वर्तमान केंद्र सरकार के द्वारा कोरोना वायरस बीमारी से लड़ने के लिए भारी भरकम 20 लाख करोड़ का एक ऐतिहासिक आर्थिक पैकेज भारत की वित्त मंत्री के द्वारा 5 दिनों में अनाउंस किया गया। वह काफी काबिले-तारीफ है। निश्चित ही इस आर्थिक पैकेज से देश की जनता को लाभ पहुंचेगा। इस अनाउंसमेंट में यदि गहराई से देखा जाए तो कुछ चीजें जो उभरकर आ रही है, वह वास्तविक रूप से देश की अर्थव्यवस्था के लिए चिंताजनक साबित होंगी.
फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट, विदेशी कंपनियां वह भारत में 49 प्रतिशत से ज्यादा अब 74 प्रतिशत तक भागीदारी ले पाएंगी। इसका मतलब साफ है कि कंपनियों का स्वामित्व विदेशी कंपनियों के हाथ में रहेगा और वह 74 प्रतिशत अपना हिस्सा लेकर और प्रॉफिट कमा कर कभी भी रफूचक्कर हो सकती है। यह एक चिंता का विषय है। विदेश की किसी भी कंपनी को भारत की जमीन पर 49 परसेंट से ज्यादा हिस्सेदारी सरकार को नहीं देनी चाहिए।
20 लाख करोड़ का अनाउंसमेंट वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण के द्वारा जो किया गया है, उसमें दूसरा एक और बिंदु है, जो चिंता का असली कारण है। लोगों के मन में है, वे जानना चाहते हैं कि सरकार का इस पर क्या आगे रुख रहेगा कि भारत के 6 एयरपोर्ट को प्राइवेटाइज करने का अनाउंसमेंट किया गया है। इसके अलावा भारत की कोल माइंस को भी प्राइवेट तरीके से लोगों को दिया जाना भी एक गहन चर्चा का विषय है।
आपातकाल के इस दौर में जनता को जो हित जनता के हित में जो निर्णय लिए जाने थे, वह लिए जाने चाहिए थे, किंतु जो संसद के अंदर बिल के माध्यम से जिन चीजों पर बहस करके बिल पास करा कर तय करना चाहिए था, उनकी घोषणा करने से सरकार को भी बचना चाहिए था।
अमेरिका में अभी कोरोना वायरस से लड़ने के लिए तात्कालिक लाभ जनता को 2 ट्रिलियन डॉलर का बजट राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा दिया गया है। जिसका कि सीधा लाभ 60 प्रतिशत जनता को पहुंच रहा है। लगभग $15000 प्रति व्यक्ति के हिसाब से डायरेक्ट कैश का लाभ अमेरिका की जनता को देना तय किया गया है और उसे तत्काल प्रभाव से जनता के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर किया जा रहा है
हमारे देश की विडंबना है कि आपातकाल में जो 20 लाख करोड़ का जो बजट बनाया गया है, उसको लोन के माध्यम से कंपनियों के द्वारा ही जनता तक परोक्ष रूप से लाभ के रूप में परिवर्तित किया जाने का निर्णय सरकार ने लिया है। यदि इतना रुपया सही ढंग से यदि लोगों तक पहुंच जाए तो वास्तविक भारत देश का नक्शा बदला जा सकता है। कथनी और करनी में सरकार को अब सामंजस्य बैठाने की जरूरत आ गई है। नरेगा और मनरेगा से लोगों को थोड़ा-थोड़ा करके गांव में रोजगार तो दिया जा सकता है, लेकिन इसके कोई दीर्घकालिक सही परिणाम निकलने वाले नहीं है। जो मजदूर बाहर से अपने गांव में पहुंचे हैं, उनमें ज्यादातर हमारे लोग युवा जो 35-40 वर्ष के नीचे उम्र के हैं। वह मनरेगा में अपना नाम तो लिखा लेंगे और 2 घंटे के लिए फावड़ा कंधे पर रखकर रोड के किनारे जाकर कहीं मिट्टी डालकर ड्रेसिंग कराएंगे। 2 घंटे के लिए और अपनी दिहाड़ी लगा लेंगे, किंतु उनके द्वारा किए गए काम को सत्यापन करके देखा जाएगा तो काम जीरो ही होगा। जो सरकार का धन है वह लोगों बिना किसी काम को किए जेब में पहुंच जाएगा।
