समरस साहित्य सृजन संस्थान एवं जकासा की संयुक्त काव्य-गोष्ठी: एक से बढ़कर एक रचनाओं से श्रोता हुए भाव विभोर

समरस साहित्य सृजन संस्थान (जयपुर इकाई) एवं जकासा की संयुक्त काव्य-गोष्ठी वरिष्ठ कवि वरुण चतुर्वेदी की अध्यक्षता में किशोर पारीक ‘किशोर’ जी के स्टूडियो में सम्पन्न हुई। वैद्य भगवान सहाय पारीक द्वारा राजस्थानी में सरस्वती वंदना के साथ प्रारम्भ गोष्ठी में डॉ एनएल शर्मा ने ढूंढाड़ी में कविता- ले चाल पटेलण घास घरा यो इंद्र घूडक्यो आवै छै।

विजय मिश्र ‘दानिश’- “आखिर कब तक करता रहता मैं तुमसे व्यवहार, काश! समझ पाती तुम जानम मेरा सच्चा प्यार, पढ़कर तालियां बटोरी। कल्याण सिंह शेखावत ने- सजे बाँसुरी सजे साज, यादों में गहरा बसा वो गाँव, जहाँ दिखते थे मेरे पाँव और छल छन्दों का करै कलेवा, लूटै माल घनेरो रे। रचनाएं सुनाई। राव शिवराज पाल सिंह ने- फाल्गुन को करने विदा, आ गया मधुमास और रक्षक भक्षक हुए, रिश्तें नाते सब तार-तार हुए” जैसी मार्मिक रचना पढ़कर माहौल भावुक कर दिया।

कवि केएल भ्रमर ने बसन्त पर गीत के साथ ही “विधना ने स्वर्ग को जमीं पर उतारा है” कविता पढ़ी। किशोर पारीक किशोर ने “बेटियाँ पूजी जाय वा घर मै भगवान छै, बेटियाँ बिना अलूणो घर छै, बिन मीठा पकवान छै, सुनाकर खूब दाद पायी। श्याम सिंह राजपुरोहित ने जिंदगी के नजरिये प- “मधुर मुस्कानों के लिये ही तों बनी है जिंदगी, किसी के रोके से कब रुकी है जिंदगी” पढ़कर भाव विभोर कर दिया।

संस्था के अध्यक्ष वरिष्ठ गीतकार लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला ने-
भारत मे रंगो की होली, खूब मने चहुँ ओर,
चंग बजाती टोली नाचे, होकर भाव विभोर।
दहन होलिका की होती पर बचते भक्त प्रह्लाद।
पावन ये त्योहार हमारा, सदा कराये याद।।

और
“पृथक पृथक छन्दों की लय का,
गीतिकार लेते संज्ञान,
लय सुरत ताल सभी छन्दों की,
श्रेष्ठ सृजक रखते पहचान”- गीत सुनाये।

गोष्ठी के अध्यक्ष वरुण चतुर्वेदी ने देश प्रेम से ओत-प्रोत तिरंगे पर मुक्तक के साथ ही जीजा-साली की होली पर रचना पढ़कर हास्य परोसा। गोष्ठी में डॉ दिनेश दुब्बी और दीपक खण्डेलवाल सहित कई कवियों ने रचनाएं पढ़ी। गोष्ठी का संचालन राजस्थानी काव्य प्रभारी वैद्य भगवान सहाय पारीक ने किया। अंत मे कपिल खण्डेलवाल ने सभी को धन्यवाद दिया।