूस करेंगे।
धूमिल सी हो गई है वो यादें जब गाँवो मे चौपालो पर बुजुर्गो की भीड़ मिलती थी, अब कही देखने को नही मिलती। यूं समझिए जैसे पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त करने की तो रीति रिवाज कही गुम सी हो गयी है।
“अहिंसा परमो धर्म्” के भाव वाले इस राष्ट्र मे विगत कुछ वर्षो मे हुई हिंसा ने समग्र विश्व को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या ये वही देश है, जहाँ गांधी जैसे शांतिप्रिय दूत ने अहिंसा का संदेश दिया था? बेशक योग को विश्व धरातल पर लाकर भारत ने ये साबित भी किया कि वो आज भी विश्व गुरु है। हमारी भारतीय संस्कृति सदैव से अमर रही है।क्योंकि यह स्वयं मे सम्पूर्ण को समेटे हुए है। परन्तु इसकी पहचान कही खोती जा रही है। हमारी कुछ कमियों ने, कुछ ऐसे कृत्यों ने इसे दागदार बना दिया है। भौतिकवादी इस युग मे हम इतना गुम हो गए हैं कि हम भूल गए हैं की अपनी संस्कृति ही अपनी पहचान है।
जरूरत है हमे जरूरत है भारतीय संस्कृति के संरक्षण और हिफाजत की हमें जरूरत है।
संरक्षण और हिफाजत करके इसे आगे बढ़ाने की हमें जरूरत है।