इससे अच्छा होता कि गांव स्तर पर कोई एक समूह बनाकर सोसाइटीज बनाकर उसे साइटिस्कोर ही पैसा दिया जाता है तथा वह सेल्फ हेल्प ग्रुप के द्वारा अपने किसी भी व्यवसाय को डालते तो लोगों को रोजगार भी मिलता अरबसरकारी धन का सही प्रयोग होता। मनरेगा की नीतियां तो सही है किंतु उनका क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो पा रहा है। इसलिए सरकार का धन मनरेगा-नरेगा के माध्यम से जो दिया जाता है, उसका कोई भी उपयोग देखने को सही नहीं मिलेगा।
गांव में पहुंची बेरोजगारों की फौज अब गांव में ही रहकर रोजगार के अवसर को तलाश करेंगे। रोजगार उपलब्ध ना होने की दशा में गांव में बेतहाशा अपराध की वृद्धि होगी। हम अच्छे से जानते हैं कि जो लोग शहरों में फैक्ट्रियों में काम करके गांव में वापस आए हैं। वह गांव में मनरेगा या नरेगा जैसे क्रियाकलापों से मिट्टी कूड़े करकट ग्राम सफाई का काम नहीं करना चाहेंगे क्योंकि वह उन्हें बाबू गिरी करने की आदत लग गई है। व्हाइट कॉलर जॉब वह करने लगे हैं। इसलिए चाहिए ताकि सरकार कोई छोटे-छोटे ग्रुप से बनाकर हरगांव स्थल पर उनमें मधु मधुमक्खी पालन, मत्स्य पालन, बुनाई, कढ़ाई, सिलाई, आधुनिक तरीके से सिंचाई व पेपर बैग जैसे उद्योगों को लगाने हेतु सरकार को तत्काल सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाकर उनको धन दिया जाना चाहिए था. जिससे कुटीर उद्योगों को 1 या 2 महीने के अंदर स्थापित किया जा सकता था और रोजगार के अवसर उत्पन्न होने लगते।
MSME के लिए जो धन सरकार ने देने की योजना बनाई है वह काफी काबिले-तारीफ है। जिन लोगों पर लोन चल रहा है उनको 3 महीने की रात देने के लिए सरकार ने टूरटोरियम बना कर दिया था, किंतु उसको और कम से कम 6 महीने के लिए करना चाहिए था, ताकि लोगों को राहत मिलती और बैंकों के द्वारा दिए गए लोन को अदा करना शुरू कर देते।
सरकार को डिसइनवेस्टमेंट और फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट योजनाओं पर पुनर्विचार करना चाहिए। भारत के पास हर हाल में 51 परसेंट का स्वामित्व रहना चाहिए तभी देश का भविष्य सुरक्षित रहेगा और इसके साथ ही भारत की पब्लिक सेक्टर कंपनी को और मजबूत बनाना चाहिए ना कि उनका प्राइवेटाइजेशन करना। सरकार का पब्लिक सेक्टर की कंपनियों को प्राइवेटइज करने का निर्णय कतई अच्छा नहीं है ना इसके कोई आगे अच्छे परिणाम निकलने वाले हैं। इस पर सरकार को गहन चिंता करना चाहिए तथा संसद में खुली बहस करके इस पर निर्णय लेना चाहिए। तभी इससे भविष्य सुधरेगा देश का यदि सरकारी संस्थानों को प्राइवेटाइज कर दिया जाता है तो सरकार के हाथ में कुछ नहीं बचेगा। सरकार की एयरपोर्ट को प्राइवेटाइज करना, रेलवे को प्राइवेटाइज करना, ट्रेनों को लीज पर देना यह आगे भविष्य के लिए कोई अच्छा संकेत नहीं दे रहा है। इससे हो सकता है कि इसके कोई नकारात्मक ही निकलेंगे और वह सरकार के लिए कष्टदायक साबित होगा।
-वीरेंद्र तोमर