नारीत्व का पर्याय बनी भक्ति की शक्ति: मनु शर्मा

आज नारी फर्श से लेकर अर्श तक का सफर किसी पंक्षी की भांति बड़ी सरल और सहजता से कर रही है, उनका विचरण हमें गर्व से गौरान्वित कर रहा है, उनकी सफलता हमें अपनी कठोर रूढ़िवादिता को झकझोर कर तोड़ने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

नारी सिर्फ चूल्हे-चौके तक ही सीमित नहीं है, हाँ अगर वह है भी तो वह सम्पूर्ण देश की शासन व्यवस्था को अपने मे समाहित किये हुए है, फिर अर्थव्यवस्था के साथ संस्कृति व समाज के साथ तालमेल बैठाना हो, सब मुक्कमल है, यहाँ फिर चाँद की दूरी क्या और क्या एयरवेज की उड़ान है, जहाँ नारी है वहाँ हर चीज आसान है।

स्त्री जब सकारात्मक ऊर्जा के साथ कार्य करे और ठान ले तो वह हर ऊंचाई छू सकती है। उसके लिए न दुर्गा होना कठिन है, न लक्ष्मी होना, न सरस्वती होना। उसके अंदर ही यह तीनों शक्तियां निवास करती हैं। वह जब चाहे तब कल्पना चावला हो सकती है, बछेन्द्री पाल हो सकती है या सुनीता विलियम्स हो सकती है। यूँ ही नहीं विश्व की प्रत्येक प्राचीन सभ्यता में मातृ देवी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था और है।

नारी शक्ति है, सयंम है, संघर्ष की देवी है, नारी तू गंगा, यमुना सरस्वती सा तीव्रमय प्रवाह है, अलकनंदा सा सौंदर्य, मीरा सा प्रेम हो, सीता सा विराट व्यक्तित्व, आहिल्या का रूप हो। तुम लक्ष्मी बाई सा संघर्ष हो, कल्पना सा हौसला हो, तुम इंदिरा, तुम सुषमा, तुम जगत की नींव हो।

समय के समक्ष व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसके पुरुष-स्त्री होने से नहीं, बल्कि उसके शौर्य से तय होती है। व्यक्ति को सम्मान मिलता है तब, जब वह अपने कार्यक्षेत्र में परिश्रम और योग्यता से नई ऊंचाई प्राप्त करे। एक आदर्श स्त्री वह है जो अन्य स्त्रियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने। अन्यथा होने को तो पृथ्वी पर अरबों पुरुष और स्त्रियां हैं।

मनु शर्मा
अशोकनगर