कल्पना अपनी छोटी छोटी बातों पर घर में शोर मचाती थी पिता माँ भाई बहन सभी को अपनी जिद के आगे झुकाने में माहिर चुलबुली कल्पना जो माता पिता की सबसे शरारती बच्ची कही जाती थी, अचानक मौन की साधक क्यूँ बनी और स्वयं को आजीवन पराजित घोषित कर दी, समय के साथ कल्पना का विवाह हुआ और सामना हुआ ऐसे लोगों से,जो कल्पना के हृदय परिवर्तन का कारण बने।
अंधेरा काफी है ,हाँ अभी रोशनी का एहसास बाकी है। सीने में दफ़न घाव की टीस बरकरार है, सर से पाँव तक तनाव ही तनाव सभी के अंतस में काले रंग का तम्बू तना है काल अपना प्रभाव दिखा रहा है।
काल का प्रहार ,जो कि महापरिवर्तन का संकेत दे रहा था । फिर जंग छिड़ी , रोशनी बनाम अंधेरा आखिर ऐसा क्या हुआ, कल्पना का हृदय परिवर्तन कल्पना की ये वो लडाई थी अंधेरे से लड़ना सत्य पर आँच ना आये रोशनी के साथ स्वयं को न्योछावर कर देना परिवार के लिए।
सभी के बोल बदल चुके थे किसी के जिह्वा पर नियंत्रण नहीं था जो मुँह में आये कहे जा रहे कल्पना घर के एक कोने में खड़ी सभी को निहार रही थी क्यूँ कि वहां सभी अपने आप को एक से बढ़कर एक साबित करने में लगे हुए थे मानो ऐसा प्रतीत हो रहा था सभी झूठ की बहती दरिया में यहीं डूब मरने को तैयार खड़े हैं।
मन ही मन कल्पना सोच रही थी क्या आज सत्य असत्य से लजा रहा है , या अंधेरे से रोशनी डर गयी सत्य की हत्या पर रोशनी कांप रही, घबरा रही ये कौन है जो खिड़की की सलाखों को बाँटने की कोशिश कर रहा ।
जहाँ रोशनी आने से घबरा रही फिर भी ये सब देख कर भी कल्पना डरी नहीं क्यूँ कि सत्य में सांस बाकी थी, झूठ के समक्ष खुद को अकेली महसूस करती कल्पना आश्रय की तलाश में जुटी सत्य की व्याकुलता को देख कल्पना में आस की सांस अभी जीवित थी चुलबुली कल्पना को कठोर निर्णय लेना पड़ा, जबकि सहज नहीं था परन्तु कल्पना सभी से अलग भी नहीं रहना चाहती ।
अब कल्पना को ठहराव की आवश्यकता थी और उसने मौन का मार्ग अपनाया सत्य कभी हारता नहीं इसी उम्मीद के साथ मौन को साध स्वयं में परिवर्तन और मौन को गले लगायी स्वयं को पराजित घोषित कर पूरे आत्मविश्वास के साथ सत्य पर डटे रहना एवं जिम्मेदारियों का कर्तव्यनिष्ठा पूर्वक निर्वाहन कर कल्पना, संकल्पना पथ पर चल पड़ी ।
अँधेरा घनघोर है घाती
उजाले की शोध है जारी
छायी रहे तमिस्र घटा, तो क्या
सूरज की किरणों में चेतना है बाकी
प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश