चित्तौड़गढ़ (हिस)। वर्तमान युग में मकान, दुकान, भवन या किसी भी धार्मिक स्थल के निर्माण को लेकर आर्किटेक्ट की राय अवश्य ली जाती है। किस तरह से भवन को सुंदर और अलग विशेषताओं का बनाया जाए, इसका प्रयास किया जाता है। लेकिन एक समय था जब बिना उपकरणों और आर्किटेक की राय के वास्तु कला के बेजोड़ निर्माण हुए हैं। ऐसा ही एक निर्माण चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय पर देखने को मिला है। शहर में स्थित हजारेश्वर महादेव मंदिर वास्तु कला का एक बेजोड़ उदाहरण है। वर्ष में दो बार भगवान सूर्य की किरणें सीधे शिवलिंग पर पड़ती हैं। या यूं कह सकते हैं कि सूर्य की किरणों से भगवान महादेव का अभिषेक होता है। इसके दर्शन करने के लिए भी कई श्रद्धालु मंदिर में पहुंचते हैं।
जिला मुख्यालय पर पावटा चौक पर हजारेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है और प्रतिदिन दर्शनार्थ बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। यहां स्थापित शिवलिंग पर वर्ष में दो बार भगवान सूर्य की किरणें सीधी पड़ती है। यह नजारा भगवान सूर्य के उत्तरायण से दक्षिणायन की तरफ जाने तथा दक्षिणायन से उत्तरायण की तरफ जाते समय करीब सात दिन के लिए दिखाई देता है। वर्तमान में सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर जा रहा है। इसमें सूर्योदय होने के साथ ही भगवान सूर्य की किरणें सीधा शिवलिंग के चरणों में गिरती है। दो से पांच मिनट तक शिवलिंग पर सूर्य की किरणों को देखा जा सकता है। धार्मिक आस्थाओं के चलते यह माना जाता है कि भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करने के लिए सूर्य भगवान स्वयं आते हैं।
इसे लेकर हजारेश्वर महादेव मंदिर के श्रीमहंत चंद्रभारती महाराज ने बताया कि वर्ष में दो बार के लिए ही यह दिव्य दर्शन होते हैं। सूर्योदय के साथ ही पहली किरण मंदिर के गर्भ गृह में स्थित शिवलिंग पर पड़ती है। श्रीमहंत ने बताया कि वर्षों पूर्व हुए इस निर्माण में भी वास्तु ध्यान रखा गया था।
एक ही शिवलिंग से एक साथ हजार शिवलिंग पर चढ़ता है जल
मंदिर की अपनी कई विशेषताएं हैं। सबसे आकर्षण यहां स्थापित शिवलिंग है, जो अपनी अलग पहचान के लिए जाना जाता है। एक ही शिवलिंग पर एक हजार शिवलिंग बने हुए हैं। ऐसे में एक शिवलिंग पर दूध व जल चढ़ाने से एक साथ एक हजार शिवलिंग पर दूध व जल चढ़ता है। ऐसे में एक बार जल चढ़ाने से एक हजार शिवलिंग पर जल चढ़ाने का फल मिलता है।
1100 साल पुराना है मंदिर, चार बार हुआ निर्माण
मंदिर के श्रीमहंत चंद्रभारती महाराज ने बताया कि यह मंदिर करीब 1100 साल पुराना है। इसका चार बार निर्माण हो चुका है। आखिरी बार 1860 में इस मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ था। कुछ वर्षों पूर्व जरूर मंदिर की दीवारों पर टाइल्स और फर्श लगाने का कार्य हुआ लेकिन पुराने निर्माण को नहीं बदला था। इसलिए अब भी सूर्य की किरणें भगवान के चरणों में पड़ रही है। मंदिर का निर्माण आर्द्रा नक्षत्र में किया गया था।
चरणों से मुखारबिंद तक जाती है किरणें
मंदिर के आचार्य श्रवण सामवेदी ने बताया कि सुबह करीब सवा सात बजे से शिवलिंग पर सूर्य की रोशनी से अभिषेक का क्रम शुरू हुआ। करीब पांच से सात मिनिट तक अभिषेक हुआ है। पहले भगवान के चरणों में सूर्य भगवान को रोशनी गिरी। बाद में ऊपर की तरफ होते हुए मुखारबिंद तक सूर्य की रोशनी जाती है। यह दर्शन करने के लिए कई श्रद्धालु मंदिर आते हैं तो वहीं सोशल मीडिया पर भी इसके फोटो और वीडियो वायरल हो रहे हैं।