आध्यात्मिक विरासत और अर्थव्यवस्था: डॉ निशा अग्रवाल

डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान

हमारे देश की प्रतिष्ठा वैश्विक स्तर पर है। इसका श्रेय जाता है भारतीय सनातन संस्कृति और संस्कृत भाषा के साथ भाषा वैविध्य। भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन और महान संस्कृति के रूप में दुनिया भर में प्रसिद्ध है।

भारत अनेकता में एकता का भाव रखने वाला, बहुभाषी होने के बाबजूद भी अनेक भाषाओं की जन्मभूमि और मातृभाषा का सम्मान करने वाले भक्ति भाव और प्रेम का देश है।

भारत देश को यूं ही आध्यात्मिक आस्था एवं चमत्कार का देश नहीं कहा जाता है। यहां के धार्मिक स्थल आध्यात्म के विशिष्ट केंद्र हैं, जहां कुछ पल बैठकर ही व्यक्ति से समष्टि से जुड़ जाता है, इसीलिए दुनिया के कोने-कोने से भक्त दर्शन के लिए यहां आते हैं। यहां तक कि आधुनिकतम सोच वाले भारतीय भी आधुनिकता के इस युग में भी भारतीय संस्कृति को अपनाते हैं।

हमारे यहां देवी देवताओं, आराध्य देवी की पूजा अर्चना से स्वास्थ्य एवं धन लाभ, संतान प्राप्ति एवं विशिष्ट बाधा को दूर करने हेतु लोग दूर दराज से भारत आते हैं। प्राचीनकाल से ही मंदिर वास्तुकला के उत्कृष्टतम उदाहरण हैं, जहां पर आध्यात्म से लेकर सांसारिकता तक को पत्थरों पर उकेरती कृतियां हैं। इन मंदिरों की स्थापत्य कला और आकर्षक इतिहास किसी न किसी विशेष गाथा का वर्णन करता है। मूल्यवान धातु से बनी प्रतिमाएं हों या पाषाणकालीन मूर्तियां, दोनों ही जीवंत मानी जाती हैं एवं आकर्षण का केंद्र हैं।

कई मंदिरों में मूल्यवान वस्तुओं और प्राचीन वस्तुओं का व्यापक संग्रह है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी ना केवल चला आ रहा है बल्कि आज भी बढ़ रहा है, यही कारण है कि हमारे कुछ मंदिर की धन संपत्ति विश्व के बहुत सारे छोटे देशों के समग्र कुल उत्पाद से भी अधिक हैं। स्कूली शिक्षा से ही बच्चों को अपनी सांस्कृतिक, प्राकृतिक और भवन धरोहर के महत्व से परिचत कराया जाता है। आज की युवा पीढ़ी को भारतीय संस्कृति के संरक्षण एवं धरोहर के प्रति जागरूक करने के लिए देश के आध्यात्मिक स्थलों की सैर कराई जाती है।

हमारे मंदिर एक ऐसी मजबूत अर्थव्यवस्था के केंद्र हैं जो रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण योगदान रखते है। पूरे भारतीय इतिहास में प्राचीन समय से लेकर अब तक मंदिर से बड़े कोई आर्थिक केंद्र नहीं हैं। गरीब हो या अमीर, सभी श्रद्धालुओं के मन में ईश्वर को साक्षात करने के भाव जाग्रत होते हैं। भक्ति और श्रद्धा से श्रद्धालु दूर दूर से खिंचे चले आते हैं। मंदिर में चढ़ने वाला चढ़ावा, फूल, तेल, दीपक, इत्र, चूड़ियां, सिंदूर, कपड़े, प्रसाद, भेंट आदि अनेक व्यक्तियों के रोजी रोटी कमाने का साधन है। मंदिरों से अनौपचारिक और औपचारिक रूप से लाखों लोगों को रोजगार मिला हुआ है।

ऐसा माना जाता है कि अकेला धार्मिक यात्रा पर्यटन उद्योग ही भारत में लगभग 80 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार से जोड़े हुए है। देश का घरेलू धार्मिक पर्यटन विदेशी पर्यटकों की तुलना में कई गुना ज्यादा है। आज आवश्यकता है कि हम हमारी विरासतों के महत्व को पहचाने और उसे दुनिया के सामने प्रस्तुत करें।

एलोरा का शिव मंदिर, अजंता की गुफाएं, दक्षिण का बृहदेश्वर मंदिर, राजस्थान के ही देलवाड़ा और रणकपुर जैन मंदिर, चित्तौड़ का विजय स्तंभ, खजुराहो के मंदिर आदि अनेकानेक धरोहरें हमारे पूर्वजों के श्रेष्ठतम ज्ञान और कौशल के मात्र चंद उदाहरण हैं। यहां तक कि राजस्थान के दुर्गम पहाड़ों पर उस समय बने विशालतम किले हमे बताते हैं कि आधुनिक तकनीक के बिना भी केवल हिम्मत के बल पर हमारे पूर्वजों ने कितना कुछ हासिल किया था।

अंत में मेरा सबसे यही निवेदन है कि भारत के गौरव को अक्षुण्ण बनाए रखना हमारा कर्तव्य है, आइए हम सब इस के लिए कृत संकल्पित हों।

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